गोरखपुर: सरकारी अस्पताल का मतलब यही है कि वहां डॉक्टर से मरीज को परामर्श और दवा मुफ्त मिलेगी, लेकिन बात करें गोरखपुर की तो यहां के जो भी सरकारी मेडिकल संस्थान हैं, चाहे वह जिला अस्पताल हो, बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज या फिर अखिल भारतीय विज्ञान संस्थान (एम्स), यहां के डॉक्टरों द्वारा मरीज के पर्चे पर साफ तौर पर ऐसी दवाई लिखी जा रही है, जो इन सरकारी अस्पतालों के दवा काउंटर पर न मिलकर बाजार के मेडिकल स्टोर पर आसानी से उपलब्ध होती हैं. जिला अस्पताल से मरीज को अगर एक-दो दवा अस्पताल की लिख दी गई तो महंगी दवा की अलग से पर्ची मरीज को डॉक्टर पकड़ा देते हैं. मरीज के टोकने पर वह कहता है कि बाहर की दवा से जल्दी ठीक होंगे इसलिए लिखा है. जबकि मरीज सरकारी अस्पताल में काफी दूरदराज से और कम आय वाले पहुंचते हैं, लेकिन वह खुद को स्वस्थ रखने के लिए बाहर की दवा खरीदने को मजबूर हैं.
बात करें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की तो यहां पर भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला है. एडवोकेट मनीष कुमार अपनी पत्नी को स्त्री रोग विभाग में दिखाकर जब दवा खरीदने के लिए एम्स के अमृत फार्मेसी और जेनेरिक दवा काउंटर पर पहुंचे तो डॉक्टर की लिखी दवा नहीं मिली. उन्हें एम्स के बाहर के मेडिकल स्टोर से करीब ढाई हजार रुपये की दवा खरीदनी पड़ी. ऐसा ही अवनीश मिश्रा के साथ हुआ. वे अपने बेटे को गैस्ट्रो में दिखाने के बाद बाहर से दवा खरीदने को मजबूर हुए. क्योंकि डॉक्टर की लिखी हुई दवा एम्स के काउंटर से मिल ही नहीं रही थी.
जिला अस्पताल की महिमा तो एकदम निराली है. यहां शहर से लेकर जिले के आखिरी छोर से मरीज दिखाने के लिए पहुंचते हैं. सिकरीगंज से आई एक महिला ने बताया कि डॉक्टर ने एक दो दवाएं अस्पताल के अंदर की लिखीं तो मंहगी दवा की पर्ची अलग से लिखकर थमा दी. जिसे वह बाहर के ही मेडिकल स्टोर से खरीदने को मजबूर हैं. इसी प्रकार से चौरी चौरा से जिला अस्पताल खुद को दिखाने आए मरीज अभिमन्यु ने बताया कि, उन्हें भी पेट में दर्द और गैस की शिकायत थी. डॉक्टर को दिखाया, लेकिन एक-दो दवा को छोड़कर महंगी दवाएं उन्हें बाहर से लिख दी गई हैं. अभिमन्यु ने डॉक्टर द्वारा लिखी हुई पर्ची को भी बकायदा दिखाया और कहा कि वह मुफ्त और सस्ते इलाज के लिए जिला अस्पताल आए थे. हालांकि उन्हें बाहर की दवा खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. इसी प्रकार एक अन्य महिला जो सहजनवा कस्बे से आई थीं, बताया कि, डॉक्टर को दिखाने के बाद कुछ दवाएं तो अस्पताल के काउंटर से मिली हैं लेकिन, दो-तीन दवा ऐसी हैं जो महंगी हैं और बाहर से ही खरीदना पड़ेगा.
इस संबंध में जिला अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉ. राजेंद्र ठाकुर कहते हैं कि, सरकार के निर्देश के क्रम में अस्पताल के पास कुल 238 तरह की दवाएं उपलब्ध हैं. अस्पताल के चिकित्सकों को इन्हीं दवाओं को लिखने के लिए निर्देशित किया गया है. यहां तक भी कह दिया गया कि जेनेरिक दवाएं भी ना लिखे. जो दवाएं अस्पताल में हैं, वही लिखें. फिर भी अगर बाहर की दवा लिखी जा रही है और लोगों की शिकायत मिलेगी तो उस पर कार्रवाई की जाएगी. उनसे किसी मरीज ने शिकायत नहीं की है.
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य रामकुमार जायसवाल ने भी कहा कि डॉक्टरों को सख्त हिदायत है कि अस्पताल में उपलब्ध दवा ही लिखें. अगर सरकारी पर्चे पर बाहर की दवा लिखी जा रही है तो यह गलत है. डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई भी तभी संभव है जब मरीज इसकी शिकायत उन तक लिखित रूप से करें. वहीं अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान गोरखपुर के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. अजय कुमार ने साफ निर्देशित किया है कि, डॉक्टर ऐसी दवाएं लिखें जो परिसर में स्थापित अमृत फार्मेसी और जेनेरिक काउंटर से मरीजों को प्राप्त हो सके. बाहर की दवा न लिखी जाए.
वहीं, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ शिव शंकर शाही ने कहा कि प्राइवेट चिकित्सक अपनी दवा लिखने के लिए स्वतंत्र हैं. एनएमसी की जो भी गाइडलाइन अब तैयार हो रही है, सरकार की नीतियों के हिसाब से हो रही है. जो सरकारी महकमों के अस्पतालों पर क्रियाशील होगी. प्राइवेट चिकित्सकों पर वहीं नियम लागू होंगे, जो विशेष तौर तय किए जाएंगे.
यह भी पढ़ें : गोरखपुर में मिशन खिलखिलाहट लौटी मुस्कान, 86 बच्चे कुपोषण से आए बाहर