बीकानेर. किसी भी मकान में व्यापार में प्रतिष्ठान दुकान ऑफिस में वास्तु का बड़ा महत्व होता है. जिस तरह जन्म कुंडली के आधार पर जातक के जीवन की गणना की जाती है उसी प्रकार से दिशाओं के आधार पर वास्तु की गणना की जाती है.
दिशाओं का महत्व : वास्तुविद राजेश व्यास बताते हैं कि दिशाओं का महत्व और उनकी गणना वास्तु शास्त्र का एक ऐसा विज्ञान है जिसमें दिशाओं की ऊर्जा का महत्व है. पूर्व, उत्तर, दक्षिण, पश्चिम की चार दिशाओं की गणना की जाती है. यहां हर दिशा का महत्व है क्योंकि हर दिशा पर ग्रह, उसके स्वामी और ब्रह्माण्ड की ऊर्जा का प्रभाव रहता है. इसी कारण से हमारे ऋषि मुनि हजारों साल पहले इन बातों को समझते थे और उन्होंने अपने ग्रंथों के माध्यम से इस बात को समझाया कि हमें अपने स्थान की दिशाओं को ठीक रखना चाहिए.
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पूर्व दिशा : इस दिशा के स्वामी ग्रह सूर्य और देवता इंद्र हैं. यह दिशा अच्छे स्वास्थ्य, बुद्धि और ऐश्वर्य की घोतक है इसलिए जब आप भवन का निर्माण करें तो पूर्व दिशा का कुछ हिस्सा खुला छोड़ दें. नियम के अनुसार इस स्थान को थोड़ा नीचे रखना चाहिए ताकि आपने पितरों का आशीर्वाद आपको मिलता रहे. इस दिशा के ख़राब होने पर सिर दर्द और ह्रदय रोग जैसी बीमारी होती है.
पश्चिम दिशा : इस दिशा के स्वामी ग्रह शनि और देवता वरुण हैं. यह दिशा सफलता और प्रसिद्धि को दर्शाती है. इस दिशा ने गड्ढा और दरार नहीं होनी चाहिए और ना ही यह दिशा नीची होनी चाहिए. अगर घर के स्वामी को किसी भी कार्य में सफलता हाथ नहीं लग रही है तो आप समझ जाइए कि इस दिशा में दोष है. इस दिशा के बिगड़ जाने से पेट और गुप्त अंग में रोग होता है.
उत्तर दिशा : इस दिशा के स्वामी ग्रह बुध और देवता कुबेर हैं. यह दिशा बुद्धि, ज्ञान और मनन की दिशा है. इस दिशा से मां का भी विचार किया जाता है इसलिए उत्तर में थोड़ा स्थान खाली छोड़कर भवन का निर्माण करवाएं तो माता का स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है. इस दिशा के ऊँचा और दोषपूर्ण होने पर छाती और फेफड़े का रोग हो सकता है.
दक्षिण दिशा : इस दिशा के स्वामी ग्रह मंगल हैं और देवता यमराज हैं. यह दिशा पद और प्रतिष्ठा दर्शाती है. इस दिशा से पिता के सुख भी विचार किया जाता है. इस दिशा को आप जितना भारी और ऊँचा रखते हैं आपको उतना ही समाज में सम्मान मिलता है. यह शरीर के मेरुदंड की भी कारक है. इस दिशा में दर्पण और पानी की व्यवस्था कभी भी नहीं करनी चाहिए.