रांची: लोकसभा आम चुनाव 2024 के बाद अब झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियों में राजनीतिक पार्टियां जुट गई हैं. भारतीय जनता पार्टी के विधानसभा प्रभारी और सह प्रभारी रांची में उच्चस्तरीय बैठक कर चुके हैं. वहीं कांग्रेस की उच्चस्तरीय बैठक मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में दिल्ली में हो चुकी है. ऐसे में झारखंड विधानसभा चुनाव 2014 में राज्य की राजनीति में ऐसा क्या हुआ था जिसका खामियाजा कांग्रेस पार्टी को 2019 के विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ा था. अब 2024 विधानसभा चुनाव से पहले भी जब कांग्रेस सीट शेयरिंग के लिए टेबल पर झामुमो के साथ बैठेगी तो 2014 के विधानसभा चुनाव के नतीजे टेबल पर जरूर होंगे.
2014 विधानसभा चुनाव के नतीजे में क्या कुछ था खास
जानकार बताते हैं कि 2014 से पहले राज्य में महागठबंधन की हेमंत सरकार 1.0 चल रही थी. राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा की मिलीजुली सरकार को झामुमो नेता हेमंत सोरेन लीड कर रहे थे. चुनाव की घोषणा के बाद सीट शेयरिंग को लेकर बात नहीं बनी. जानकारों के अनुसार तब आलमगीर आलम की सीट पाकुड़ को लेकर मामला फंस गया था. पाकुड़ सीट पर तब सीटिंग विधायक झामुमो के अकील अख्तर थे. कांग्रेस तब अपने बड़े नेता आलमगीर आलम के लिए पाकुड़ विधानसभा सीट पर अड़ गई थी.
2014 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन टूटा
अंततः बात नहीं बनी और कांग्रेस ने 62 विधानसभा सीट पर उम्मीदवार उतार दिए थे, उसके सहयोगी के रूप में राजद ने 19 विधानसभा सीट पर उम्मीदवार उतारे थे. 62 विधानसभा सीट पर लड़कर कांग्रेस महज छह सीट जीत पाई थी, तब राजद का पहली बार झारखंड विधानसभा में खाता नहीं खुला और झामुमो 79 विधानसभा सीट पर अकेले लड़कर 19 सीटें जीतने में सफल हो गया था.
2014 में महगठबंधन के हाथों से फिसली सत्ता
इस चुनाव का सबसे बड़ा नतीजा यह रहा कि सत्ता महागठबंधन के हाथ से फिसल कर भाजपा के हाथों में आ गई जो 72 सीट पर चुनाव लड़कर 37 सीट जीतने में सफल रही. उसकी सहयोगी पार्टी आजसू पार्टी भी पांच सीट जीतने में सफल रही. इस तरह एनडीए को 42 सीटें मिली थी.
कांग्रेस की जिद से महागठबंधन को उठाना पड़ा था नुकसान
2019 विधानसभा चुनाव के लिए जब झामुमो, राजद और कांग्रेस के नेता बैठे तब 2014 का परफॉर्मेंस सीट शेयरिंग का आधार बना था. महज तीन विधानसभा सीट जामताड़ा, पाकुड़ और घाटशिला में झामुमो की विनिंग सीट अपने हाई प्रोफाइल नेता के लिए छोड़ने की कांग्रेस की जिद ने 2014 में महागठबंधन को सत्ता से बाहर कर दिया था. ऐसे में जब 2019 में फिर तीनों दलों के नेता बैठे तो सीट शेयरिंग का पहला फॉर्मूला यह बना कि विनिंग सीट जिसकी है उसी दल के खाते में जाएगी. इस फॉर्मूले से 2019 के प्रदर्शन के आधार पर झामुमो का 19 और कांग्रेस की छह सीट कंफर्म हो गई. लोहरदगा उपचुनाव जीतने, विधायक गीता कोड़ा के कांग्रेस में शामिल होने और कोलेबिरा उपचुनाव में कांग्रेस के नमन विक्सल कोंगाड़ी की जीत से कांग्रेस की विनिंग सीट 09 हो गई.
महागठबंधन का दूसरा सीट शेयरिंग फार्मूला
फिर दूसरा फॉर्मूला बना 2019 में. दूसरे स्थान पर रहने वाली सीट जिसकी होगी वह सीट उसे दी जाएगी. यहां कांग्रेस जेएमएम से काफी पिछड़ गई, क्योंकि तब झामुमो 17 विधानसभा सीटों पर दूसरे स्थान पर था. कांग्रेस के 10 उम्मीदवार ही दूसरे स्थान पर थे. वहीं राजद के छह उम्मीदवार दूसरे स्थान पर थे. इस फॉर्मूले के बाद झामुमो की सीट 36, कांग्रेस की सीट 16 और राजद की सीट 06 हो गई. इसके बाद तीसरे स्थान वाले विधानसभा सीट की पहचान हुई और अंततः झामुमो 43, कांग्रेस 31 और राजद को 07 सीटें मिली.
2014 में कांग्रेस के ज्यादातर सुरमा हो गए थे फ्लॉप
झारखंड में कांग्रेस की राजनीति को बेहद करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं को 2014 में जमीनी हकीकत का पता चल गया. जिस घाटशिला के लिए कांग्रेस अड़ी हुई थी, वहां बड़े नेता प्रदीप बलमुचू की बेटी सिंड्रेला बलमुचू दूसरा स्थान भी नहीं पा सकीं. सिसई से प्रख्यात नेता कार्तिक उरांव की बेटी और तत्कालीन शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव भी बुरी तरह हार गईं. राजधानी रांची की सीट पर मुख्य मुकाबला भाजपा और झामुमो के बीच हुआ और कांग्रेस तीसरे-चौथे नंबर पर खिसक गयी. बेरमो से मंत्री राजेन्द्र सिंह हार गए तो धनबाद से मन्नान मलिक की हार हुई. मंत्री केएन त्रिपाठी की भी हार हुई.
बड़े नेताओं का 2014 में बेहद खराब प्रदर्शन-अमूल्य नीरज खलखो
महागठबंधन की राजनीति में पिछड़ने की वजह 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बेहद खराब प्रदर्शन को बताते हुए झारखंड प्रदेश कांग्रेस के संगठन सचिव अमूल्य नीरज खलखो कहते हैं कि आज भी जनता का समर्थन कांग्रेस को है, लेकिन 2014 में जब हम महागठबंधन की जगह सिर्फ राजद के साथ चुनाव मैदान में उतरे तब हमारे बड़े नेताओं का परफॉर्मेंस ठीक नहीं था. इस वजह से हम पिछड़ गए.
परिस्थिति की वजह से 2014 में नहीं हुआ था महागठबंधन-झामुमो
झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता कहते हैं कि 2014 की परिस्थिति और तब झामुमो की तीन-तीन विनिंग सीट पर कांग्रेस की दावेदारी और महत्वाकांक्षा ने महागठबंधन नहीं होने दिया था. नतीजे में रूप में हमने 2014 में सरकार गंवाई, लेकिन हमारी ताकत बढ़ी. हम अकेले लड़कर कितना जीतें और वह कितना जीते यह सर्वविदित है.
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