शिमला: विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने हिमाचल की जनता के साथ दस वादे किए थे. चुनाव पूर्व दस गारंटियों में सबसे प्रमुख ओपीएस की गारंटी बेशक पूरी हो गई है, लेकिन अन्य गारंटियों पर सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार को विपक्ष जमकर घेर रहा है. इधर, नए साल में सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने साधन-संपन्न लोगों से बिजली की सब्सिडी छोड़ने का आग्रह किया है. सबसे पहले सीएम सुक्खू ने खुद 125 यूनिट की सब्सिडी त्याग दी. सीएम ने खुलासा किया कि उनके नाम पर 5 बिजली मीटर थे. सीएम ने सब्सिडी छोड़ी तो कैबिनेट मंत्रियों ने उनका अनुसरण किया. लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने भी सब्सिडी का त्याग किया. उनके नाम पर बिजली के 15 मीटर हैं. इसी तरह कृषि व पशुपालन मंत्री चंद्र कुमार ने भी सब्सिडी छोड़ दी है.
पूर्व सरकार ने दी थी 125 यूनिट निशुल्क बिजली
उल्लेखनीय है कि पूर्व में जयराम सरकार ने घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट निशुल्क बिजली का ऐलान किया था. घरेलू उपभोक्ताओं व अन्य सब्सिडी के देने से बिजली बोर्ड को हर साल 1200 करोड़ का बोझ पड़ता है. अकेले घरेलू उपभोक्ताओं की 125 यूनिट पर 800 करोड़ सालाना खर्च होते हैं. बेशक हिमाचल ऊर्जा राज्य है, लेकिन खजाने की आर्थिक सेहत ऐसी नहीं है कि इस बोझ को सहन कर सके. चुनाव पूर्व जब कांग्रेस ने वादा किया था तो ये तय हो गया था कि लाखों उपभोक्ताओं को बिजली का कोई बिल नहीं आएगा, लेकिन जैसे ही बिजली बोर्ड की खस्ता हालत होने लगी तो सरकार ने उद्योगों को भी महंगी बिजली का झटका दिया और घरेलू उपभोक्ताओं के सामने प्रस्ताव रख दिया कि विलिंगली सब्सिडी छोड़ दो.
बिजली बोर्ड ने तैयार किया परफार्मा
जैसे ही सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपनी इस योजना को मूर्त रूप देने की सोची, बिजली बोर्ड ने फौरन परफार्मा तैयार कर दिया. सचिवालय में अफसरों ने इस परफार्मे को भरकर सब्सिडी छोड़नी शुरू कर दी. वैसे भी अधिकारियों की सब्सिडी सरकार ने बंद कर दी थी. यही नहीं, सेना के बड़े अफसरों की सब्सिडी भी बंद की गई. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू की योजना है कि सिर्फ और सिर्फ गरीब व्यक्ति को ही सब्सिडी मिले. उन्हें भविष्य में तीन सौ यूनिट बिजली निशुल्क देने का प्लान है.
हिमाचल में बिजली मीटरों का आंकड़ा
हिमाचल प्रदेश में राज्य बिजली बोर्ड से जुड़े आंकड़े देखें तो इस समय हिमाचल में साढ़े तेईस लाख से अधिक बिजली मीटर हैं. घरेलू बिजली मीटरों की कुल संख्या 23 लाख, 55 हजार 966 है. बिजली बोर्ड इस समय मीटरों की केवाईसी प्रक्रिया पूरी कर रहा है. अभी तक बोर्ड इनमें से 17 लाख से अधिक मीटरों की केवाईसी कर चुका है. अभी तक कुल मिलाकर 73 प्रतिशत मीटरों की केवाईसी हो चुकी है. बाकायदा मीटरों को स्कैन किया जा रहा है. बिजली बोर्ड अब ऑनलाइन भी सब्सिडी सरेंडर करने का इंतजाम कर चुका है. फरवरी महीने से राज्य सरकार के क्लास वन और क्लास-टू गजेटेड अफसरों की सब्सिडी बंद हो रही है.
महंगी बिजली का झटका
सब्सिडी खत्म होने से उपभोक्ताओं को महंगी बिजली का झटका लगेगा. अभी 125 यूनिट तक बिजली का बिल नहीं आता है. ये बात अलग है कि इस स्लैब में बिजली का रेट 5.60 रुपए प्रति यूनिट है. इसके बाद 126 से 300 यूनिट तक बिजली दर छह रुपए प्रति यूनिट है. वहीं, यदि उपभोक्ता 300 यूनिट से ऊपर खर्च करता है तो ये दर 6.25 रुपए प्रति यूनिट हो जाती है. यानी सब्सिडी को देखें तो बोर्ड के अनुसार 125 यूनिट तक ये सब्सिडी 5.60 रुपए, फिर 300 यूनिट तक 1.83 रुपए और 300 यूनिट से ऊपर 1.03 रुपए प्रति यूनिट दी जा रही है. इससे बोर्ड पर सालाना 800 करोड़ का बोझ केवल घरेलू उपभोक्ताओं को पड़ता है. सब्सिडी खत्म होने पर रेट एक समान होगा.
भाजपा बोली, क्या हुआ तेरा वादा
नेता प्रतिपक्ष और पूर्व सीएम जयराम ठाकुर का कहना है, "भाजपा सरकार ने घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट निशुल्क बिजली देकर राहत पहुंचाई थी. कांग्रेस ने चुनाव से पहले वादा किया था और दस गारंटियों में से एक गारंटी ये दी थी कि सत्ता में आते ही 300 यूनिट फ्री बिजली दी जाएगी. अब उस वादे का क्या हुआ?" नेता प्रतिपक्ष ने तंज कसा कि पूर्व सरकारों के समय दी गई राहतों को जारी रखने में भी ये सरकार असफल हुई है. जयराम ठाकुर का कहना है कि उद्योगों की बिजली भी महंगी की गई है. हालांकि उद्योगों की महंगी बिजली को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. मामला हाईकोर्ट में है, लेकिन राज्य सरकार उद्योगों की सब्सिडी खत्म कर कम से कम 600 करोड़ रुपए सालाना की आय जुटाना चाहती है.
वहीं, बिजली बोर्ड कर्मचारी यूनियन के पदाधिकारी हीरालाल वर्मा का कहना है कि बोर्ड की स्थितियों को सुधारे बिना ऐसी घोषणाएं करने से बचना चाहिए. वरिष्ठ मीडिया कर्मी धनंजय शर्मा का कहना है, "बिजली बोर्ड में फील्ड स्टाफ की भारी कमी है. बोर्ड की आर्थिक सेहत पहले से ही ठीक नहीं है, ऐसे में फ्री की रेवड़ियों को बांटने की बजाय व्यवहारिक कदम उठाने चाहिए."