कुल्लू: जिंदगी में कभी जिस काम की शुरुआत लीलावंती ने मजबूरी में की थी, वो वक्त के साथ-साथ उनका शौक बन गया. शौक भी ऐसा बना कि उन्होंने कुल्लूवी बुनकर एवं हस्तकला में पारंगत हासिल कर लिया. यही वजह है कि अपने उंगलियों की जादू से कुल्लूवी शॉप, टोपी, मफलर और पट्टू बनाने वाली लीलावंती का चयन राष्ट्रीय हथकरघा पुरस्कार 2023 के लिए हुआ है. उनको ये सम्मान अगस्त महीने में भारत सरकार द्वारा दिया जाएगा. सबसे दिलचस्प बात यह है कि लीलावंती के पति बलविंदर पाल को भी साल 2016 में राष्ट्रीय हथकरघा पुरस्कार मिल चुका है.
बड़ी मेहनत का काम है कुल्लूवी हस्तकरघा: देश भर में बुनकर अपने हाथों के हुनर से जिंदगी के ताने बाने बुन रहे हैं. वहीं, इन सब में रंग बिरंगी और ठंड में गर्मी का अहसास दिलाने वाली कुल्लूवी शॉल की चमक अलग ही है. ऊन से फूलदार डिजाइन वाली व खड्डी (हथकरघा) पर ताना-बाना बुनकर कुल्लूवी शॉल को तैयार किया जाता है. एक साधारण (कम बारीकी) वाली शॉल एक दिन में खड्डी पर तैयार की जाती है, लेकिन पारंपरिक डिजाइन और अधिक बारीकी वाली एक शॉल को तैयार करने में कम से कम 40 से 45 दिन का समय बुनकर को लगता है.
लीलावंती को मिलेगा राष्ट्रीय हथकरघा पुरस्कार: हिमाचल प्रदेश के बुनकर जगत से जुड़े लोगों एवं हथकरघा प्रेमियों के लिए खुशखबरी है. हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू की लीलावंती का चयन राष्ट्रीय हथकरघा पुरस्कार के लिए हुआ है. लीलावंती पत्नी बलविंदर पाल गांव अंगू डोभी डाकघर पूईद जिला कुल्लू को वर्ष 2023 का राष्ट्रीय हथकरघा पुरस्कार के लिए चयन हुआ है. यह पुरस्कार इन्हें अगस्त में भारत सरकार द्वारा प्रदान किया जाएगा. इस चयन की खुशखबरी सुन लीलावंती बेहद खुश है कि उसकी वर्षों की मेहनत का फल मिल गया है.
मजबूरी में की थी बुनकर काम की शुरुआत: लीलावंती ने बुनकर के क्षेत्र में महारत हासिल की है. वह कुल्लूवी शॉल, स्टाल, मफलर, पट्टू, टोपी आदि बनाने में कुशल कारीगर है. लीलावंती ने बताया कि उन्होंने 1999 में बुनकर का कार्य अपने पिता जी जोगराम से सीखा है. उस समय बहुत दिक्कत पेश आती थी. पहले पिता ने खड्डी में बिठाया और कुछ समझ नहीं आया. इसके बाद धीरे धीरे प्रयास किया और पट्टी बनाते बनाते आज हर प्रकार की कारीगरी कर लेती है. शुरू में तो मजबूरी से यह कार्य किया, लेकिन अब शौक बन गया है. इसके बाद साल 2003 में मेरी शादी पुईद के अंगू डोभी में बलविंदर पाल से हुई.
लीलावंती के पति को भी मिल चुका है राष्ट्रीय हथकरघा पुरस्कार: लीलावंती ने बताया कि उनके पति भी बुनकर का कार्य करते हैं, जिससे लीलावंती उनके साथ और भी कुशल हो गई. पति बलविंदर पाल को साल 2016 में राष्ट्रीय हथकरघा पुरस्कार मिल चुका है. अब दोनों मिलकर हाथों के हुनर का कार्य करते हैं. इससे पूरा परिवार को पालन पोषण किया जाता है. हमारी सालाना तीन लाख रुपये से अधिक की आय हो जाती है. आज साधारण शॉल की कीमत जहां 500 से शुरू होती है. वहीं, डिजाइनदार शॉल की कीमत 20 हजार से लेकर 40 हजार रुपये तक के बीच होती है.
देश के कई जगहों पर लगा चुकी है प्रदर्शनी: लीलावंती कुल्लू ही नहीं देश के कई हिस्सों में जैसे दिल्ली, सूरजकुंड, गांधी शिल्प बाजार में अपने हाथों से बुने उत्पादों की प्रदर्शनी लगा चुकी है. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में अपने उत्पादों को बेचने के लिए विभाग की ओर से लगाई प्रदर्शनी लगाती हैं. लीलावंती के परिवार में चार सदस्य है, जिसमें पति बलविंदर पाल और 17 वर्षीय बेटा थानेश्वर, 20 वर्षीय बेटी गायत्री शामिल हैं. दोनों बच्चों का पालन पोषण बुनकर के कार्य से ही किया जाता है. हथकरघा से ही परिवार की आर्थिकी मजबूत हुई है.
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