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पंचबली क्या है? जो पुनपुन और गया में पिंडदान नहीं कर सकते, वे इस पद्धति से कर सकते हैं तर्पण - Gaya Pitru Paksha Mela 2024 - GAYA PITRU PAKSHA MELA 2024

What is Panchbali : अमूमन माना जाता है कि जो कोई भी सबसे पहले पुनपुन घाट पर पिंडदान नहीं कर सकते हैं, वह गया में पिंडदान करने के लिए आते हैं लेकिन अगर किसी कारण से आप गया भी नहीं आ सकते हैं तो पंचबली पद्धति से पूर्वजों का पिंडदान कर सकते हैं. ऐसे में जानिये कि आखिर ये पंचबली क्या है?

पंचबली माध्यम से पितरों का पिंडदान
पंचबली माध्यम से पितरों का पिंडदान (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Sep 17, 2024, 1:41 PM IST

पंडित राजा आचार्य (ETV Bharat)

गयाः बिहार के पुनपुन और गया में पूर्वजों का पिंडदान करने की परंपरा है. माना जाता है कि यहां कर्मकांड करने से पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसलिए यहां सालभर कर्मकांड चलते रहता है लेकिन पितृपक्ष में यहां काफी भीड़ जुटती है. बिहार के साथ-साथ दूसरे राज्यों और विदेशों से भी लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान करने के लिए यहां आते हैं.

पुनपुन में प्रथम पिंडदान की परंपराः 17 सितंबर से पितृपक्ष मेले की शुरुआत हो गई है. 2 अक्टूबर तक चलने वाला यह मेला इस बार 16 दिनों का होगा. इस दौरान काफी संख्या में लोग पितरों का पिंडदान करने के लिए पहुंचेंगे. मान्यता है कि पहला पिंडदान पुनपुन में करना चाहिए. भगवान श्रीराम अपने पिता का यहां पिंडदान किए थे. इसलिए पहले यहां पिंडदान करने की परंपरा है.

गया स्थित विष्णुपद मंदिर
गया स्थित विष्णुपद मंदिर (ETV Bharat)

पंचबली पद्धति से पिंडदानः गया के रामाचार्य वैदिक मंत्रालय के संचालक पंडित राजा आचार्य ने पिंडदान की दुविधा को दूर किया. उन्होंने बताया कि पुनपुन में प्रथम पिंडदान करने की परंपरा है लेकिन जो लोग यहां नहीं जा सकते वे गया में पूर्वजों का पिंडदान कर सकते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि जो लोग किसी कारण से गया भी नहीं आ सकते हैं वे पंचबली माध्यम से पिंडदान कर सकते हैं. इससे उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलेगी.

"पुनपुन में में अगर पिंडदान नहीं कर सकते हैं तो गया आएं. अगर यहां भी आना संभव नहीं हो तो घर पर ही पंचबली के माध्यम से पूर्वजों के लिए पिंडदान कर सकते हैं. इससे भी पूर्वज प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. गया में 17 दिनों तक नहीं रुक सकते हैं तो 8 दिन, 5 दिन, 3 दिन या 1 दिन रुककर पिंडदान कर सकते हैं. इससे भी पितरों को शांति मिलती है." -पंडित राजा आचार्य, रामाचार्य वैदिक मंत्रालय के संचालक

विष्णुपद मंदिर में भगवान के पदचिह्न
विष्णुपद मंदिर में भगवान के पदचिह्न (ETV Bharat)

पंचबली क्या है?: पंडित राजा आचार्य ने बताया कि जो लोग पुनपुन और गया नहीं आ सकते वे इस माध्यम से तर्पण करें. घर में रहकर भी पंचबली निकाल सकते हैं. पंचबली में गौ(गाय), कौवे, श्वान(कुत्ता), पितर(पूर्वज) और चींटियों के लिए आहार निकलना होता है. इससे पितृ प्रसन्न होते हैं. उनकी आत्मा को शांति मिलती है.

गया स्थित विष्णुपद मंदिर में मौजूद श्रद्धालु
गया स्थित विष्णुपद मंदिर में मौजूद श्रद्धालु (ETV Bharat)

महालया पक्ष अनंत चतुर्दशी चटक श्राद्धः पंडित राजा आचार्य ने बताया कि जो पुनपुन में पिंडदान नहीं कर सकते और गया आना चाहते हैं वे गया धाम के गोदावरी सरोवर पर पिंडदान कर सकते हैं. त्रैपाक्षिक श्राद्ध करने वाले यात्री पहले दिन पुनपुन या गोदावरी सरोवर पर पिंडदान का कर्मकांड करते हैं. आचार्य कहते हैं कि महालया पक्ष अनंत चतुर्दशी के दिन पुनपुन नदी में चटक श्राद्ध करना चाहिए. ऐसा नहीं होने पर गोदावरी सरोवर पर भी चटक लगाकर पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं.

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पंडित राजा आचार्य (ETV Bharat)

गयाः बिहार के पुनपुन और गया में पूर्वजों का पिंडदान करने की परंपरा है. माना जाता है कि यहां कर्मकांड करने से पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसलिए यहां सालभर कर्मकांड चलते रहता है लेकिन पितृपक्ष में यहां काफी भीड़ जुटती है. बिहार के साथ-साथ दूसरे राज्यों और विदेशों से भी लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान करने के लिए यहां आते हैं.

पुनपुन में प्रथम पिंडदान की परंपराः 17 सितंबर से पितृपक्ष मेले की शुरुआत हो गई है. 2 अक्टूबर तक चलने वाला यह मेला इस बार 16 दिनों का होगा. इस दौरान काफी संख्या में लोग पितरों का पिंडदान करने के लिए पहुंचेंगे. मान्यता है कि पहला पिंडदान पुनपुन में करना चाहिए. भगवान श्रीराम अपने पिता का यहां पिंडदान किए थे. इसलिए पहले यहां पिंडदान करने की परंपरा है.

गया स्थित विष्णुपद मंदिर
गया स्थित विष्णुपद मंदिर (ETV Bharat)

पंचबली पद्धति से पिंडदानः गया के रामाचार्य वैदिक मंत्रालय के संचालक पंडित राजा आचार्य ने पिंडदान की दुविधा को दूर किया. उन्होंने बताया कि पुनपुन में प्रथम पिंडदान करने की परंपरा है लेकिन जो लोग यहां नहीं जा सकते वे गया में पूर्वजों का पिंडदान कर सकते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि जो लोग किसी कारण से गया भी नहीं आ सकते हैं वे पंचबली माध्यम से पिंडदान कर सकते हैं. इससे उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलेगी.

"पुनपुन में में अगर पिंडदान नहीं कर सकते हैं तो गया आएं. अगर यहां भी आना संभव नहीं हो तो घर पर ही पंचबली के माध्यम से पूर्वजों के लिए पिंडदान कर सकते हैं. इससे भी पूर्वज प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. गया में 17 दिनों तक नहीं रुक सकते हैं तो 8 दिन, 5 दिन, 3 दिन या 1 दिन रुककर पिंडदान कर सकते हैं. इससे भी पितरों को शांति मिलती है." -पंडित राजा आचार्य, रामाचार्य वैदिक मंत्रालय के संचालक

विष्णुपद मंदिर में भगवान के पदचिह्न
विष्णुपद मंदिर में भगवान के पदचिह्न (ETV Bharat)

पंचबली क्या है?: पंडित राजा आचार्य ने बताया कि जो लोग पुनपुन और गया नहीं आ सकते वे इस माध्यम से तर्पण करें. घर में रहकर भी पंचबली निकाल सकते हैं. पंचबली में गौ(गाय), कौवे, श्वान(कुत्ता), पितर(पूर्वज) और चींटियों के लिए आहार निकलना होता है. इससे पितृ प्रसन्न होते हैं. उनकी आत्मा को शांति मिलती है.

गया स्थित विष्णुपद मंदिर में मौजूद श्रद्धालु
गया स्थित विष्णुपद मंदिर में मौजूद श्रद्धालु (ETV Bharat)

महालया पक्ष अनंत चतुर्दशी चटक श्राद्धः पंडित राजा आचार्य ने बताया कि जो पुनपुन में पिंडदान नहीं कर सकते और गया आना चाहते हैं वे गया धाम के गोदावरी सरोवर पर पिंडदान कर सकते हैं. त्रैपाक्षिक श्राद्ध करने वाले यात्री पहले दिन पुनपुन या गोदावरी सरोवर पर पिंडदान का कर्मकांड करते हैं. आचार्य कहते हैं कि महालया पक्ष अनंत चतुर्दशी के दिन पुनपुन नदी में चटक श्राद्ध करना चाहिए. ऐसा नहीं होने पर गोदावरी सरोवर पर भी चटक लगाकर पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं.

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