बीकानेर. चैत्र नवरात्र के छठे दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा करते हैं. मान्यता है कि पर्वतराज हिमालय की तरह कात्यायनी ऋषि ने भी मां दुर्गा की आराधना की थी. साथ ही मां दुर्गा से पुत्री स्वरूप में उनके घर उत्पन्न होने की कामना की थी. पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि कात्यायनी ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने उन्हें मनोवांछित फल दिया था. तभी से नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी स्वरूप में मां भगवती की पूजा होती है. ऐसी मान्यता है कि कुंवारी कन्या यदि पूरे विधि-विधान के साथ इनकी पूजा अर्चना करती है तो उसे माता का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है.
माता कात्यायनी की पूजा का महत्व : पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया मां कात्यायनी की पूजा अर्चना करने से विवाह में आ रही संकट स्वत: ही दूर हो जाती है. इनकी पूजा करने से साधक की कुंडली में बृहस्पति ग्रह मजबूत होता है. साधक यदि पूरे विधि-विधान के पूजा-अर्चना करता है तो उसके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और शत्रुओं का नाश भी स्वत: हो जाता है. साथ ही देवी की कृपा से स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों से भी साधक को मुक्ति मिलती है.
शहद और तगर पुष्प का प्रयोग : पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू बताते हैं कि शास्त्रों में नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा में तगर के पुष्प अर्पण किए जाने का उल्लेख मिलता है. हालांकि देवी भगवती को सभी प्रकार के पुष्प प्रिय हैं. नैवेद्य में खीर मालपुआ का भोग देवी को लगाएं. ऐसा विश्वास है कि मां कात्यायनी को शहद का भोग लगाने से साधक को सुंदर काया की प्राप्ति होती है. शास्त्रों में भी मां कात्यायनी की पूजा में शहद का भोग लगाना अति उत्तम माना गया है.
सिंह सवार त्रिशूल धारण : पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि मां कात्यायनी सिंह पर सवार हैं. उनके हाथ में कमल का पुष्प और त्रिशूल रूपी शस्त्र भी है. देवी के इस स्वरूप की विधि- विधान अर्थात षोडशोपचार से पूजा आराधना का अपना विशेष महत्व है. ऐसा करने से साधक को मनोवांछित फल मिलता है.