अजमेर. सदियों से भारत को मसाले की धरती कहा जाता रहा है. भारतीय खान-पान में मसालों का विशेष महत्व है. मसाले में औषधीय गुण भी होते हैं. मसाले के उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अजमेर में स्थित राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र (ICAR NRCSS) 10 मुख्य मसालों को लेकर अनुसंधान कर रहा है. इन मसालों के जरिए आईसीएआर की खाद्य प्रसंकरण और मूल्य संवर्धन प्रयोगशाला में फूड प्रोसेसिंग की दिशा में भी आगे बढ़ते हुए 40 उत्पाद तैयार किए हैं. नई तकनीक से तैयार उत्पाद किसानों और व्यापारियों के लिए भी हितकारी साबित हो रहे हैं.
अजमेर में स्थित राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र अब फूड प्रोसेसिंग की दिशा में भी आगे बढ़ रहा है. आईसीएआर में 10 मसालों को लेकर अनुसंधान किए जाते हैं. इनमें मेथी, सौंफ, जीरा, अजवाइन, कलौंजी, धनिया और काला जीरा शामिल है. लगातार होते अनुसंधान में इन मसालों की कई तरह की किस्में ईजाद की हैं. नई तकनीक से तैयार मसालों के बीज से किसानों को फायदा भी हो रहा है. आईसीएआर ने बीजीय अनुसंधान के साथ इन मसालों के जरिए फूड प्रोसेसिंग की दिशा में कदम आगे बढ़ाया है. अभी तक आईसीएआर ने लैब में 40 उत्पाद तैयार किए हैं, जो गुणवत्ता और सेहत के लिए गुणकारी हैं. इन उत्पाद के बाजार में आने से किसानों को ही नहीं व्यापारियों को भी फायदा मिल रहा है.
पढ़ें. अजमेर IACR ने तैयार किया बिना रसायन कीटनानशक, बेहतर फसल के साथ मिल रहे अच्छे दाम - Ajmer IACR
आईसीएआर में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शिव लाल ने बताया कि देश में 17.73 लाख हेक्टेयर भूमि पर 18.44 लाख टन उत्पादन मसालों का होता है. इनमें 3.02 लाख टन निर्यात किया जाता है, जिससे 5517.34 लाख करोड़ की विदेश मुद्रा अर्जित की जाती है. इसमें सबसे बड़ा योगदान 4 हजार 194 करोड़ रुपए केवल जीरे के निर्यात से अर्जित होती है. उन्होंने बताया कि जीरे का उत्पादन देश में केवल राजस्थान और गुजरात में ही होता है. सीरिया, इजिप्ट में भी जीरे का उत्पादन होता है, लेकिन वहां उत्पादन कम रहता है. वैश्विक स्तर पर आय अर्जित करने में लाल मिर्च के बाद जीरे का नंबर दूसरे स्थान पर आता है. चीन, अमेरिका, श्रीलंका और बांग्लादेश जीरे के बड़े खरीदार हैं. भारत में जीरे की मंडी गुजरात में है.
12 प्रकार के हर्बल जूस किए तैयार : डॉ. शिव लाल ने बताया कि आईसीएआर की लैब में मसाले से संबंधित 40 उत्पाद तैयार किए गए हैं. साथ ही तकनीक का प्रमाणीकरण भी किया गया है. मसालों के जरिए 12 प्रकार के हर्बल जूस (आरटीएस) और स्क्वैश ईजाद किए गए हैं. यह सभी जूस सेहत के लिए लाभकारी हैं. वहीं, व्यापार की दृष्टि से भी फायदेमंद है. व्यापारियों को सशर्त आईसीएआर से तकनीक दी जाती है और उन्हें उत्पादन में तकनीकी सहयोग भी दिया जाता है. कई कंपनियों ने हर्बल जूस और स्क्वैश की तकनीक आईसीएआर से ली है.
पढ़ें. कोटा कृषि विश्वविद्यालय ने ईजाद की फसलों की 4 नई किस्में, दीक्षांत समारोह में होगा लोकार्पण
भारत सरकार मिलेट्स को दे रही है बढ़ावा : उन्होंने बताया कि भारत सरकार मिलेट्स (millets) को बढ़ावा दे रही है. मिलेट्स से निर्मित विभिन्न उत्पादों को भी आगे बढ़ाया जा रहा है. इसी कड़ी में आईसीएआर ने भी मसाले और मिलेट्स (ज्वार और बाजरा) से 10 प्रकार के बिस्कुट तैयार किए हैं. इनमें एंटी डायबिटिक आधारित मेथी के बिस्कुट भी शामिल हैं. यह बिस्किट स्वास्थ्य और पोषण के लिए बेहतर हैं.
सेलरी से बनाया गुणकारी नमक : उन्होंने बताया कि आईसीएआर ने धनिया, सौंवा और सेलरी को कम तापमान में सुखाने की तकनीक का भी प्रमाणीकरण किया है. साथ ही सेलरी से नमक बनाने की तकनीक भी ईजाद की है. सेलरी से बने नमक में 75 फीसदी सोडियम होता है. लिहाजा हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए सेलरी नमक काफी फायदेमंद है. यह ब्लड प्रेशर को मेंटेन करने में सहायक है.
मसालों की फसल का भूसा भी कीमती : मसालों की खेती करने वाले किसानों की आय को बढ़ाने के लिए आईसीएआर में अनुसंधान किए जाते रहे हैं. इन अनुसंधान में हर्बल ऑयल भी शामिल है. खास बात यह है कि इन हर्बल ऑयल को मसालों की फसल काटने के बाद बचे हुए भूसे से बनाया गया है. वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शिव लाल बताते हैं कि बीजीय मसालों की फसल को काटने के बाद भूसे को अनुपयोगी मानकर उसे अक्सर जला दिया जाता है. मसालों के बीज से लेकर पौधों में ऑयल की मात्रा रहती है. लिहाजा भूसे से ऑयल बनाने की तकनीक को ईजाद किया गया.
10 प्रकार के ऑयल तैयार : उन्होंने बताया कि नई तकनीक के जरिए 10 प्रकार के ऑयल तैयार किए गए हैं. यह तेल मेडिसिन, फूड इंडस्ट्री और कॉस्मेटिक इंडस्ट्री के लिए काफी उपयोगी हैं. इनकी डिमांड भी काफी रहती है. ऑयल निकालने के बाद जो भूसा बचता है, उसका उपयोग मशरूम उत्पादन में किए जाने का भी प्रमाणीकरण किया गया है. इतना ही नहीं शेष भूसे से कंपोस्ट खाद बनाकर फसलों में उपयोग किया जा सकता है.
इस तकनीक से मसालों की खुशबू रहती है बरकरार : वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शिव लाल बताते हैं कि आमतौर पर मसाले की पिसाई मिक्सी या ग्राइंडिंग मशीन में की जाती है. मसाले पीसने के दौरान मसाले में व्याप्त तेल गर्मी से उड़ जाता है. इस कारण कुछ दिनों में पीसे हुए मसाले की खुशबू चली जाती है. मसाले की खुशबू लंबे समय तक बरकरार रखने के लिए क्रायो ग्राइंडिंग तकनीक आईसीएआर की ओर से ईजाद की गई है. इसके तहत मसालों को माइनस 197 डिग्री पर पीसा जाता है. इस तकनीक के जरिए 6 महीने तक पिसे हुए मसाले में खुशबू बरकरार रहती है. कई मसाला कंपनियों ने यह नई तकनीक आईसीएआर से ली है.