शिमला: हिमाचल की आर्थिक स्थिति को लेकर इस समय पक्ष-विपक्ष के बीच घमासान मचा हुआ है. हिमाचल दौरे पर आए केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने दावा किया कि केंद्र से भेजे जाने वाले पैसे की मदद से ही राज्य की कांग्रेस सरकार कर्मचारियों को वेतन व पेंशन दे पा रही है. संभवत उनका इशारा रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट व केंद्रीय करों में राज्य की हिस्सेदारी को लेकर था. नड्डा का बयान सामने आने के बाद हिमाचल की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार के मंत्रियों ने पलटवार किया और कहा कि उन्हें पद की गरिमा के अनुरूप बयान देना चाहिए.
इसी आरोप-प्रत्यारोप के बीच राज्य की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार के सामने अब 9 अक्टूबर बुधवार को पेंशनर्स के भुगतान की चुनौती है. हिमाचल में पौने दो लाख से अधिक पेंशनर्स की पेंशन के लिए खजाने में 800 करोड़ रुपए की रकम चाहिए. हिमाचल को केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के रूप में 740 करोड़ रुपए की रकम मिलती है. इसके अलावा रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के 520 करोड़ रुपए हर महीने केंद्र से आते हैं. सुखविंदर सरकार एकमुश्त 2000 करोड़ रुपए के भुगतान में समर्थ नहीं थी, लिहाजा कर्मचारियों को वेतन तो जरूर पहली तारीख को दे दिया गया, लेकिन पेंशनर्स अपनी पेंशन से वंचित रहे. कर्मचारियों के वेतन का खर्च 1200 करोड़ रुपए मासिक के करीब है. अब केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के रूप में 740 करोड़ रुपए की रकम आने से खजाने में सांस आएगी और पेंशनर्स का भुगतान किया जाएगा, लेकिन साथ ही ये सवाल बरकरार रहेगा कि आने वाले समय में भुगतान की व्यवस्था कैसे होगी?
सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू हरियाणा में प्रचार के बाद दिल्ली में हाईकमान से मिलने के बाद से शिमला लौट आए हैं. सोमवार से सचिवालय में रूटीन का काम संभालेंगे. इससे पहले बीमारी के कारण वे सरकारी आवास ओक ओवर में ही फाइलों को निपटा रहे थे. सचिवालय में वित्त विभाग उनके समक्ष सारी स्थितियों को लेकर प्रेजेंटेशन देगा. साथ ही आने वाले समय में संसाधनों को जुटाने पर चर्चा होगी.
पेंशनर्स में आक्रोश, मंत्रियों का कर रहे घेराव
हिमाचल प्रदेश के पेंशनर्स में इस बात का आक्रोश है कि उनका भुगतान एक तारीख को नहीं हो रहा है. पेंशनर्स संघ के आत्माराम शर्मा ने दुख जताया कि हिमाचल के इतिहास में कभी ये नहीं हुआ था कि पहली तारीख को पेंशन न आए. इस साल सितंबर महीने में दस तारीख को और अक्टूबर में नौ तारीख को पेंशन देने की बात की गई है. उन्हें पहले ही तरह ही पेंशन के भुगतान के लिए पहली तारीख वाली व्यवस्था चाहिए. पेंशनर्स का कहना है कि ग्रेच्युटी, लीव इनकैशमेंट का प्रति पेंशनर्स पांच से दस लाख रुपए अमाउंट सरकार के पास पेंडिंग है.
क्या है खजाने की स्थिति
हिमाचल सरकार के खजाने का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन व पेंशन पर खर्च होता है. हर महीने इन दो मदों में 2000 करोड़ रुपए चाहिए. इसके अलावा डीए की तीन किश्तें पेंडिंग हैं. यदि डीए की एक किश्त भी देनी हो तो कम से कम पौने छह सौ करोड़ रुपए की रकम चाहिए. दिवाली पर कर्मचारियों को डीए की एक किश्त का इंतजार है. यदि सरकार के खजाने की बात की जाए तो हर महीने रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट का 520 करोड़ रुपए, केंद्रीय करों में हिस्सेदारी का 740 करोड़ रुपए, खुद के टैक्स रेवेन्यू व नॉन टैक्स रेवेन्यू का अधिकतम 1200 करोड़ रुपए व अन्य मदों से करीब पांच सौ करोड़ रुपए मासिक का राजस्व जुटता है.
जीएसटी कंपनसेशन बंद होने और रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट का पैसा निरंतर कम होने से आर्थिक संकट और बढ़ गया है. लिहाजा सबसे बड़ी चुनौती 2000 करोड़ रुपए मासिक जुटाना है, ताकि कर्मचारियों व पेंशनर्स का भुगतान होता रहे. आर्थिक विशेषज्ञ राजीव कुमार सूद का कहना है कि जब तक राज्य सरकार अपने संसाधन नहीं बढ़ाएगी, तब तक स्थितियों में सुधार नहीं आ सकता. वहीं, सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि राज्य में कोई आर्थिक संकट नहीं है. कांग्रेस सरकार आर्थिक अनुशासन लाकर स्थितियों को सुधार रही है. उनका दावा है कि वर्ष 2027 तक हिमाचल को आत्मनिर्भर बनाया जाएगा.
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