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हाटी समुदाय को जनजाति दर्जे को चुनौती देने से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई अब अगले साल, हाईकोर्ट ने लगाई है कानून के अमल पर रोक - HC ON HATTI COMMUNITY

हिमाचल प्रदेश के हाटी समुदाय को जनजाति का दर्जा देने से जुड़ी याचिकाओं पर हाईकोर्ट में नए साल में सुनवाई होगी.

HIMACHAL HIGH COURT
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (File Photo)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 5 hours ago

शिमला: हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के गिरिपार क्षेत्र के हाटी समुदाय को जनजाति का दर्जा देने से जुड़ी याचिकाओं पर अब नए साल में सुनवाई होगी. अदालत ने इस मामले की सुनवाई 18 मार्च 2025 को तय की है. उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने इस संबंध में जारी कानून के अमल पर रोक लगा रखी है. हाईकोर्ट ने जनजातीय विकास विभाग हिमाचल प्रदेश की तरफ से पहली जनवरी 2024 को जारी उस पत्र पर भी रोक लगाई है, जिसमें गिरिपार के लोगों को जनजातीय प्रमाण पत्र जारी करने के लिए डीसी सिरमौर को आदेश जारी कर दिए थे. हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ के समक्ष सोमवार को हुई सुनवाई में सभी पक्षकारों ने अगली सुनवाई 18 मार्च 2025 को निर्धारित करने का आग्रह किया.

क्या है पूरा मामला ?

उल्लेखनीय है कि गिरिपार के लोगों को जनजातीय दर्जे को लेकर हिमाचल सरकार ने यह मामला वर्ष 1995, 2006 व 2017 में केंद्र सरकार को भेजा था. केंद्र सरकार ने हर बार इस मामले को तीन प्रमुख कारणों से नकार दिया था.

  • इन कारणों में एक तो इस क्षेत्र की जनसंख्या में एकरूपता का न होना बताया गया.
  • दूसरा हाटी शब्द सभी निवासियों को कवर करने वाला एक व्यापक शब्द है.
  • जबकि तीसरा कारण था कि हाटी किसी जातीय समूह को रेखांकित नहीं करते हैं.

अदालत ने प्रथम दृष्टया इन तथ्यों को देखते हुए कानूनी तौर पर इन्हें जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाना वाजिब नहीं पाया है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि बिना जनसंख्या सर्वेक्षण के ही इस क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित कर दिया गया. अलग-अलग याचिकाओं में यह दलील दी गई है कि वे पहले से ही अनुसूचित जनजाति व अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं. प्रदेश में कोई भी हाटी जनजाति नहीं है और आरक्षण का अधिकार हाटी के नाम पर उच्च जाति के लोगों को भी दे दिया गया, जो कि कानूनी तौर पर गलत है.

कब दिया जाता है जनजातीय क्षेत्र का दर्जा ?

किसी भी भौगोलिक क्षेत्र को किसी समुदाय के नाम पर तब तक अनुसूचित जनजाति घोषित नहीं किया जा सकता, जब तक वह अनुसूचित जनजाति के रूप में सजातीय होने के मानदंड को पूरा नहीं करता हो. देश में आरक्षण नीति के अनुसार अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को पहले से ही मौजूदा कानून के तहत क्रमश: 15 और 27 फीसदी आरक्षण मिल रहा है. एससी और एसटी अधिनियम में संशोधन के साथ ही हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले के ट्रांसगिरि क्षेत्र के सभी लोगों को आरक्षण मिलना शुरू हो जाना था. इससे उन्हें उच्च और आर्थिक रूप से धनी समुदाय के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी. साथ ही पंचायती राज और शहरी निकाय संस्थानों में अनुसूचित जाति समुदायों के स्थान पर अब एसटी समुदाय को आरक्षण दिया जाएगा.

2022 में हाटी समुदाय को दिया था आदिवासी दर्जा

बता दें कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सितंबर 2022 में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के हाटी समुदाय को आदिवासी दर्जा देने की घोषणा की थी. इसके बाद केंद्र सरकार ने 4 अगस्त को जारी अधिसूचना के तहत ट्रांस गिरी क्षेत्र के हाटी को अनुसूचित जनजाति में शामिल कर दिया था. बाद में कुछ संस्थाओं ने हाईकोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर इसका विरोध किया है. इसी मामले में अब सुनवाई अगले साल मार्च में होगी.

ये भी पढ़ें: हिमाचल के स्कूलों में संविधान के मूल्य जानेंगे छात्र, सिलेबस में शामिल होगी संविधान से जुड़ी अध्ययन सामग्री

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ये भी पढ़ें: सीएम सुक्खू ने जारी किया 2025 का सरकारी कैलेंडर, जानिए अगले साल कितनी मिलेंगी छुट्टियां

शिमला: हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के गिरिपार क्षेत्र के हाटी समुदाय को जनजाति का दर्जा देने से जुड़ी याचिकाओं पर अब नए साल में सुनवाई होगी. अदालत ने इस मामले की सुनवाई 18 मार्च 2025 को तय की है. उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने इस संबंध में जारी कानून के अमल पर रोक लगा रखी है. हाईकोर्ट ने जनजातीय विकास विभाग हिमाचल प्रदेश की तरफ से पहली जनवरी 2024 को जारी उस पत्र पर भी रोक लगाई है, जिसमें गिरिपार के लोगों को जनजातीय प्रमाण पत्र जारी करने के लिए डीसी सिरमौर को आदेश जारी कर दिए थे. हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ के समक्ष सोमवार को हुई सुनवाई में सभी पक्षकारों ने अगली सुनवाई 18 मार्च 2025 को निर्धारित करने का आग्रह किया.

क्या है पूरा मामला ?

उल्लेखनीय है कि गिरिपार के लोगों को जनजातीय दर्जे को लेकर हिमाचल सरकार ने यह मामला वर्ष 1995, 2006 व 2017 में केंद्र सरकार को भेजा था. केंद्र सरकार ने हर बार इस मामले को तीन प्रमुख कारणों से नकार दिया था.

  • इन कारणों में एक तो इस क्षेत्र की जनसंख्या में एकरूपता का न होना बताया गया.
  • दूसरा हाटी शब्द सभी निवासियों को कवर करने वाला एक व्यापक शब्द है.
  • जबकि तीसरा कारण था कि हाटी किसी जातीय समूह को रेखांकित नहीं करते हैं.

अदालत ने प्रथम दृष्टया इन तथ्यों को देखते हुए कानूनी तौर पर इन्हें जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाना वाजिब नहीं पाया है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि बिना जनसंख्या सर्वेक्षण के ही इस क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित कर दिया गया. अलग-अलग याचिकाओं में यह दलील दी गई है कि वे पहले से ही अनुसूचित जनजाति व अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं. प्रदेश में कोई भी हाटी जनजाति नहीं है और आरक्षण का अधिकार हाटी के नाम पर उच्च जाति के लोगों को भी दे दिया गया, जो कि कानूनी तौर पर गलत है.

कब दिया जाता है जनजातीय क्षेत्र का दर्जा ?

किसी भी भौगोलिक क्षेत्र को किसी समुदाय के नाम पर तब तक अनुसूचित जनजाति घोषित नहीं किया जा सकता, जब तक वह अनुसूचित जनजाति के रूप में सजातीय होने के मानदंड को पूरा नहीं करता हो. देश में आरक्षण नीति के अनुसार अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को पहले से ही मौजूदा कानून के तहत क्रमश: 15 और 27 फीसदी आरक्षण मिल रहा है. एससी और एसटी अधिनियम में संशोधन के साथ ही हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले के ट्रांसगिरि क्षेत्र के सभी लोगों को आरक्षण मिलना शुरू हो जाना था. इससे उन्हें उच्च और आर्थिक रूप से धनी समुदाय के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी. साथ ही पंचायती राज और शहरी निकाय संस्थानों में अनुसूचित जाति समुदायों के स्थान पर अब एसटी समुदाय को आरक्षण दिया जाएगा.

2022 में हाटी समुदाय को दिया था आदिवासी दर्जा

बता दें कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सितंबर 2022 में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के हाटी समुदाय को आदिवासी दर्जा देने की घोषणा की थी. इसके बाद केंद्र सरकार ने 4 अगस्त को जारी अधिसूचना के तहत ट्रांस गिरी क्षेत्र के हाटी को अनुसूचित जनजाति में शामिल कर दिया था. बाद में कुछ संस्थाओं ने हाईकोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर इसका विरोध किया है. इसी मामले में अब सुनवाई अगले साल मार्च में होगी.

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