Hindi Diwas 2024:हर साल देश में हिंदी दिवस मनाया जाता है. वैसे तो भारत में कई भाषाएं बोली जाती है, जो देश की संस्कृति को मजबूत करती है. हर राज्य की अपनी भाषा है, लेकिन हिंदी एक ऐसी भाषा है, जो आधे से ज्यादा देश में बोली जाती है. इसी क्रम में हिंदी से जुड़ी कुछ खास बातें बताते हैं. मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में हिंदी तीर्थ स्थापित किया गया है. यह हिंदी तीर्थ आज देश भर में हिंदी का अलख जगा रहा है.
इंदौर में महात्मा गांधी ने की थी अगुवाई
दरअसल, इंदौर के रविंद्रनाथ टैगोर मार्ग पर 112 साल पहले महात्मा गांधी ने समिति की स्थापना की अगुवाई की थी, तभी से हिंदी साहित्य समिति हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए सक्रिय है. 29 जुलाई 1910 को मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति की स्थापना हुई थी. उस दौर में महात्मा गांधी ने इंदौर से हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का शंखनाद किया था. गांधीजी ने महसूस किया कि एक भाषा के जरिए ही, राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है. लिहाजा महात्मा गांधी ने 1918 में इंदौर पहुंचकर, हिंदी साहित्य समिति के इस कार्यालय से ही सबसे पहले हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का शंखनाद किया.
उन्होंने यहीं से अपने पुत्र देवदत्त गांधी को हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए मद्रास भेजने का ऐलान भी किया था. इसके बाद पहली बार यहीं से देश के अन्य गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए धन संग्रह भी किया था. इसके बाद अन्य करीब 5 राज्यों में अलग-अलग 5 लोगों के जरिए हिंदी के प्रचार प्रसार के अभियान की शुरुआत हुई.
पूरे देश के लिए हिंदी मातृभाषा का शंखनाद
1935 में इंदौर में ही 24वें हिंदी साहित्य सम्मेलन का आयोजन महात्मा गांधी की उपस्थिति में ही संपन्न हुआ. 1940 में हिंदी विद्यापीठ की स्थापना भी हुई. राजभाषा अभियान समिति के पहले राष्ट्रीय सम्मेलन से हिन्दी भाषा को गति मिली. जो 1948 में राहुल सांकृत्यायन की अध्यक्षता में आयोजित हुआ. दक्षिण भारतीय हिंदी प्रचारकों का सम्मान हुआ. 1958 में आचार्य विनोबा भावे और महादेवी वर्मा की अगुवाई में ही हिंदी की वैज्ञानिक और तकनीकी पुस्तकों की राष्ट्रीय प्रदर्शनी यही आयोजित की गई.
इसी दौरान 1966 में यहां पहली बार उन दक्षिण भारतीय हिंदी के प्रचारकों का सम्मान हुआ. जो गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर सक्रीय रहे, जिसके फलस्वरूप धीरे-धीरे हिंदी जन-जन की बोली के रूप में स्थापित हो गई. इसी दरमियान 1978 में हिंदी साहित्य समिति ने साहित्यिक पत्रिका वीणा का स्वर्ण जयंती समारोह रामधारी सिंह दिनकर, अशोक वाजपेयी, न्यायमूर्ति गोवर्धन लाल ओझा प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा की मौजूदगी में संपन्न हुआ.
प्राचीन पांडुलिपि और 22000 पुस्तकें मौजूद
फिलहाल हिंदी के इस केंद्र में देश के शीर्षस्थ साहित्यकारों के विचार विनिमय और साहित्य सृजन की धरोहर भी मौजूद है. यहां हिंदी को और अधिक समृद्ध और उसकी जनप्रियता पूरे विश्व में बढ़ाने के लिए यहां संसाधन केंद्र के रूप में भारती-भवन का निर्माण भी किया गया है. जहां करीब चार मंजिला भवन में पुस्तकालय वाचनालय के अलावा हिंदी भाषा और साहित्य के क्षेत्र के उच्च स्तरीय शोध को बढ़ावा देने के लिए 2 शोध संस्थान एक अध्ययन कक्ष और एक सभागृह विकसित किया गया है.
यहां पढ़ें... किसान स्मार्टफोन से शुरु हुई स्मार्ट खेती, एक फोटो ले चुटकियों में बढ़ाता है फसल की पैदावार सूरज ढलने से पहले पन्ना का मजदूर बना करोड़पति, 32.80 कैरेट का करोड़ो का हीरा मिला |
ज्ञान-विज्ञान और तकनीक का हिंदी में ज्ञान
मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति द्वारा स्थापित डॉ परमेश्वर दत्त शर्मा शोध संस्थान के माध्यम से अभी तक 55 शोधार्थियों ने हिंदी के विभिन्न शोध किए हैं. यहां हिंदी साहित्य की समृद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां स्थित पुस्तकालय में देश की सबसे प्राचीन पुस्तकों के अलावा पांडुलिपियों और हिंदी साहित्य की करीब 22000 पुस्तकें मौजूद हैं. हिंदी भाषा के लिए यह एकमात्र ऐसा केंद्र है, जहां समसामयिक अध्ययन केंद्र द्वारा ज्ञान विज्ञान तकनीकी और समाज से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चल रही नवीनतम प्रवृत्तियों की जानकारी आम लोगों को हिंदी भाषा में देने का प्रयास होता है. फिलहाल यहां हिंदी एवं सभी भारतीय भाषाओं के संबंध में कंप्यूटर व सूचना तकनीक में भारतीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं.