जयपुर. ईआरसीपी का सपना अब पूरा होने जा रहा है. रविवार को जयपुर में राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और मध्यप्रदेश के सीएम डॉ. मोहन यादव के बीच अहम वार्ता हुई. इसके बाद केंद्र सरकार, राजस्थान और मध्यप्रदेश सरकार के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर हुए.
ईआरसीपी का रास्ता साफ होने पर रविवार शाम को भरतपुर में भाजपा कार्यालय और बिजली घर चौराहे पर आतिशबाजी कर जश्न मनाया गया. वहीं, जयपुर स्थित प्रदेश भाजपा कार्यालय में भी कार्यकर्ताओं ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाई व आतिशबाजी कर खुशियां मनाई. इस परियोजना का राजस्थान के 13 जिलों व मध्यप्रदेश के 13 जिलों की जनता को लाभ पहुंचेगा.
क्या है ईआरसीपी ? : पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) में कालीसिंध, पार्वती, मेज और चाकन उप-बेसिनों में उपलब्ध व्यर्थ बहने वाले मानसून के पानी का उपयोग किया जाना है. इसे बनास, गंभीरी, बाणगंगा के पानी की कमी वाले उप-बेसिनों में मोड़कर चंबल बेसिन के भीतर पानी के इंटर बेसिन ट्रांसफर की परिकल्पना की गई थी. योजना के पूरा होने पर पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों को पीने और औद्योगिक पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होगी.
परियोजना में लगभग 2.82 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई को लेकर दृष्टिकोण रखा गया है. विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने 13 जिलों के 83 विधानसभा क्षेत्र में इस प्रोजेक्ट को चुनावी मुद्दा बनाया था, जाहिर है कि वसुंधरा राजे सरकार के दौरान इस परियोजना की परिकल्पना की गई थी. इस योजना पर 40 हजार करोड़ रुपए के व्यय का अनुमान है. योजना से लाभान्वित होने वाले जिलों में अलवर, दौसा, जयपुर, अजमेर, टोंक, सवाई माधोपुर, बूंदी, कोटा, बारां , झालावाड़, भरतपुर, धौलपुर और करौली शामिल हैं.
मध्यप्रदेश में बनेंगे 7 बांध : ईआरसीपी परियोजना शिवपुरी, ग्वालियर, भिंड, मुरैना, इंदौर, देवास सहित कई जिलों में पेयजल के साथ औद्योगिक जरूरतों को पूरा करेगी. इसके तहत 7 बांध बनाए जाएंगे. इस परियोजना से दोनों ही राज्यों में औद्योगिक निवेश, पर्यटन और शैक्षणिक संस्थाओं को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही, सिंचाई क्षेत्र और अधिक समृद्ध होगा.
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परियोजना के फायदे :
- पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के 2.80 लाख हैक्टेयर कृषि भूमि को सिंचाई की सुविधा मिल सकेगी.
- पूर्वी राजस्थान के 3.50 करोड़ लोगों को पीने का पानी मिल सकेगा.
- पूर्वी राजस्थान का भूजल स्तर सुधरेगा.
- पूर्वी राजस्थान में औद्योगिक निवेश बढ़ेगा.
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कई जिलों में हुए थे प्रदर्शन : बता दें कि ईआरसीपी को लागू करने के लिए दौसा सहित कई जिलों में किसानों ने धरना-प्रदर्शन किया था. सिकराय उपखंड कार्यालय के बाहर कई दिनों तक किसानों का क्रमिक धरना जारी रहा है.महुवा, बांदीकुई और दौसा में भी भारतीय किसान संघ की अलग-अलग इकाई ने धरना दिया. दौसा किसान संघ की मांग थी कि ईआरसीपी ( पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना ) को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करें. वहीं, जिले के करीब 24 बांधों को डीपीआर में जोड़ा जाए, जिससे क्षेत्र के किसान रोजगार के अभाव में पलायन करने को मजबूर ना हो.
ये आ रही थी समस्या : ईआरसीपी के तहत बांध बनाए जाएंगे और साथ ही, पानी का बंटवारे भी दोनों राज्यों में होगा. मध्यप्रदेश और राजस्थान के बीच यह कई सालों से विवाद का विषय था. राजस्थान सरकार 2005 में हुए समझौते के अनुसार बांध बना रही थी. राजस्थान की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार का कहना था कि यदि परियोजना में आने वाले बांध और बैराज का डूब क्षेत्र दूसरे राज्य की सीमा में नहीं आता तो ऐसे मामलों में राज्य की सहमति जरूरी नहीं है. मध्यप्रदेश सरकार ने ईआरसीपी के लिए एनओसी जारी नहीं की थी. इसके बाद पूर्ववर्ती गहलोत सरकार ने खुद के खर्च पर ही ईआरसीपी के लक्ष्य को पूर्ण करने का फैसला लिया था. सरकार की ओर से बांध बनाया जाने लगा तो मध्यप्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. अब दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार है. ऐसे में इस विवाद का हल निकाला गया है.
अब तक ईआरसीपी लागू नहीं होने से किसानों पर रोजी-रोटी के लिए संकट खड़ा हो गया था, जिसके कारण किसान वर्ग ने पलायन करना शुरू कर दिया था. वे दूर-दराज रहकर मजदूरी करने को मजबूर हैं. दौसा के किसान बताते हैं कि राजस्थान की पिछली सरकार ने ईआरसीपी के लिए 14 हजार करोड़ का बजट बनाया है. इसका सदुपयोग करते हुए ईआरसीपी योजना को शुरू किया जाए. जिससे करीब 2 साल में पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के बांधों में पानी की आवक हो जाएगी. पानी की आवक होने से क्षेत्र का किसान गांव में रहकर ही अपना जीवनयापन कर पाएगा. अगर इस योजना का लाभ किसान को नहीं मिला तो, पानी की कमी के कारण क्षेत्र का किसान पलायन करने को मजबूर होगा.