देहरादून: उत्तराखंड में तैनात आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी को लेकर हाईकोर्ट ने केंद्र को निर्देश जारी किए हैं. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने केंद्र से भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के संयुक्त सचिव स्तर पर एम्पैनलमेंट की प्रक्रिया और निर्णय लेने से संबंधित रिकॉर्ड साझा करने को कहा है. हाईकोर्ट के इस निर्णय को संजीव चतुर्वेदी के लिए बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है.
दरअसल, संजीव चतुर्वेदी ने केंद्र में अपना एम्पैनलमेंट नहीं हो पाने के पीछे की वजह जानने के लिए केंद्र से इससे संबंधित रिकॉर्ड मांगे थे, लेकिन इन्हें गोपनीय मानते हुए संजीव चतुर्वेदी को यह रिकॉर्ड अब तक नहीं मिल पाए थे. इसके बाद उन्होंने इसको लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. जिस पर अब हाई कोर्ट ने केंद्र को निर्देश जारी किए हैं.
हाईकोर्ट का यह फैसला उत्तराखंड कैडर के 2002 बैच के आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए आया है. मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की पीठ द्वारा आदेश में कहा गया,
...यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता ने अपना स्वयं का रिकॉर्ड मांगा है, प्रतिवादियों को संयुक्त सचिव के स्तर पर याचिकाकर्ता के पैनल की प्रक्रिया और निर्णय लेने से संबंधित रिकॉर्ड देने का निर्देश दिया जा रहा है, आदेश में आगे कहा गया है कि यह स्पष्ट किया जा रहा है कि याचिकाकर्ता के पैनल से संबंधित रिकॉर्ड ही याचिकाकर्ता को दिए जाएंगे.
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने उत्तराखंड सरकार को 15 नवंबर 2022 को भेजे अपने पत्र में कहा था कि मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति (एसीसी) ने केंद्र में संयुक्त सचिव/समकक्ष के पद पर रहने के लिए चतुर्वेदी के पैनल को मंजूरी नहीं दी है. इस निर्णय पर चतुर्वेदी ने केंद्र को अपना प्रतिनिधित्व प्रस्तुत किया था. अपने पैनल को अस्वीकार करने की वजह जानने के लिए संबंधित दस्तावेज मांगे थे, ताकि वह अस्वीकृति आदेश के खिलाफ उचित तरीके से प्रतिनिधित्व कर सकें.
चतुर्वेदी ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत एक आवेदन भी दायर किया था, जिसमें उनके गैर-पैनल से संबंधित प्रासंगिक दस्तावेज और अन्य विवरण मांगे थे. आरटीआई आवेदन के जवाब में, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8(1)(i) का हवाला देते हुए रिकॉर्ड साझा करने से इनकार कर दिया था. जवाब में कहा गया था कि आरटीआई अधिनियम की धारा मंत्रिपरिषद, सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श के रिकॉर्ड सहित कैबिनेट के कागजात के खुलासे पर रोक लगाती है. हालांकि, इसमें आगे कहा गया है कि, बशर्ते कि मंत्रिपरिषद के निर्णय, उसके कारण और जिस सामग्री के आधार पर निर्णय लिए गए थे, उसे निर्णय लेने के बाद और मामला पूरा होने या खत्म होने के बाद सार्वजनिक किया जाएगा.
चतुर्वेदी ने दिसंबर 2022 में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) का दरवाजा खटखटाया था. उनकी याचिका इस साल मई में इस आधार पर खारिज कर दी गई थी कि एसीसी और सिविल सेवा बोर्ड (सीएसबी) से संबंधित रिकॉर्ड का खुलासा गोपनीय दस्तावेज होने के कारण आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(आई) के अनुसार निषिद्ध है.
उन्होंने जून में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के समक्ष कैट के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें दावा किया गया था कि न्यायाधिकरण का आदेश केंद्र सरकार द्वारा प्रथम दृष्टया आधारहीन, काल्पनिक, तथ्यात्मक रूप से गलत और अप्रमाणित प्रस्तुतियों के आधार पर पारित किया गया है. डीओपीटी ने पिछले साल चतुर्वेदी के मामले में कैट की नैनीताल सर्किट बेंच के समक्ष एक जवाबी हलफनामा दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि सिविल सेवकों के लिए कोई 360 डिग्री प्रणाली नहीं है.