पटना: लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा ने चिराग पासवान की सभी शर्तें मानीं. चिराग पासवान की पार्टी ने सभी पांच सीटों पर जीत दर्ज की. चिराग, केंद्र में मंत्री बन गये. लेकिन, उसके बाद चिराग पासवान के बदले तेवर ने बीजेपी को असहज कर दिया. इसीलिए बीजेपी के नेता, पशुपति पारस से दोस्ती बढ़ाने लगे. राजनीतिक गलियारे में इस मुलाकात के मायने निकाले जाने लगे. विपक्ष का मानना है कि भाजपा एक बार फिर चिराग की पार्टी को तोड़गी वहीं विश्लेषकों का मानना है कि पीएम के 'हनुमान' बताशा के लिए मंदिर नहीं तोड़ेंगे. चिराग पासवान और उनकी पार्टी के नेता फिलहाल इस मामले में चुप्पी साध ली है.
पारस और चिराग के कारण बिहार में सियासी हलचल: बीजेपी का कभी प्यार पशुपति पारस की तरफ होता है, तो कभी चिराग पासवान की तरफ. लोकसभा चुनाव से पहले पशुपति पारस केंद्र में मंत्री थे. चिराग पासवान की पार्टी भी टूट गई और सभी सांसद पशुपति पारस के साथ चले गए. चिराग पासवान चाह कर भी केंद्र में मंत्री नहीं बन सके. इसके बाद भी चिराग अपने को नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते रहे. उसका इनाम भी मिला. 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने चिराग पासवान के साथ ही समझौता किया. उन्हें पांच लोकसभा सीट दी गयी. पशुपति पारस को हाशिये पर डाल दिया.
पारस की अमित शाह से मुलाकात के मायनेः इसके बाद भी पशुपति पारस एनडीए के साथ बने रहे. समय-समय पर पीएम मोदी की तारीफ करते रहे. इधर, चिराग पासवान पांचों सीट पर चुनाव जीत गए. उसके बाद, कुछ मुद्दों पर चिराग पासवान ने भाजपा से असहमति जतायी. उनके तेवर जिस प्रकार से बदले, बीजेपी की भी चिंता बढ़ गयी. यही कारण है कि भाजपा ने पशुपति पारस की तरफ हाथ बढ़ाया. पहले बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने पशुपति पारस से मुलाकात की और फिर उसके बाद पशुपति पारस की अमित शाह से मुलाकात हुई. इस मुलाकात के बाद ही बिहार की सियासत में हलचल मचने लगी. विपक्ष को हमला करने का मौका मिल गया.
क्या कहते हैं राजद और एनडीए नेताः राजद के नेताओं ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया चिराग पासवान के पांच में से 3 सांसद बीजेपी में शामिल होंगे. आरजेडी प्रवक्ता शक्ति यादव ने कहा कि बीजेपी पहले भी बंगला को बर्बाद कर चुकी है, अब हेलीकॉप्टर को कब तहस-नहस कर देगी कोई नहीं जानता है. भाजपा प्रवक्ता रामसागर सिंह का कहना है कि राजद अपना घर संभाले. एनडीए में सब कुछ ठीक है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों के साथ चिराग पासवान भी हैं और पशुपति पारस भी हैं. दोनों एनडीए गठबंधन में हैं. जदयू प्रवक्ता निहोरा यादव का कहना है कि एनडीए गठबंधन में कौन रहेंगे, इसका फैसला तो बीजेपी ही करेगी. जदयू को किसी के आने-जाने से कोई प्रॉब्लम नहीं होगा.
अशोक चौधरी, हम ना तीन में ना तेरह मेंः चिराग पासवान की पार्टी में जदयू कोटे के मंत्री अशोक चौधरी की बेटी शांभवी चौधरी भी सांसद हैं. लेकिन पूरे मामले से अशोक चौधरी पल्ला झाड़ रहे हैं. अशोक चौधरी का कहना है कि हम चिराग पासवान की पार्टी के प्रवक्ता नहीं है. चिराग पासवान और बीजेपी का मामला है यह, हम ना तीन में हैं ना तेरह में. राजनीतिक विश्लेषक अरुण पांडे का कहना है कि पिछली सरकार में पशुपति पारस मंत्रिमंडल में थे. उसके बाद चिराग पासवान बीजेपी को ज्यादा रास आए. पशुपति पारस की भी सीट चली गयी. बीजेपी ने पूरी तरह से उन्हें इग्नोर किया, उसके बाद भी पशुपति पारस बने रहे.
भाजपा से चिराग की क्या है नाराजगीः केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान लगातार नरेंद्र मोदी सरकार के फैसलों पर असहमति जता रहे हैं. लैटरल एंट्री का विरोध किया, जाति जनगणना को जरूरी बताया और एससी-एसटी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में विपक्ष का साथ चिराग ने दिया. वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर भी उनका स्टैंड विपक्ष जैसा ही रहा. इसके अलावना झारखंड में भी चिराग पासवान ने गठबंधन में सीट नहीं मिलने की स्थिति में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की है. चिराग पासवान के बदले रूख से बीजेपी थोड़ा असहज है. चेक एंड बैलेंस करने के लिए उनके चाचा पशुपति पारस से नजदीकी बढ़ा रही है.
चिराग पासवान के कितने सांसद हैंः बता दें कि बिहार में चिराग पासवान के पांच सांसद हैं. लोकसभा चुनाव 2024 में चिराग पासवान की पार्टी को 5 सीट मिली थी. इसमें जमुई, खगड़िया, हाजीपुर, वैशाली और समस्तीपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा गया था. पांचों सीट पर चिराग पासवान की पार्टी को जीत मिली. जमुई से अरुण भारती, हाजीपुर से चिराग पासवान, समस्तीपुर से शांभवी चौधरी, वैशाली से वीणा देवी और खगड़िया से राजेश वर्मा सांसद हैं.
"उस समय (लोकसभा चुनाव) भाजपा को लग रहा था कि पासवान वोट चिराग पासवान के साथ है. अब, चिराग पासवान के तेवर के कारण भाजपा असहज है. इसलिये बीजेपी चेक एंड बैलेंस करने में लगी है. चिराग पासवान क्या करेंगे, इस पर सबकी नजर है. बीजेपी को चिराग पासवान भले ही असहज कर रहे हैं, लेकिन इतना तय है कि बताशा के लिए मंदिर नहीं तोड़ेंगे."- अरुण पांडेय, राजनीतिक विश्लेषक
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