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अस्तित्व पर संकट; आगरा में 3 महीने में 4 धरोहर जमींदोज, 400 साल पुराना हमाम भी ध्वस्त, जानिए इतिहास - HERITAGE EXISTENCE CRISIS

ऐतिहासिक जौहरा बाग बुर्ज गिरा, मुबारक मंजिल परिसर में निर्माण पर चला बुलडोजर.

कई धरोहरों को ध्वस्त कर दिया गया.
कई धरोहरों को ध्वस्त कर दिया गया. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 4, 2025, 10:08 AM IST

Updated : Jan 4, 2025, 10:40 AM IST

आगरा : मुगलिया सल्तनत की राजधानी रह चुकी आगरा में ताजमहल और आगरा किले के साथ 190 से अधिक धरोहर हैं. मुगलिया दौर में यमुना किनारे रिवरफ्रंट में 17 बाग और 28 हवेलियां थीं. बीते तीन माह में 4 धरोहर धराशायी हो गईं. इसमें लोदी काल की इकलौती मस्जिद, बाबर कालीन जौहरा बाग का बुर्ज, जहांगीर काल का हमाम और मुगल कालीन मुबारक मंजिल शामिल हैं. इनमें से 2 धरोहर बारिश के कारण ध्वस्त हो गए, जबकि 2 पर बुलडोजर चला दिया गया. इसके बाद से विरासत को सहेजने के लिए किए जा रहे प्रयासों पर सवाल उठने लगे हैं.

आगरा की ऐतिहासिक धरोहरों पर संकट. (Video Credit; ETV Bharat)

भले ही हमाम के मामले में हाईकोर्ट ने 27 जनवरी तक का स्टे दिया है. मगर, मुबारक मंजिल परिसर में बने निर्माण पर बुलडोजर चलने से मामला गरमा गया है. इस मामले में राज्य पुरातत्व विभाग ने अपनी रिपोर्ट में मुबारक मंजिल का मुख्य भवन सुरक्षित और सरंक्षित करने की डिटेल्स प्रशासन-सरकार को भेजी है. इसके साथ ही बल्केश्वर में औरंगजेब के बनाए बुर्ज को सहेजन की बात कही है.

तीन मंजिला जौहरा बाग बुर्ज गिरा : 27 अक्टूबर 2024 को यमुना किनारे स्थित जौहरा बाग का बुर्ज ढह गया था. वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि सन 1526 में पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी को पराजित करके मुगल सेना जब आगरा आई तो यमुनापार डेरा डाला था. बाबर ने आगरा में यमुना किनारे पर कई निर्माण कार्य कराए. आरामबाग या रामबाग समेत यहां पर कई बाग लगवाए. इससे आगरा में यमुनापार का यमुना किनारे का क्षेत्र मिनी काबुल कहा जाने लगा था. इन्हीं बागों में से एक जौहरा बाग है. यह वर्तमान में स्मारक चीनी का रोजा की उत्तरी दिशा और जवाहर पुल की दक्षिणी दिशा स्थित है. जौहरा बाग के बुर्ज या जौहरा महल या जौहरा बाग का निर्माण बाबर की बेटी जौहरा महल उर्फ जौहरा बेगम ने कराया था.

एएसआई ने बारिश को बताया बुर्ज गिरने का कारण : बाबर के बाद इस स्मारक में अकबर, जहांगीर और शाहजहां ने भी कार्य कराया. अब यहां नर्सरी बनाए जाने और बसावट की वजह से बाग का अस्तित्व मिट चुका है. ऐतिहासिक स्मारक है, जो पहले से ही गिरासू था. एएसआई संरक्षित इस स्मारक का बड़ा भाग धराशायी हो चुका है. इस बारे में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. राजकुमार पटेल कहते हैं कि जौहरा बाग के बुर्ज का निर्माण लाखौरी ईंंटों व मिट्टी की चिनाई से किया गया था. इसके बाद बुर्ज पर टीप (प्वाइंटिंग) ऊपर से की गई है. दीवार पर बाहर की तरफ लाल बलुई पत्थर लगा था. बारिश अधिक होने की वजह से बुर्ज की दो मंजिल ढही हैं. इसके संरक्षण का कार्य किया जा रहा है.

लोदी काल की चुनिंदा इमारतों में थी मस्जिद : वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि सन 1504 में सुल्तान सिकंदर लोदी ने आगरा को अपनी राजधानी बनाया था. सिकंदर लोदी ने तब सिकंदरा के आसपास कई इमारतें बनवाई गईं. लोदी काल की शहर में कई इमारते थीं. इनमें से एक आगरा दिल्ली नेशनल हाईवे के नजदीक लोदी कालीन बनी मस्जिद थी. यह सितंबर 2024 में ढह गई. इसका कारण भी बारिश बताया गया. लोदी कालीन मस्जिद का संरक्षण नहीं करना और उसका इस तरह से गिरना बेहद चिंताजनक है. नई पीढ़ी को इतिहास, वास्तुकला समझने के लिए ऐसी धरोहरों की जरूरत है.

धरोहरों को बचाने की उठने लगी मांग.
धरोहरों को बचाने की उठने लगी मांग. (Photo Credit; ETV Bharat)

400 साल पुराने हमाम में जहांगीर ने किया था स्नान : वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर बताते हैं कि मुगल बादशाह जहांगीर का खास सरदार अली वरदी खान उर्फ अल्लाह वरदी खान ने आगरा किले के पास ही सन 1620 में लाखौरी ईंटों और लाल बलुआ पत्थरों से एक आलीशान हमाम बनवाया था. आज वो स्थान छीपीटोला बाजार है. हमाम में ठंडे और गर्म पानी से नहाने की सुविधा थी. अली वरदी खान के बनवाए आलीशान हमाम की खूबसूरती और सुविधाओं की चर्चा जब होने लगी तो मुगल बादशाह जहांगीर ने इस बारे में पूछा और खुद हमाम को देखने के लिए एक दिन पहुंचे. जहांगीर हमाम की सुविधाएं देखकर हैरान रह गया था. उस दिन जहांगीर ने हमाम में स्नान किया. जिसकी वजह से इस हमाम की तुलना शाही हमाम से की जाने लगी. बाद में ये हमाम दूसरे राज्यों और देशों से आने वाले मेहमानों की पहली पसंद बन गया. लोग यहां पर स्नान करते. इसके पास की सराय में ठहरते. इसके बाद मुगल दरबार में जाते थे.

अंग्रेजों ने कराई थी हमाम की खोदाई : वरिष्ठ इतिहासकार बताते हैं कि लेखक खाकसार सईद अहमद मारहरवी ने अपनी पुस्तक 'आगरा का इतिहास' में लिखा है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान इस हमाम में ठंडे और गर्म पानी व्यवस्था जानने के लिए खोदाई कराई गई थी. तब इसमें एक बड़ा दीपक मिला था. जब हवा चली तो ये दीपक बुझ गया. इसे जलाया नहीं जा सका. पास में ही अली वरदी खान की बनवाई मस्जिद थी. आगरा के लेखक और इतिहासकार सुरेंद्र भारद्वाज ने अपनी पुस्तक 'आगरा का प्राचीन इतिहास' में लिखा है कि सन 1857 की विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने देश की ऐतिहासिक महत्व की तमाम इमारतें, सराय और हमाम नीलाम कर दिए थे.

कई ऐतिहासिक इमारतों को ध्वस्त कर दिया गया.
कई ऐतिहासिक इमारतों को ध्वस्त कर दिया गया. (Photo Credit; ETV Bharat)

वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि हमाम के बारे में सन 1892 में लिखी सत्या चंद्र मुखर्जी की पुस्तक 'द ट्रैवलर गाइड टू' आगरा पुस्तक के साथ ही सन 1896 में सैययद मोहम्मद लतीफ की पुस्तक 'हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव' में भी जिक्र है. इन पुस्तक में लिखा है कि ये हमाम, उस समय केवल एक स्नानग्रह ही नहीं, समाजिक और सांस्कृतिक केंद्र था. हमाम के गुम्मद का व्यास 33 फीट और हमाम की पूर्व से पश्चिम तक की लंबाई 122 फीट, चौड़ाई उत्तर से दक्षिण तक 72 फीट थी. हमाम के आंगन में पानी के झरने थे. हमाम को बिल्डर ने बुलडोजर से ढहवा दिया.

औरंगजेब की मुबारक मंजिल थी दारा शिकोह की हवेली : वरिष्ठ इतिहासकार बताते हैं कि बेलनगंज में यमुना किनारे मुगल काल में बनी मुबारक मंजिल बनाई गई थी. ये मुगल बादशाह शहंशाह शाहजहां के सबसे चहेते बेटे दारा शिकोह की हवेली थी. यहां पर ही दारा शिकोह रहता था. बात सन 1657-58 की है. जब मुगल बादशाह शाहजहां बीमार पड़ गया. शाहजहां ने अपने सबसे प्रिय बेटे दाराशिकोह को मुगलिया सल्नतन की कमान सौंपने की तैयारी शुरू कर दी. शाहजहां की बेटी रोशनआरा ने दारा शिकोह के बादशाह बनाए जाने की सूचना औरंगजेब को भेजी. इससे औरंगजेब ने अपने भाई मुराद बख्श और मिर्जा शाह शूजा के साथ मिलकर आगरा में हमले की योजना बनाई.

जब ये जानकारी हुई तो दाराशिकोह अपने भाइयों को आगरा में आने से रोकने के लिए सामूगढ़ यानी समोगर पहुंचा. मई 1658 को समोगर में औरंगजेब और दारा शिकोह के बीच आमने-सामने का घमासान युद्ध हुआ. इसमें औरंगजेब ने दाराशिकोह को परास्त कर दिया. दारा शिकोह यहां से जान बचाकर भाग गया. जिस पर औरंगजेब आगरा आया तो आगरा किला में नहीं गया. यमुना किनारे दारा शिकोह की हवेली में पहुंचा और वहां पर रहा. तब उसने उस हवेली को मुबारक मंजिल नाम दिया.

इतिहास में मुबारक मंजिल का जिक्र : ऑस्ट्रिया की इतिहासकार एब्बा कोच की पुस्तक रिवरफ्रंट गार्डन ऑफ आगरा में मुबारक मंजिल के बारे में विस्तृत ब्यौरा दिया है. इसमें एब्बा कोच ने भी इसे आलमगीर की हवेली बताया है. जहां शाहजहां, शुजा और औरंगजेब लंबे समय तक महत्वपूर्ण मौकों पर रहे. केवल मुगल काल नहीं, ब्रिटिशकाल में भी इस हवेली का बोलवाला रहा. सन 1817 में इस हवेली में अंग्रेजों ने कई बदलाव किए गए. ये दो मंजिला बनाई गई. सन 1810 से 1877 तक इस हवेली में नमक दफ्तर, कस्टम हाउस बनाया गया था. अंग्रेजी हुकूमत में मुबारक मंजिल को परमिट कोठी और फिर तारा निवास के नाम से जाना गया.

सन 1902 में लॉर्ड कर्जन ने यहां मुस्लिम समुदाय के पूजा करने के दावे को खारिज किए. ब्रिटिश काल में ही इंजीनियर एसी पोलव्हेल की दी रिपोर्ट में ईस्ट इंडियन रेलवे का माल डिपो बनाया गया था. यहां संगमरमर की पट्टिका लगी थी, जिस पर लिखा था कि इसे सामूगढ़ की लड़ाई के बाद औरंगजेब ने बनवाया था. इसका ब्यौरा कार्लाइल की वर्ष 1871 की रिपोर्ट में भी है. कार्लाइल ने मुबारक मंजिल की वास्तुकला को लेकर पूरा ब्यौरा दिया है. कुछ इतिहासकार मानते हैं कि अबकर के खास रहे सेनापति बैरमखान की ये हवेली थी. यह बाद में दारा शिकोह की हवेली बनी.

कस्टम हाउस, परमिट कोठी का हिस्सा सुरक्षित : बिल्डर की ओर से मुबारक मंजिल के ढहाए जाने की खबर पर राज्य पुरातत्व विभाग की टीम में शामिल राजीव रंजन और सुभाष चंद्र ने मुगलकाल की मुबारक मंजिल और ब्रिटिश काल में कस्टम हाउस या परमिट कोठी और वर्तमान में तारा निवास पहुंचे. यहां पर उन्होंने मुबारक मंजिल के नाम से दर्ज इमारत के मालिक नवीन चंद्र से मिले. उन्होंने भवन का भ्रमण किया. नवीन चंद्र ने बताया कि ब्रिटिश शासन में सन 1879 में नीलामी में हमारे पूर्वजों ने कस्टम हाउस के नाम से ये इमारत खरीदी थी. इसका मुख्य हिस्सा पूरी तरह से सुरक्षित है. पुराने स्वरूप में ही संरक्षित किया है. इमारत के ब्रिटिश और मुगलकाल के स्ट्रक्चर से कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है. राज्य पुरातत्व विभाग की टीम ने भी निदेशक को भेजी रिपोर्ट में मुबारक मंजिल का मुख्य हिस्सा सुरक्षित और संरक्षित होने की जानकारी भेजी है. परिसर में स्थित ब्रिटिश काल के निर्माण को ध्वस्त करने की डिटेल्स भेजी गई है.

विभाग की संरक्षण योजना पर उठने लगे सवाल : बता दें कि राज्य पुरातत्व विभाग ने आगरा में मुबारक मंजिल के संरक्षण करने की अधिसूचना जारी की. मगर, जो मुबारक मंजिल बताई, उसे बल्केश्वर में यमुना किराने स्थित होना बताया गया. जबकि, इतिहास में शहर की एकमात्र मुबारक मंजिल बेलनगंज स्थित है. ब्रिटिश हुकूमत में कस्टम हाउस, परमिट कोठी और वर्तमान में तारा निवास है. इस बारे में राज्य पुरातत्व विभाग के क्षेत्रीय अधिकारी राजीव त्रिवेदी ने बताया कि विभाग की टीम ने बेलनगंज में स्थित मुबारक मंजिल का निरीक्षण किया. इसके बाद रिपोर्ट भेजी है. जबकि, विभाग ने तीन माह पहले बल्केश्वर में स्थित औरंगजेब की हवेली संरक्षित करने की अधिसूचना जारी की थी. ये घटवासन में है. जो बेलनगंज की हवेली परमिट कोठी और कस्टम हाउस या मुबारक मंजिल है. उसे संरक्षित करने की कोई अधिसूचना जारी नहीं की थी. मगर, इस के बारे में रिपोर्ट शासन और जिला प्रशासन को भेजी जाएगी.

राज्य पुरातत्व विभाग से डीएम ने मांगी रिपोर्ट : जब मुबारक मंजिल पर बुलडोजर चलाने की खबर मिली तो राज्य पुरातत्व विभाग की दो सदस्यीय टीम मौके पर पहुंची. उन्होंने ब्रिटिश काल में कस्टम हाउस के नाम से चर्चित इमारत रही मुबारक मंजिल देखी. पुरातत्व विभाग के राजीव रंजन और सुभाष चंद्र की टीम ने देखा कि फाटक सूरजभान रोड की ओर का हिस्सा जेसीबी से ढहाया गया है. बिल्डर ने इसकी देखरेख में एक चौकीदार लगाया है. इस हिस्से में ट्रांसपोर्टर किराए पर हैं. इसके बाद राज्य पुरातत्व विभाग के राजीव रंजन और सुभाष चंद्र की टीम ने अपनी रिपोर्ट तैयार की है. खुलासा किया है कि मुबारक मंजिल का मुख्य हिस्सा पूरी तरह से सुरक्षित और संरक्षित है. राज्य पुरातत्व विभाग की टीम ने अपने निदेशक को रिपोर्ट भेजी है. इस बारे में आगरा डीएम अरविंद मल्लप्पा बंगारी ने बताया कि औरंगजेब की हवेली मामले में एसडीएम और एएसआई से रिपोर्ट मांगी गई है. रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जाएगी.

कई इमारत खंडहर में तब्दील हो चुके हैं.
कई इमारत खंडहर में तब्दील हो चुके हैं. (Photo Credit; ETV Bharat)

किताबों में धरोहर के बारे में लिखा है : आगरा सिविल सोसायटी के सचिव राजीव सक्सेना बताते हैं कि सन 1871 का एसीएल कार्लाइल का सर्वे आगरा का है. यह एएसआई ने मान्य किया है. इसके साथ ही सैय्यद मोहम्मद लतीफ की पुस्तक 'हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव' में मुबारक मंजिल का जिक्र है. ये किताब मॉर्डन आगरा पर लिखी गई थी. उसमें मुबारक मंजिल बेलनगंज में हैं. इतिहासकारों से बारे में चर्चा करके और दस्तावेज देखकर ही इस बारे में कोई निर्णय लिया जाना चाहिए. अलीगढ यूनिवर्सिटी में आगरा के स्मारकों के बारे में खूब लिखा गया है.

हाईकोर्ट में जनहित याचिकाएं : आगरा सिविल सोसायटी के अनिल शर्मा का कहना है कि जो अपना इतिहास नहीं जानते हैं. वे अभिशापित हैं. आगरा और आसपास करीब 200 से अधिक स्मारक हैं. इनका संरक्षण किया जाना चाहिए. इसके लिए सिटीजन को कैंपेन चलाना होगा. इसमें कोर्ट में भी जनहित याचिका दायर करनी होगी. जैसे बीते दिनों की जहांगीर काल के हमाम के मामले में हाईकोर्ट ने स्टे दिया है.

सरकार से मांग, विरासत संरक्षित करें : आगरा के पर्यावरणविद डॉ. देवाशीष भटटाचार्य कहते हैं कि हमें अपनी विरासत सहेजनी चाहिए. ये बेहद दुखद है. पहले ही तमाम धरोहर नष्ट हो चुकी है. सरकार से मांग है कि जो बचा है. उसे बचाएं. उसे संरिक्षत करें. वो नष्ट नहीं हों. जब विरासत नष्ट होती है तो बुरा लगता है.

यह भी पढ़ें : नवाबों के शहर का अंदाज निराला; ऐतिहासिक इमारतों के साथ लखनवी तहजीब भी विरासत में शामिल, UNESCO ने 'आदाब' में दिखाई दिलचस्पी

आगरा : मुगलिया सल्तनत की राजधानी रह चुकी आगरा में ताजमहल और आगरा किले के साथ 190 से अधिक धरोहर हैं. मुगलिया दौर में यमुना किनारे रिवरफ्रंट में 17 बाग और 28 हवेलियां थीं. बीते तीन माह में 4 धरोहर धराशायी हो गईं. इसमें लोदी काल की इकलौती मस्जिद, बाबर कालीन जौहरा बाग का बुर्ज, जहांगीर काल का हमाम और मुगल कालीन मुबारक मंजिल शामिल हैं. इनमें से 2 धरोहर बारिश के कारण ध्वस्त हो गए, जबकि 2 पर बुलडोजर चला दिया गया. इसके बाद से विरासत को सहेजने के लिए किए जा रहे प्रयासों पर सवाल उठने लगे हैं.

आगरा की ऐतिहासिक धरोहरों पर संकट. (Video Credit; ETV Bharat)

भले ही हमाम के मामले में हाईकोर्ट ने 27 जनवरी तक का स्टे दिया है. मगर, मुबारक मंजिल परिसर में बने निर्माण पर बुलडोजर चलने से मामला गरमा गया है. इस मामले में राज्य पुरातत्व विभाग ने अपनी रिपोर्ट में मुबारक मंजिल का मुख्य भवन सुरक्षित और सरंक्षित करने की डिटेल्स प्रशासन-सरकार को भेजी है. इसके साथ ही बल्केश्वर में औरंगजेब के बनाए बुर्ज को सहेजन की बात कही है.

तीन मंजिला जौहरा बाग बुर्ज गिरा : 27 अक्टूबर 2024 को यमुना किनारे स्थित जौहरा बाग का बुर्ज ढह गया था. वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि सन 1526 में पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी को पराजित करके मुगल सेना जब आगरा आई तो यमुनापार डेरा डाला था. बाबर ने आगरा में यमुना किनारे पर कई निर्माण कार्य कराए. आरामबाग या रामबाग समेत यहां पर कई बाग लगवाए. इससे आगरा में यमुनापार का यमुना किनारे का क्षेत्र मिनी काबुल कहा जाने लगा था. इन्हीं बागों में से एक जौहरा बाग है. यह वर्तमान में स्मारक चीनी का रोजा की उत्तरी दिशा और जवाहर पुल की दक्षिणी दिशा स्थित है. जौहरा बाग के बुर्ज या जौहरा महल या जौहरा बाग का निर्माण बाबर की बेटी जौहरा महल उर्फ जौहरा बेगम ने कराया था.

एएसआई ने बारिश को बताया बुर्ज गिरने का कारण : बाबर के बाद इस स्मारक में अकबर, जहांगीर और शाहजहां ने भी कार्य कराया. अब यहां नर्सरी बनाए जाने और बसावट की वजह से बाग का अस्तित्व मिट चुका है. ऐतिहासिक स्मारक है, जो पहले से ही गिरासू था. एएसआई संरक्षित इस स्मारक का बड़ा भाग धराशायी हो चुका है. इस बारे में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. राजकुमार पटेल कहते हैं कि जौहरा बाग के बुर्ज का निर्माण लाखौरी ईंंटों व मिट्टी की चिनाई से किया गया था. इसके बाद बुर्ज पर टीप (प्वाइंटिंग) ऊपर से की गई है. दीवार पर बाहर की तरफ लाल बलुई पत्थर लगा था. बारिश अधिक होने की वजह से बुर्ज की दो मंजिल ढही हैं. इसके संरक्षण का कार्य किया जा रहा है.

लोदी काल की चुनिंदा इमारतों में थी मस्जिद : वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि सन 1504 में सुल्तान सिकंदर लोदी ने आगरा को अपनी राजधानी बनाया था. सिकंदर लोदी ने तब सिकंदरा के आसपास कई इमारतें बनवाई गईं. लोदी काल की शहर में कई इमारते थीं. इनमें से एक आगरा दिल्ली नेशनल हाईवे के नजदीक लोदी कालीन बनी मस्जिद थी. यह सितंबर 2024 में ढह गई. इसका कारण भी बारिश बताया गया. लोदी कालीन मस्जिद का संरक्षण नहीं करना और उसका इस तरह से गिरना बेहद चिंताजनक है. नई पीढ़ी को इतिहास, वास्तुकला समझने के लिए ऐसी धरोहरों की जरूरत है.

धरोहरों को बचाने की उठने लगी मांग.
धरोहरों को बचाने की उठने लगी मांग. (Photo Credit; ETV Bharat)

400 साल पुराने हमाम में जहांगीर ने किया था स्नान : वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर बताते हैं कि मुगल बादशाह जहांगीर का खास सरदार अली वरदी खान उर्फ अल्लाह वरदी खान ने आगरा किले के पास ही सन 1620 में लाखौरी ईंटों और लाल बलुआ पत्थरों से एक आलीशान हमाम बनवाया था. आज वो स्थान छीपीटोला बाजार है. हमाम में ठंडे और गर्म पानी से नहाने की सुविधा थी. अली वरदी खान के बनवाए आलीशान हमाम की खूबसूरती और सुविधाओं की चर्चा जब होने लगी तो मुगल बादशाह जहांगीर ने इस बारे में पूछा और खुद हमाम को देखने के लिए एक दिन पहुंचे. जहांगीर हमाम की सुविधाएं देखकर हैरान रह गया था. उस दिन जहांगीर ने हमाम में स्नान किया. जिसकी वजह से इस हमाम की तुलना शाही हमाम से की जाने लगी. बाद में ये हमाम दूसरे राज्यों और देशों से आने वाले मेहमानों की पहली पसंद बन गया. लोग यहां पर स्नान करते. इसके पास की सराय में ठहरते. इसके बाद मुगल दरबार में जाते थे.

अंग्रेजों ने कराई थी हमाम की खोदाई : वरिष्ठ इतिहासकार बताते हैं कि लेखक खाकसार सईद अहमद मारहरवी ने अपनी पुस्तक 'आगरा का इतिहास' में लिखा है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान इस हमाम में ठंडे और गर्म पानी व्यवस्था जानने के लिए खोदाई कराई गई थी. तब इसमें एक बड़ा दीपक मिला था. जब हवा चली तो ये दीपक बुझ गया. इसे जलाया नहीं जा सका. पास में ही अली वरदी खान की बनवाई मस्जिद थी. आगरा के लेखक और इतिहासकार सुरेंद्र भारद्वाज ने अपनी पुस्तक 'आगरा का प्राचीन इतिहास' में लिखा है कि सन 1857 की विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने देश की ऐतिहासिक महत्व की तमाम इमारतें, सराय और हमाम नीलाम कर दिए थे.

कई ऐतिहासिक इमारतों को ध्वस्त कर दिया गया.
कई ऐतिहासिक इमारतों को ध्वस्त कर दिया गया. (Photo Credit; ETV Bharat)

वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि हमाम के बारे में सन 1892 में लिखी सत्या चंद्र मुखर्जी की पुस्तक 'द ट्रैवलर गाइड टू' आगरा पुस्तक के साथ ही सन 1896 में सैययद मोहम्मद लतीफ की पुस्तक 'हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव' में भी जिक्र है. इन पुस्तक में लिखा है कि ये हमाम, उस समय केवल एक स्नानग्रह ही नहीं, समाजिक और सांस्कृतिक केंद्र था. हमाम के गुम्मद का व्यास 33 फीट और हमाम की पूर्व से पश्चिम तक की लंबाई 122 फीट, चौड़ाई उत्तर से दक्षिण तक 72 फीट थी. हमाम के आंगन में पानी के झरने थे. हमाम को बिल्डर ने बुलडोजर से ढहवा दिया.

औरंगजेब की मुबारक मंजिल थी दारा शिकोह की हवेली : वरिष्ठ इतिहासकार बताते हैं कि बेलनगंज में यमुना किनारे मुगल काल में बनी मुबारक मंजिल बनाई गई थी. ये मुगल बादशाह शहंशाह शाहजहां के सबसे चहेते बेटे दारा शिकोह की हवेली थी. यहां पर ही दारा शिकोह रहता था. बात सन 1657-58 की है. जब मुगल बादशाह शाहजहां बीमार पड़ गया. शाहजहां ने अपने सबसे प्रिय बेटे दाराशिकोह को मुगलिया सल्नतन की कमान सौंपने की तैयारी शुरू कर दी. शाहजहां की बेटी रोशनआरा ने दारा शिकोह के बादशाह बनाए जाने की सूचना औरंगजेब को भेजी. इससे औरंगजेब ने अपने भाई मुराद बख्श और मिर्जा शाह शूजा के साथ मिलकर आगरा में हमले की योजना बनाई.

जब ये जानकारी हुई तो दाराशिकोह अपने भाइयों को आगरा में आने से रोकने के लिए सामूगढ़ यानी समोगर पहुंचा. मई 1658 को समोगर में औरंगजेब और दारा शिकोह के बीच आमने-सामने का घमासान युद्ध हुआ. इसमें औरंगजेब ने दाराशिकोह को परास्त कर दिया. दारा शिकोह यहां से जान बचाकर भाग गया. जिस पर औरंगजेब आगरा आया तो आगरा किला में नहीं गया. यमुना किनारे दारा शिकोह की हवेली में पहुंचा और वहां पर रहा. तब उसने उस हवेली को मुबारक मंजिल नाम दिया.

इतिहास में मुबारक मंजिल का जिक्र : ऑस्ट्रिया की इतिहासकार एब्बा कोच की पुस्तक रिवरफ्रंट गार्डन ऑफ आगरा में मुबारक मंजिल के बारे में विस्तृत ब्यौरा दिया है. इसमें एब्बा कोच ने भी इसे आलमगीर की हवेली बताया है. जहां शाहजहां, शुजा और औरंगजेब लंबे समय तक महत्वपूर्ण मौकों पर रहे. केवल मुगल काल नहीं, ब्रिटिशकाल में भी इस हवेली का बोलवाला रहा. सन 1817 में इस हवेली में अंग्रेजों ने कई बदलाव किए गए. ये दो मंजिला बनाई गई. सन 1810 से 1877 तक इस हवेली में नमक दफ्तर, कस्टम हाउस बनाया गया था. अंग्रेजी हुकूमत में मुबारक मंजिल को परमिट कोठी और फिर तारा निवास के नाम से जाना गया.

सन 1902 में लॉर्ड कर्जन ने यहां मुस्लिम समुदाय के पूजा करने के दावे को खारिज किए. ब्रिटिश काल में ही इंजीनियर एसी पोलव्हेल की दी रिपोर्ट में ईस्ट इंडियन रेलवे का माल डिपो बनाया गया था. यहां संगमरमर की पट्टिका लगी थी, जिस पर लिखा था कि इसे सामूगढ़ की लड़ाई के बाद औरंगजेब ने बनवाया था. इसका ब्यौरा कार्लाइल की वर्ष 1871 की रिपोर्ट में भी है. कार्लाइल ने मुबारक मंजिल की वास्तुकला को लेकर पूरा ब्यौरा दिया है. कुछ इतिहासकार मानते हैं कि अबकर के खास रहे सेनापति बैरमखान की ये हवेली थी. यह बाद में दारा शिकोह की हवेली बनी.

कस्टम हाउस, परमिट कोठी का हिस्सा सुरक्षित : बिल्डर की ओर से मुबारक मंजिल के ढहाए जाने की खबर पर राज्य पुरातत्व विभाग की टीम में शामिल राजीव रंजन और सुभाष चंद्र ने मुगलकाल की मुबारक मंजिल और ब्रिटिश काल में कस्टम हाउस या परमिट कोठी और वर्तमान में तारा निवास पहुंचे. यहां पर उन्होंने मुबारक मंजिल के नाम से दर्ज इमारत के मालिक नवीन चंद्र से मिले. उन्होंने भवन का भ्रमण किया. नवीन चंद्र ने बताया कि ब्रिटिश शासन में सन 1879 में नीलामी में हमारे पूर्वजों ने कस्टम हाउस के नाम से ये इमारत खरीदी थी. इसका मुख्य हिस्सा पूरी तरह से सुरक्षित है. पुराने स्वरूप में ही संरक्षित किया है. इमारत के ब्रिटिश और मुगलकाल के स्ट्रक्चर से कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है. राज्य पुरातत्व विभाग की टीम ने भी निदेशक को भेजी रिपोर्ट में मुबारक मंजिल का मुख्य हिस्सा सुरक्षित और संरक्षित होने की जानकारी भेजी है. परिसर में स्थित ब्रिटिश काल के निर्माण को ध्वस्त करने की डिटेल्स भेजी गई है.

विभाग की संरक्षण योजना पर उठने लगे सवाल : बता दें कि राज्य पुरातत्व विभाग ने आगरा में मुबारक मंजिल के संरक्षण करने की अधिसूचना जारी की. मगर, जो मुबारक मंजिल बताई, उसे बल्केश्वर में यमुना किराने स्थित होना बताया गया. जबकि, इतिहास में शहर की एकमात्र मुबारक मंजिल बेलनगंज स्थित है. ब्रिटिश हुकूमत में कस्टम हाउस, परमिट कोठी और वर्तमान में तारा निवास है. इस बारे में राज्य पुरातत्व विभाग के क्षेत्रीय अधिकारी राजीव त्रिवेदी ने बताया कि विभाग की टीम ने बेलनगंज में स्थित मुबारक मंजिल का निरीक्षण किया. इसके बाद रिपोर्ट भेजी है. जबकि, विभाग ने तीन माह पहले बल्केश्वर में स्थित औरंगजेब की हवेली संरक्षित करने की अधिसूचना जारी की थी. ये घटवासन में है. जो बेलनगंज की हवेली परमिट कोठी और कस्टम हाउस या मुबारक मंजिल है. उसे संरक्षित करने की कोई अधिसूचना जारी नहीं की थी. मगर, इस के बारे में रिपोर्ट शासन और जिला प्रशासन को भेजी जाएगी.

राज्य पुरातत्व विभाग से डीएम ने मांगी रिपोर्ट : जब मुबारक मंजिल पर बुलडोजर चलाने की खबर मिली तो राज्य पुरातत्व विभाग की दो सदस्यीय टीम मौके पर पहुंची. उन्होंने ब्रिटिश काल में कस्टम हाउस के नाम से चर्चित इमारत रही मुबारक मंजिल देखी. पुरातत्व विभाग के राजीव रंजन और सुभाष चंद्र की टीम ने देखा कि फाटक सूरजभान रोड की ओर का हिस्सा जेसीबी से ढहाया गया है. बिल्डर ने इसकी देखरेख में एक चौकीदार लगाया है. इस हिस्से में ट्रांसपोर्टर किराए पर हैं. इसके बाद राज्य पुरातत्व विभाग के राजीव रंजन और सुभाष चंद्र की टीम ने अपनी रिपोर्ट तैयार की है. खुलासा किया है कि मुबारक मंजिल का मुख्य हिस्सा पूरी तरह से सुरक्षित और संरक्षित है. राज्य पुरातत्व विभाग की टीम ने अपने निदेशक को रिपोर्ट भेजी है. इस बारे में आगरा डीएम अरविंद मल्लप्पा बंगारी ने बताया कि औरंगजेब की हवेली मामले में एसडीएम और एएसआई से रिपोर्ट मांगी गई है. रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जाएगी.

कई इमारत खंडहर में तब्दील हो चुके हैं.
कई इमारत खंडहर में तब्दील हो चुके हैं. (Photo Credit; ETV Bharat)

किताबों में धरोहर के बारे में लिखा है : आगरा सिविल सोसायटी के सचिव राजीव सक्सेना बताते हैं कि सन 1871 का एसीएल कार्लाइल का सर्वे आगरा का है. यह एएसआई ने मान्य किया है. इसके साथ ही सैय्यद मोहम्मद लतीफ की पुस्तक 'हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव' में मुबारक मंजिल का जिक्र है. ये किताब मॉर्डन आगरा पर लिखी गई थी. उसमें मुबारक मंजिल बेलनगंज में हैं. इतिहासकारों से बारे में चर्चा करके और दस्तावेज देखकर ही इस बारे में कोई निर्णय लिया जाना चाहिए. अलीगढ यूनिवर्सिटी में आगरा के स्मारकों के बारे में खूब लिखा गया है.

हाईकोर्ट में जनहित याचिकाएं : आगरा सिविल सोसायटी के अनिल शर्मा का कहना है कि जो अपना इतिहास नहीं जानते हैं. वे अभिशापित हैं. आगरा और आसपास करीब 200 से अधिक स्मारक हैं. इनका संरक्षण किया जाना चाहिए. इसके लिए सिटीजन को कैंपेन चलाना होगा. इसमें कोर्ट में भी जनहित याचिका दायर करनी होगी. जैसे बीते दिनों की जहांगीर काल के हमाम के मामले में हाईकोर्ट ने स्टे दिया है.

सरकार से मांग, विरासत संरक्षित करें : आगरा के पर्यावरणविद डॉ. देवाशीष भटटाचार्य कहते हैं कि हमें अपनी विरासत सहेजनी चाहिए. ये बेहद दुखद है. पहले ही तमाम धरोहर नष्ट हो चुकी है. सरकार से मांग है कि जो बचा है. उसे बचाएं. उसे संरिक्षत करें. वो नष्ट नहीं हों. जब विरासत नष्ट होती है तो बुरा लगता है.

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Last Updated : Jan 4, 2025, 10:40 AM IST
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