गया : बिहार के बोधगया में भूटान बौद्ध मंदिर में मुखौटा डांस बौद्ध लामाओं द्वारा किया गया. इस नृत्य को लेकर बड़ी मान्यता है कि इससे आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है. वहीं, जीवों के कल्याण के निमित्त यह मुखौटा डांस का आयोजन होता है. भूटान बौद्ध मंदिर में सूत्रपाठ और तंत्र साधना की पूजा के बाद मुखौटा डांस किया जाता है. इसे लेकर विभिन्न मान्यताएं हैं.
मुखौटा डांस से पाप हो जाते हैं नष्ट : मुखौटा डांस का बौद्ध धर्म में काफी महत्व है. बोधगया के भूटान बौद्ध मंदिर में तीन दिवसीय विशेष पूजा हुई, जिसमें मुखौटा डांस शामिल किया गया. कहा जाता है कि मुखौटा डांस देखने से पाप भी नष्ट हो जाते हैं.
पारंपरिक वेशभूषा में हुआ : भूटान बौद्ध मंदिर में पारंपरिक वेशभूषा में वाद्य यंत्रों के साथ मुखौटा डांस को प्रस्तुत किया गया. आध्यात्मिक साधना के बीच मुखौटा डांस शुरू हुआ. यह नृत्य तांत्रिक विधि से बनाए गए मंडला के समक्ष हुआ. इस संबंध में भूटान बौद्ध मंदिर के प्रभारी सोनम लामा ने बताया कि मुखौटा डांस भूटान की परंपरा है. यह आध्यात्मिक शांति के लिए किया जाता है. वहीं, इस डांस को देखने से पाप भी नष्ट हो जाते हैं. बुरी आत्माओं से मुक्ति प्राप्त हो जाती है.
सातवीं शताब्दी से है प्रचलन : भूटान बौद्ध मंदिर के प्रभारी सोनम लामा ने कहा कि सातवीं शताब्दी में गुरुपद्य संभव ने बज्रयान की स्थापना की. इस विधि को तिब्बत सहित हिमालय क्षेत्र में प्रचलित किया. गुरुपद्य संभव को बौद्ध श्रद्धालुओं के द्वारा उन्हें द्वितीय बुद्ध के रूप में मान्यता दी जाती है, जिनके बारे में कहा जाता है, कि वे कमल के फूल से प्रकट हुए थे.
''तीन दिवसीय यह पूजा है. इसमें मुखौटा डांस किया जाता है. इस मुखौटा डांस से आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है. जीवों का कल्याण होता है. वहीं, पाप नष्ट हो जाते हैं. मुखौटा पहनने का उद्देश्य मानव विकृत रूपों से नहीं डरे, बल्कि आत्मविश्वास जागृत करें.''- सोनम लामा, प्रभारी, भूटान बौद्ध मंदिर, बोधगया
ये भी पढ़ें :-
विश्व शांति को लेकर विभिन्न देशों के बौद्ध भिक्षुओं ने बोधगया में की विशेष पूजा