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निर्दलीय ने बढ़ाई दिग्गजों की परेशानी, अपने और बाहरी दोनों से टेंशन, सवाल-कौन करेगा किला फतह? - Buxar Lok Sabha seat

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 28, 2024, 8:00 PM IST

Updated : May 28, 2024, 8:14 PM IST

Buxar Lok Sabha Seat: बक्सर लोकसभा सीट हॉट सीट बन गयी है. केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे और पूर्व आईपीएस आनंद मिश्रा ने बक्सर लोकसभा सीट को चर्चा में ला दिया है. अश्विनी चौबे ने जहां बक्सर लोकसभा क्षेत्र से दूरी बना ली है, वहीं भाजपा से बगावत कर आनंद मिश्रा चुनाव के मैदान में हैं. निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ददन पहलवान भी अखाड़े में है.

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बक्सर: बिहार के 40 लोकसभा में से बक्सर काफी अहम सीटों में से एक है. बक्सर की लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर पहुंच चुकी है. किसी भी गठबंधन के लिए जीत का दवा आसान नहीं दिख रहा है. भाजपा उम्मीदवार मिथिलेश तिवारी के लिए जहां निर्दलीय उम्मीदवार आनंद मिश्रा ने मुश्किलें बढ़ा दी है.

ददन पहलवान ने बिगाड़ा समीकरण: वहीं राष्ट्रीय जनता दल उम्मीदवार सुधाकर सिंह भी मुश्किल में हैं. ददन पहलवान ने उनकी मुश्किलें बढ़ा रखी हैं. बहुजन समाजवादी पार्टी के टिकट पर बिल्डर अनिल सिंह चुनाव लड़ रहे हैं और इन्हें भी अच्छी खासी वोट मिलने की संभावना है.

1996-2019 तक भाजपा का कब्जा: बक्सर लोकसभा सीट बीजेपी के लिए सुरक्षित सीट मानी जाती है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बक्सर से ही चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत करते थे. बक्सर लोकसभा सीट पर 1996 से लेकर 2019 तक लगातार भाजपा का कब्जा रहा है. बक्सर लोकसभा सीट से लालमणि चौबे चार बार सांसद रहे हैं.

BJP Vs RJD: अपवाद स्वरूप 2009 के चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के जगदानंद सिंह जीते थे. जीत का अंतर 2000 वोटों के आसपास था. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में अश्विनी चौबे ने जगदानंद सिंह को दो बार पटखनी दी लेकिन इस बार जगदानंद सिंह के पुत्र सुधाकर सिंह और अश्विनी चौबे के शिष्य मिथलेश तिवारी आमने-सामने हैं.

ईटीवी भारत GFX
ईटीवी भारत GFX (ETV Bharat)

अश्विनी चौबे की नाराजगी का होगा असर!: टिकट नहीं मिलने से अश्विनी चौबे नाराज हैं और उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र से दूरी बना ली है. टिकट की घोषणा के बाद से एक बार भी अश्विनी चौबे बक्सर नहीं गए हैं. यहां तक की प्रधानमंत्री के साथ मंच भी शेयर नहीं किया. अश्वनी चौबे बनारस जरूर जा रहे हैं लेकिन बक्सर लोकसभा क्षेत्र से दूरी बना रखी है.

ऐसा रहा वोट शेयर: आंकड़ों के लिहाज से अगर बात करें तो राष्ट्रीय जनता दल का वोट शेयर बीजेपी के मुकाबले काफी कम है. 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 20.91% था तो आरजेडी का वोट शेयर 21.27 प्रतिशत था. इसके बाद बीजेपी के वोट शेयर में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई.

BJP के वोट शेयर में वृद्धि: 2014 के चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर बढ़कर 35.92% हो गया तो आरजेडी 21.02 प्रतिशत पर सिमट गई. 2019 के चुनाव में बीजेपी के वोट शेयर में और उछाल आया और भाजपा को 47.94% वोट मिले. हालांकि राजद के वोट शेयर में भी बाउंस आया और राजद 36.02% वोट हासिल कर सकी.

क्या सुधाकर दिखा पाएंगे कमाल?: 2019 के चुनाव में भाजपा और राष्ट्रीय जनता दल के बीच 12% का अंतर था. 2024 के चुनाव में जगदानंद सिंह के पुत्र सुधाकर सिंह इस अंतर को पाटने की कोशिश में जुटे हैं. जातिगत समीकरण की अगर बात करें तो बक्सर लोकसभा सीट पर ब्राह्मण मतदाता निर्णायक साबित होते हैं.

बक्सर का जातिगत समीकरण: कुल मिलाकर चार लाख से अधिक ब्राह्मण मतदाताओं की आबादी है. इसके बाद यादव वोटरों की संख्या है. बक्सर जिले में लगभग 3:50 लाख के आसपास यादव हैं. राजपूत मतदाताओं की संख्या भी 3 लाख के आसपास है. भूमिहार मतदाता भी मजबूत दखल रखते हैं और इनकी आबादी ढाई लाख के आसपास है. बक्सर लोकसभा क्षेत्र में डेढ़ लाख के आसपास मुसलमान है. इसके अलावा यहां पिछड़े और अति पिछड़े वोटरों की संख्या भी अच्छी खासी है.

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अंदर बाहर की लड़ाई: बक्सर लोकसभा सीट पर अंदर बाहर की लड़ाई भी चलती रहती है. चार बार भाजपा के टिकट पर लाल मुनी चौबे सांसद रहे. लाल मुनी चौबे भी बक्सर जिले के रहने वाले नहीं थे. वह भभुआ के रहने वाले थे. अश्विनी चौबे दो बार सांसद रहे और उनका ताल्लुक भी बक्सर जिले से नहीं रहा. वर्तमान में राष्ट्रीय जनता दल उम्मीदवार सुधाकर सिंह भी बक्सर जिले के रहने वाले नहीं है. सुधाकर सिंह भी भभुआ के रहने वाले हैं.

ब्राह्मण कार्ड प्ले करने का फायदा: बक्सर लोकसभा सीट के बारे में कहा जाता है कि भाजपा किसी भी ब्राह्मण को वहां से उम्मीदवार बना दे तो उसके लिए जीत आसान हो जाती है. इसी को नजर में रखते हुए पार्टी ने युवा नेता और प्रदेश महामंत्री मिथिलेश तिवारी को मैदान में उतारा है. मिथिलेश तिवारी बैकुंठपुर से एक बार विधायक भी रह चुके हैं. मिथिलेश तिवारी को चुनाव जीतने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है.

आनंद भी दे रहे चुनौती: इसके अलावा पूर्व आईपीएस आनंद मिश्रा भी चुनाव के मैदान में हैं. आनंद मिश्रा बक्सर के स्थानीय हैं और स्थानीय युवाओं का साथ उन्हें मिल रहा है. सोशल मीडिया पर वह बेहद लोकप्रिय हैं. खुद को बाल सेवक बताते हैं. ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोगों का भी उनके प्रति सॉफ्ट कॉर्नर है. आनंद मिश्रा को भी ब्राह्मण वोट बैंक पर भरोसा है. आनंद मिश्रा की पकड़ सभी जाति और समुदाय में नहीं है. कुछ इलाकों में वह असरदार हो सकते हैं लेकिन पूरे जिले में आनंद मिश्रा प्रभावी नहीं दिख रहे हैं.

मिथिलेश तिवारी बचा पाएंगे सीट?: मिथिलेश तिवारी ब्राह्मण जाति से आते हैं और उन्हें ब्राह्मण का समर्थन मिल सकता है. बक्सर जिले में भाजपा के अंदर गुटबाजी भी है. मिथिलेश तिवारी स्थानीय नहीं हैं, इस वजह से गुटबाजी से दूर हैं. मिथिलेश तिवारी अच्छे संगठनकर्ता और मृदुभाषी हैं. इसका लाभ भी उन्हें चुनाव में मिल सकता है. मिथिलेश तिवारी के पक्ष में यह भी है कि नरेंद्र मोदी राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ ने इनके लिए प्रचार किया है.

सुधाकर को मिलेगा राजपूतों का साथ: सुधाकर सिंह राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र हैं और उनके सियासत का अंदाज पिता से बिल्कुल अलग है. यही वजह है कि जगदानंद सिंह ने बक्सर लोकसभा क्षेत्र से दूरी बना रखी है. सुधाकर सिंह स्वच्छ छवि के हैं और राजपूत जाति से आने के चलते उन्हें कुछ राजपूत वोटरों की मदद मिल सकती है. इसके अलावा मुस्लिम यादव वोट बैंक पर इनका भरोसा है किसानों के हित की बात करने वाले जगदानंद सिंह को किसानों का भी समर्थन मिल सकता है.

आनंद मिश्रा ने फाइट को बनाया टफ: वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी का मानना है कि पूर्व आईपीएस आनंद मिश्रा भी लड़ाई में है और वह लड़ाई को त्रिकोणात्मक मानते दिख रहे हैं. खास बात यह है कि वह भी नरेंद्र मोदी के नाम पर ही वोट मांग रहे हैं. अंदर और बाहर का मुद्दा जरूर उठा रहे हैं. उनकी ताकत उनके द्वारा शुरू की गई स्वयंसेवी संस्था है जिसके 5000 सदस्य हैं. वही युवा आज उनके चुनाव प्रचार की कमान संभाले हुए हैं.

"पूर्व आईपीएस आनंद मिश्रा ने बक्सर की जंग को त्रिकोणात्मक बना दिया है. नरेंद्र मोदी के नाम पर वह वोट मांग रहे हैं. उनको स्वयंसेवी संस्था का लाभ मिल सकता है."-प्रवीण बागी,वरिष्ठ पत्रकार

निर्दलीयों ने बढ़ायी टेंशन: राजनीतिक विश्लेषण के डॉक्टर संजय कुमार का मानना है कि बक्सर की लड़ाई को निर्दलीय उम्मीदवारों ने कांटे का बना दिया है. जीत और हर निर्दलीय उम्मीदवार के कमजोर और मजबूत होने पर ही निर्भर है. आगर आनंद मिश्रा कम वोट काटते हैं तो मिथिलेश तिवारी की जीत आसान होगी.

"इस तरीके से अगर ददन पहलवान कम वोट काटते हैं तो सुधाकर सिंह के लिए राहें आसान होगी. कुल मिलाकर बक्सर की लड़ाई चतुष्कोणीय हो सकती है."-डॉक्टर संजय कुमार,राजनीतिक विश्लेषण

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बक्सर: बिहार के 40 लोकसभा में से बक्सर काफी अहम सीटों में से एक है. बक्सर की लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर पहुंच चुकी है. किसी भी गठबंधन के लिए जीत का दवा आसान नहीं दिख रहा है. भाजपा उम्मीदवार मिथिलेश तिवारी के लिए जहां निर्दलीय उम्मीदवार आनंद मिश्रा ने मुश्किलें बढ़ा दी है.

ददन पहलवान ने बिगाड़ा समीकरण: वहीं राष्ट्रीय जनता दल उम्मीदवार सुधाकर सिंह भी मुश्किल में हैं. ददन पहलवान ने उनकी मुश्किलें बढ़ा रखी हैं. बहुजन समाजवादी पार्टी के टिकट पर बिल्डर अनिल सिंह चुनाव लड़ रहे हैं और इन्हें भी अच्छी खासी वोट मिलने की संभावना है.

1996-2019 तक भाजपा का कब्जा: बक्सर लोकसभा सीट बीजेपी के लिए सुरक्षित सीट मानी जाती है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बक्सर से ही चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत करते थे. बक्सर लोकसभा सीट पर 1996 से लेकर 2019 तक लगातार भाजपा का कब्जा रहा है. बक्सर लोकसभा सीट से लालमणि चौबे चार बार सांसद रहे हैं.

BJP Vs RJD: अपवाद स्वरूप 2009 के चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के जगदानंद सिंह जीते थे. जीत का अंतर 2000 वोटों के आसपास था. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में अश्विनी चौबे ने जगदानंद सिंह को दो बार पटखनी दी लेकिन इस बार जगदानंद सिंह के पुत्र सुधाकर सिंह और अश्विनी चौबे के शिष्य मिथलेश तिवारी आमने-सामने हैं.

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अश्विनी चौबे की नाराजगी का होगा असर!: टिकट नहीं मिलने से अश्विनी चौबे नाराज हैं और उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र से दूरी बना ली है. टिकट की घोषणा के बाद से एक बार भी अश्विनी चौबे बक्सर नहीं गए हैं. यहां तक की प्रधानमंत्री के साथ मंच भी शेयर नहीं किया. अश्वनी चौबे बनारस जरूर जा रहे हैं लेकिन बक्सर लोकसभा क्षेत्र से दूरी बना रखी है.

ऐसा रहा वोट शेयर: आंकड़ों के लिहाज से अगर बात करें तो राष्ट्रीय जनता दल का वोट शेयर बीजेपी के मुकाबले काफी कम है. 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 20.91% था तो आरजेडी का वोट शेयर 21.27 प्रतिशत था. इसके बाद बीजेपी के वोट शेयर में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई.

BJP के वोट शेयर में वृद्धि: 2014 के चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर बढ़कर 35.92% हो गया तो आरजेडी 21.02 प्रतिशत पर सिमट गई. 2019 के चुनाव में बीजेपी के वोट शेयर में और उछाल आया और भाजपा को 47.94% वोट मिले. हालांकि राजद के वोट शेयर में भी बाउंस आया और राजद 36.02% वोट हासिल कर सकी.

क्या सुधाकर दिखा पाएंगे कमाल?: 2019 के चुनाव में भाजपा और राष्ट्रीय जनता दल के बीच 12% का अंतर था. 2024 के चुनाव में जगदानंद सिंह के पुत्र सुधाकर सिंह इस अंतर को पाटने की कोशिश में जुटे हैं. जातिगत समीकरण की अगर बात करें तो बक्सर लोकसभा सीट पर ब्राह्मण मतदाता निर्णायक साबित होते हैं.

बक्सर का जातिगत समीकरण: कुल मिलाकर चार लाख से अधिक ब्राह्मण मतदाताओं की आबादी है. इसके बाद यादव वोटरों की संख्या है. बक्सर जिले में लगभग 3:50 लाख के आसपास यादव हैं. राजपूत मतदाताओं की संख्या भी 3 लाख के आसपास है. भूमिहार मतदाता भी मजबूत दखल रखते हैं और इनकी आबादी ढाई लाख के आसपास है. बक्सर लोकसभा क्षेत्र में डेढ़ लाख के आसपास मुसलमान है. इसके अलावा यहां पिछड़े और अति पिछड़े वोटरों की संख्या भी अच्छी खासी है.

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अंदर बाहर की लड़ाई: बक्सर लोकसभा सीट पर अंदर बाहर की लड़ाई भी चलती रहती है. चार बार भाजपा के टिकट पर लाल मुनी चौबे सांसद रहे. लाल मुनी चौबे भी बक्सर जिले के रहने वाले नहीं थे. वह भभुआ के रहने वाले थे. अश्विनी चौबे दो बार सांसद रहे और उनका ताल्लुक भी बक्सर जिले से नहीं रहा. वर्तमान में राष्ट्रीय जनता दल उम्मीदवार सुधाकर सिंह भी बक्सर जिले के रहने वाले नहीं है. सुधाकर सिंह भी भभुआ के रहने वाले हैं.

ब्राह्मण कार्ड प्ले करने का फायदा: बक्सर लोकसभा सीट के बारे में कहा जाता है कि भाजपा किसी भी ब्राह्मण को वहां से उम्मीदवार बना दे तो उसके लिए जीत आसान हो जाती है. इसी को नजर में रखते हुए पार्टी ने युवा नेता और प्रदेश महामंत्री मिथिलेश तिवारी को मैदान में उतारा है. मिथिलेश तिवारी बैकुंठपुर से एक बार विधायक भी रह चुके हैं. मिथिलेश तिवारी को चुनाव जीतने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है.

आनंद भी दे रहे चुनौती: इसके अलावा पूर्व आईपीएस आनंद मिश्रा भी चुनाव के मैदान में हैं. आनंद मिश्रा बक्सर के स्थानीय हैं और स्थानीय युवाओं का साथ उन्हें मिल रहा है. सोशल मीडिया पर वह बेहद लोकप्रिय हैं. खुद को बाल सेवक बताते हैं. ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोगों का भी उनके प्रति सॉफ्ट कॉर्नर है. आनंद मिश्रा को भी ब्राह्मण वोट बैंक पर भरोसा है. आनंद मिश्रा की पकड़ सभी जाति और समुदाय में नहीं है. कुछ इलाकों में वह असरदार हो सकते हैं लेकिन पूरे जिले में आनंद मिश्रा प्रभावी नहीं दिख रहे हैं.

मिथिलेश तिवारी बचा पाएंगे सीट?: मिथिलेश तिवारी ब्राह्मण जाति से आते हैं और उन्हें ब्राह्मण का समर्थन मिल सकता है. बक्सर जिले में भाजपा के अंदर गुटबाजी भी है. मिथिलेश तिवारी स्थानीय नहीं हैं, इस वजह से गुटबाजी से दूर हैं. मिथिलेश तिवारी अच्छे संगठनकर्ता और मृदुभाषी हैं. इसका लाभ भी उन्हें चुनाव में मिल सकता है. मिथिलेश तिवारी के पक्ष में यह भी है कि नरेंद्र मोदी राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ ने इनके लिए प्रचार किया है.

सुधाकर को मिलेगा राजपूतों का साथ: सुधाकर सिंह राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र हैं और उनके सियासत का अंदाज पिता से बिल्कुल अलग है. यही वजह है कि जगदानंद सिंह ने बक्सर लोकसभा क्षेत्र से दूरी बना रखी है. सुधाकर सिंह स्वच्छ छवि के हैं और राजपूत जाति से आने के चलते उन्हें कुछ राजपूत वोटरों की मदद मिल सकती है. इसके अलावा मुस्लिम यादव वोट बैंक पर इनका भरोसा है किसानों के हित की बात करने वाले जगदानंद सिंह को किसानों का भी समर्थन मिल सकता है.

आनंद मिश्रा ने फाइट को बनाया टफ: वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी का मानना है कि पूर्व आईपीएस आनंद मिश्रा भी लड़ाई में है और वह लड़ाई को त्रिकोणात्मक मानते दिख रहे हैं. खास बात यह है कि वह भी नरेंद्र मोदी के नाम पर ही वोट मांग रहे हैं. अंदर और बाहर का मुद्दा जरूर उठा रहे हैं. उनकी ताकत उनके द्वारा शुरू की गई स्वयंसेवी संस्था है जिसके 5000 सदस्य हैं. वही युवा आज उनके चुनाव प्रचार की कमान संभाले हुए हैं.

"पूर्व आईपीएस आनंद मिश्रा ने बक्सर की जंग को त्रिकोणात्मक बना दिया है. नरेंद्र मोदी के नाम पर वह वोट मांग रहे हैं. उनको स्वयंसेवी संस्था का लाभ मिल सकता है."-प्रवीण बागी,वरिष्ठ पत्रकार

निर्दलीयों ने बढ़ायी टेंशन: राजनीतिक विश्लेषण के डॉक्टर संजय कुमार का मानना है कि बक्सर की लड़ाई को निर्दलीय उम्मीदवारों ने कांटे का बना दिया है. जीत और हर निर्दलीय उम्मीदवार के कमजोर और मजबूत होने पर ही निर्भर है. आगर आनंद मिश्रा कम वोट काटते हैं तो मिथिलेश तिवारी की जीत आसान होगी.

"इस तरीके से अगर ददन पहलवान कम वोट काटते हैं तो सुधाकर सिंह के लिए राहें आसान होगी. कुल मिलाकर बक्सर की लड़ाई चतुष्कोणीय हो सकती है."-डॉक्टर संजय कुमार,राजनीतिक विश्लेषण

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Last Updated : May 28, 2024, 8:14 PM IST
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