देहरादून: केदारनाथ आपदा के बाद उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन को लेकर बेहद ज्यादा सक्रियता दिखाई गई. तमाम आपदा प्रबंधन से जुड़े एप और एसडीआरएफ जैसे फोर्स का भी गठन किया गया, लेकिन नियोजित विकास को लेकर सरकार कोई प्लान नहीं बना. केदारनाथ आपदा की 11वीं बरसी पर आज पर्यावरण से जुड़े विशेषज्ञ एकत्रित हुए. उन्होंने प्रदेश में मौजूदा पर्यावरणीय स्थितियों पर बातचीत की. इस दौरान लैंडस्लाइड से लेकर लगातार जंगलों के कटान, बेतरतीब निर्माण जैसे विषयों पर विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी.
केदारनाथ और बदरीनाथ के मास्टर प्लान पर भी विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी. उन्होंने माना जिस तरह से केदारनाथ में 2013 के दौरान आपदा आई थी यदि वही हालत फिर से बनते हैं तो इस बार नुकसान पहले से भी ज्यादा होगा. दरअसल, पर्यावरण विशेषज्ञ बदरीनाथ और केदारनाथ में हो रहे निर्माण के खिलाफ बात रख रहे थे. उनका कहना था कि इस क्षेत्र को विकसित करने की होड़ में सरकार नई मुसीबत को आमंत्रित कर रही है.
पर्यावरण विशेषज्ञ पीयूष रौतेला ने कहा विशेषज्ञों के बीच इस पर भी चर्चा की गई कि आखिरकार सरकार ने पुरानी आपदाओं से कितना सीखा है? जिस तरह सरकार बिना आपदाओं की परवाह किए निर्माण कार्य को मंजूरी दे रही है, चार धाम यात्रा को भी रेगुलेट नहीं किया जा रहा है, उससे यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में आपदाओं के लिहाज से प्रदेश की मुसीबत बढ़ने वाली है. उन्होंने कहा उत्तराखंड में पिछले करीब 200 साल से कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है. ऐसे में जिस तरह से निर्माण हुए है उससे यह साफ है कि जल्द ही यदि कोई बड़ा भूकंप आता है तो उसका सबसे ज्यादा नुकसान उत्तराखंड के शहरी क्षेत्रों को होगा.