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हाईकोर्ट ने रद्द की आईपीएस अंजुम आरा व दो अन्य पुलिस अफसरों के खिलाफ दर्ज एफआईआर, पूर्व पुलिस कर्मी की पत्नी ने दर्ज करवाया था केस - HIMACHAL HIGH COURT

हिमाचल हाईकोर्ट ने आईपीएस अंजुम आरा और दो अन्य पुलिस अफसरों के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द की.

हिमाचल हाईकोर्ट
हिमाचल हाईकोर्ट (FILE)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jan 11, 2025, 9:16 PM IST

शिमला: आईपीएस अफसर अंजुम आरा व दो अन्य पुलिस अफसरों को हाईकोर्ट से राहत मिली है. हिमाचल हाईकोर्ट ने आईपीएस अंजुम आरा व दो अन्य अफसरों के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द कर दिया है. ये एफआईआर धर्मसुख नामक पूर्व पुलिसकर्मी की पत्नी ने दर्ज करवाई थी. धर्मसुख नेगी की पत्नी ने अपनी शिकायत में पति को जबरन सेवानिवृत किए जाने का आरोप लगाया था. यही नहीं, राज्य के पूर्व डीजीपी संजय कुंडू, दो रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर्स व तीन एसपी रैंक के अफसरों सहित 10 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी एफआईआर की गई थी.

ये प्राथमिकी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एक्ट की धारा 3 (1)(पी), एस.सी.-एस.टी. एक्ट 1989 के तहत दर्ज की गई थी. इस प्राथमिकी के खिलाफ आईपीएस अंजुम आरा और दो अन्य पुलिस अधिकारियों ने हाईकोर्ट का रुख किया था. साथ ही इस प्राथमिकी को रद्द करने की गुहार लगाई थी. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह ने प्राथमिकी को रद्द करते हुए कहा कि इस मामले में जांच एजेंसी की जांच में शिकायत में लगाए गए आरोपों के अनुसार कुछ भी नहीं पाया गया है.

न्यायालय ने ये भी कहा कि न ही शिकायतकर्ता महिला याचिकाकर्ताओं को कथित अपराध से जोड़ पाई है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि अस्पष्ट किस्म के आरोपों के आधार पर यदि कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो यह कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं होगा. हाईकोर्ट ने कहा कि हालांकि मामले की जांच के बाद, पुलिस ने निरस्तीकरण रिपोर्ट दाखिल करने का फैसला किया है, लेकिन केस के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में, याचिकाकर्ताओं को निरस्तीकरण रिपोर्ट पर अधिकारियों के निर्णय की प्रतीक्षा करने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता है.

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता पुलिस वाले राहत की सांस लेने के हकदार हैं, क्योंकि निरस्तीकरण रिपोर्ट के लंबित रहने के दौरान भी, अप्रत्यक्ष रूप से, उन्हें अपने खिलाफ एफआईआर का दंश झेलना पड़ता है.

क्या है मामला ?

धर्मसुख नामक पुलिसकर्मी की पत्नी ने आरोप लगाया था कि उनके पति को जबरन रिटायर किया गया है. पुलिस कर्मी की पत्नी ने पूर्व में डीजीपी रहे संजय कुंडू समेत अन्य पुलिस अधिकारियों पर पति के उत्पीड़न का आरोप लगाया था. पूर्व पुलिसकर्मी और उसकी पत्नी जनजातीय जिला किन्नौर के रहने वाले हैं. महिला ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ दाखिल की गई शिकायत में बताया था कि उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए उसके पति धर्म सुख नेगी को नौकरी से जबरन रिटायर किया.

महिला ने बताया था कि पुलिस अधिकारियों ने पहले उसके पति पर झूठे व मनगढ़ंत आरोप लगाए और फिर विभागीय जांच बैठा कर 9 जुलाई 2020 को अपमानित कर जबरन नौकरी से निकाल दिया. महिला का कहना था कि उसके पति की अभी आठ साल की सर्विस बची थी. आईपीएस अंजुम आरा सहित पुलिस अफसर पंकज शर्मा और बलदेव दत्त ने महिला की तरफ से उनके खिलाफ लगाए आरोपों को निराधार बताते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर प्राथमिकी को रद्द करने की गुहार लगाई थी. हाईकोर्ट से उक्त अफसरों को राहत मिली है और एफआईआर रद्द की गई है.

ये भी पढ़ें: फिर चर्चा में आया शानन पावर हाउस, जानिए क्यों हिमाचल हाईकोर्ट ने जारी किया पंजाब स्टेट इलेक्ट्रिसिटी कारपोरेशन को नोटिस

शिमला: आईपीएस अफसर अंजुम आरा व दो अन्य पुलिस अफसरों को हाईकोर्ट से राहत मिली है. हिमाचल हाईकोर्ट ने आईपीएस अंजुम आरा व दो अन्य अफसरों के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द कर दिया है. ये एफआईआर धर्मसुख नामक पूर्व पुलिसकर्मी की पत्नी ने दर्ज करवाई थी. धर्मसुख नेगी की पत्नी ने अपनी शिकायत में पति को जबरन सेवानिवृत किए जाने का आरोप लगाया था. यही नहीं, राज्य के पूर्व डीजीपी संजय कुंडू, दो रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर्स व तीन एसपी रैंक के अफसरों सहित 10 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी एफआईआर की गई थी.

ये प्राथमिकी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एक्ट की धारा 3 (1)(पी), एस.सी.-एस.टी. एक्ट 1989 के तहत दर्ज की गई थी. इस प्राथमिकी के खिलाफ आईपीएस अंजुम आरा और दो अन्य पुलिस अधिकारियों ने हाईकोर्ट का रुख किया था. साथ ही इस प्राथमिकी को रद्द करने की गुहार लगाई थी. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह ने प्राथमिकी को रद्द करते हुए कहा कि इस मामले में जांच एजेंसी की जांच में शिकायत में लगाए गए आरोपों के अनुसार कुछ भी नहीं पाया गया है.

न्यायालय ने ये भी कहा कि न ही शिकायतकर्ता महिला याचिकाकर्ताओं को कथित अपराध से जोड़ पाई है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि अस्पष्ट किस्म के आरोपों के आधार पर यदि कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो यह कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं होगा. हाईकोर्ट ने कहा कि हालांकि मामले की जांच के बाद, पुलिस ने निरस्तीकरण रिपोर्ट दाखिल करने का फैसला किया है, लेकिन केस के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में, याचिकाकर्ताओं को निरस्तीकरण रिपोर्ट पर अधिकारियों के निर्णय की प्रतीक्षा करने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता है.

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता पुलिस वाले राहत की सांस लेने के हकदार हैं, क्योंकि निरस्तीकरण रिपोर्ट के लंबित रहने के दौरान भी, अप्रत्यक्ष रूप से, उन्हें अपने खिलाफ एफआईआर का दंश झेलना पड़ता है.

क्या है मामला ?

धर्मसुख नामक पुलिसकर्मी की पत्नी ने आरोप लगाया था कि उनके पति को जबरन रिटायर किया गया है. पुलिस कर्मी की पत्नी ने पूर्व में डीजीपी रहे संजय कुंडू समेत अन्य पुलिस अधिकारियों पर पति के उत्पीड़न का आरोप लगाया था. पूर्व पुलिसकर्मी और उसकी पत्नी जनजातीय जिला किन्नौर के रहने वाले हैं. महिला ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ दाखिल की गई शिकायत में बताया था कि उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए उसके पति धर्म सुख नेगी को नौकरी से जबरन रिटायर किया.

महिला ने बताया था कि पुलिस अधिकारियों ने पहले उसके पति पर झूठे व मनगढ़ंत आरोप लगाए और फिर विभागीय जांच बैठा कर 9 जुलाई 2020 को अपमानित कर जबरन नौकरी से निकाल दिया. महिला का कहना था कि उसके पति की अभी आठ साल की सर्विस बची थी. आईपीएस अंजुम आरा सहित पुलिस अफसर पंकज शर्मा और बलदेव दत्त ने महिला की तरफ से उनके खिलाफ लगाए आरोपों को निराधार बताते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर प्राथमिकी को रद्द करने की गुहार लगाई थी. हाईकोर्ट से उक्त अफसरों को राहत मिली है और एफआईआर रद्द की गई है.

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