दमोह। दमोह के दिव्यांग पुनर्वास केंद्र में नियुक्तियों में फर्जीवाड़े के बाद अब जिला पंचायत में भी ऐसा ही मामला सामने आया है. 3 कर्मचारियों की नियुक्तियां अवैधानिक तरीके से की गई हैं. जब ये मामला मध्य प्रदेश पंचायत विभाग के अपर मुख्य सचिव तक पहुंचा तो उन्होंने पड़ताल के बाद तीनों नियुक्तियों को निरस्त करने के आदेश जारी कर दिए. लेकिन जिला पंचायत के आला अधिकारियों ने तीनों नियुक्तियों को निरस्त नहीं किया. गजब ये है कि अपर मुख्य सचिव के आदेश आने के बाद बीते 6 वर्ष से ये लोग मजे से नौकरी कर रहे हैं.
तीनों कर्मचारियों की नियुक्तियां संविदा पर हुईं
दरअसल, जिला पंचायत के अधीन आने वाले डीआरडीए और मनरेगा के अंतर्गत संतोष कुमार अहिरवार एवं भूपेंद्र असाटी ने 14 जून 2004 को और हरवंश चौबे डाटा एंट्री पद पर 3 जून 2008 को संविदा आधार पर नियुक्त किया था. तत्कालीन कलेक्टर श्रीनिवास शर्मा ने 8 फरवरी 2018 को शासन द्वारा निर्धारित गाइडलाइन का उल्लंघन करते हुए उपरोक्त तीनों संविदा कर्मचारियों को नियमित कर दिया. नियुक्ति का यह प्रस्ताव जिला पंचायत की सामान्य सभा में 17 नवंबर 2017 को पास किया गया. उसी के आधार पर कलेक्टर ने तीनों को नियमित कर दिया. इनकी नियुक्तियों में हवाला दिया गया था कि संतोष कुमार अहिरवार और भूपेंद्र असाटी विगत 15 वर्षों से तथा हरवंश चौबे 10 वर्षों से पदस्थ हैं. इनमें पंचायत प्रकोष्ठ में सहायक ग्रेड 3 में एक पद, डीआरडीए में प्रशासन मद में समकक्ष रिक्त स्टेनो टाइपिस्ट पदों पर नियुक्त किए जाने का प्रस्ताव पारित किया जाता है.
कमेटी ने नियुक्ति को लेकर की विपरीत टिप्पणी
इन प्रस्तावों के आधार पर तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ ने तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया और उनसे उनकी नियमित नियुक्ति के संबंध में अभिमत मांगा. जिस पर कमेटी ने पंचायत विकास विभाग की दिशा-निर्देशों एवं नियमितीकरण गाइडलाइन का हवाला देते हुए लिखा "तीनों कर्मचारियों को संविदा से नियमित करने का कोई दिशा-निर्देश नहीं हैं." तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ ने जांच कमेटी की रिपोर्ट कलेक्टर श्रीनिवास शर्मा को भेजी. जिस पर कलेक्टर ने उस पर 27 जनवरी 2018 को टीप अंकित करते हुए कहा "सामान्य प्रशासन विभाग के परिपत्र में दैनिक वेतनभोगी एवं स्थाई कर्मचारियों को नियमित करने के दिशा-निर्देश दिए गए हैं." उसमें भी लिखा गया कि जो कर्मचारी जिस योग्यता के आधार पर पदधारित कर सकता है, उसे उस पद पर नियुक्त किए जाने का प्रावधान है.
कलेक्टर ने संविदा कर्मियों को किया नियमित
कलेक्टर ने संतोष कुमार अहिरवार को उसकी योग्यता एमए, पीजीडीसीए, टाइपिंग के आधार पर सहायक ग्रेड 3, तथा भूपेंद्र असाटी को एमएससी पीजीडीसीए टाइपिंग और हरवंश चौबे को एमए पीजीडीसीए, एमएसडब्ल्यू, टाइपिंग के आधार पर मुद्र लेखन लिपिक के समकक्ष पद पर नियमित किया. कलेक्टर ने जो जांच रिपोर्ट जिला पंचायत सीईओ द्वारा भेजी गई थी उस रिपोर्ट को ही कठघरे में खड़ा कर दिया. उसमे टीप अंकित की गई कि वर्तमान में डीआरडीए का विलय जिला पंचायत में हो चुका है. इस आधार पर नियमित न किए जाने का नियम केवल दैनिक वेतन भोगी एवं अस्थाई कर्मचारियों पर लागू होता है. संविदा कर्मचारियों पर नहीं. टीप में रिपोर्ट के उस अंश को भी गलत ठहराया गया, जिसमें कहा गया कि मध्य प्रदेश पंचायत नियम 1999 अनुसूची एक के आधार पर विभागीय परीक्षा उत्तीर्ण करना आवश्यक है.
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पंचायत विभाग ने किया था नियुक्तियों को निरस्त
कलेक्टर द्वारा तीनों कर्मचारियों को नियमित किए जाने का मामला जब तत्कालीन मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस के पास पहुंचा तो उन्होंने मामले में नियमितीकरण गाइडलाइन का हवाला देते हुए लिखा "कलेक्टर ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर तीनों कर्मचारियों की नियमित नियुक्ति की हैं. इसमें पारदर्शी एवं नियमित प्रक्रिया को नहीं अपनाया गया है. कलेक्टर का यह कृत्य स्वेच्छाचारिता पूर्ण एवं व्यक्ति विशेष को लाभ देने की दृष्टि से किया गया है. जिसके वह पात्र नहीं थे." अपर मुख्य सचिव ने 23 अप्रैल 2018 को अपने आदेश में तीनों नियुक्तियों को निरस्त करने का आदेश दिया है.इस मामले में कलेक्टर सुधीर कुमार कोचर का कहना "मामला मेरे संज्ञान में आया है. मामले की दस्तावेज मंगाए हैं. नियम अनुसार कार्रवाई की जाएगी."