देहरादून: डीजीसी बालकृष्ण भट्ट हत्या मामले में उत्तराखंड एसटीएफ ने आरोपी सुरेश शर्मा को जमशेदपुर (झारखंड) से गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की है. आरोपी सुरेश शर्मा 25 साल से फरार चल रहा था. उस पर 2 लाख रुपए का ईनाम भी घोषित किया गया था. आरोपी ने साल 1999 में तीर्थ नगरी बदरीनाथ में सरेआम डीजीसी बालकृष्ण भट्ट की चाकू गोदकर हत्या की थी.
बता दें कि आरोपी सुरेश शर्मा का साल 1988 से क्वालिटी नाम से तीर्थनगरी बदरीनाथ में एक रेस्टोरेंट चल रहा था. साल 1999 में तत्कालीन डीजीसी बालकृष्ण भट्ट का आरोपी सुरेश शर्मा से रेस्टोरेंट की भूमि को लेकर विवाद हो गया था, जो इतना बढ़ गया कि आरोपी सुरेश शर्मा ने 28 अप्रैल 1999 को बालकृण भट्ट की दिनदहाड़े सरेआम चाकू गोदकर हत्या कर दी.
घटना के बाद आरोपी सुरेश शर्मा को मौके से गिरफ्तार किया गया, लेकिन कुछ समय बाद आरोपी को जमानत मिल गई. जमानत के कुछ दिनों बाद ही हाइकोर्ट ने आरोपी की जमानत खारिज कर दी, जिसके बाद गिरफ्तारी से बचने के लिए सुरेश शर्मा फरार हो गया. सुरेश शर्मा लगातार फरार था और इसकी गिरफ्तारी के लिए उत्तराखंड एसटीएफ, उत्तर प्रदेश और दिल्ली समेत अन्य राज्य की विशेष पुलिस बल प्रयास कर रही थी, लेकिन सफलता प्राप्त नहीं हुई.
उत्तराखंड में संगठित अपराधियों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए साल 2005 में स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया गया था. स्पेशल टास्क फोर्स को दो टास्क दिए गए थे. पहला टास्क कुख्यात आरोपी अंग्रेज सिंह को गिरफ्तार करने का दिया गया था. अंग्रेज सिंह अपने सहआरोपियों के साथ पुलिस अभिरक्षा से फरार हो गया था. दूसरा टास्क डीजीसी बालकृण भट्ट हत्या मामले में आरोपी सुरेश शर्मा को गिरफ्तार करने का दिया था. उत्तराखंड एसटीएफ ने अंग्रेज सिंह को साल 2007 में नागपुर में मुठभेड़ के दौरान मार गिराया गया था, जबकि सुरेश शर्मा लगातार फरार चल रहा था.
फरार आरोपी सुरेश शर्मा की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीम का गठन किया गया. टीम को महाराष्ट्र, पश्चिमबंगाल और झांरखंड में आरोपी सुरेश शर्मा के होने की जानकारी मिली. सूचना मिलने के बाद पुलिस महाराष्ट्र, पश्चिमबंगाल और झारखंड पहुंची. टीम द्वारा एक संदिग्ध व्यक्ति को चिन्हित किया गया, जिसके पास मनोज जोशी निवासी पश्चिम बंगाल का आधार पहचान पत्र था.
अपराधी का 24 साल पुराना फोटोग्राफ होने के कारण वर्तमान में चेहरे की मिलान करना संभव नहीं हो पा रहा था, इसलिए टीम ने संदिग्ध व्यक्ति के संबध में जानकारी जुटाई और पूर्व में सुरेश शर्मा के कारागार चमोली से फिंगर प्रिंट प्राप्त कर संदिग्ध के उठने-बैठने के सार्वजनिक स्थानों से प्रिंगर प्रिंट प्राप्त कर उनका मिलान किया. चेहरे के मिलान के लिए भी विभिन्न सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया गया. टीम ने जमशेदपुर से आरोपी को 23 जनवरी को गिरफ्तार किया था. इसके बाद आरोपी सुरेश शर्मा को न्यायालय में पेशकर ट्रांजिट रिमांड प्राप्त कर उत्तराखंड लाया गया.
महानिरीक्षक अपराध एवं कानून व्यवस्था नीलेश भरणे ने बताया कि आरोपी सुरेश शर्मा की मुकदमे में 40 दिन के बाद जमानत हो गई थी और वह छूटने के बाद अपने रिश्तेदारों के यहां मुंबई चला गया. कुछ दिन वहां रहने के बाद पता चला कि जमानत खारिज हो गई और घर वालों ने वापस बुलाया, लेकिन वह घर वापस न जाकर कोलकाता चला गया. उन्होंने कहा कि आरोपी सुरेश शर्मा ने कोलकाता में सड़क किनारे ठेली लगाकर खाना बनाने का काम शुरू किया. कुछ समय बाद कपड़े का व्यापार किया और लॉकडाउन के बाद से एक मेटल ट्रेडिंग कंपनी का व्यवसाय कर रहा था, जो कि स्क्रैप का काम करती है.
नीलेश भरणे ने बताया कि कंपनी के काम से भारत के अलग-अलग शहरों में भ्रमण करता रहता था और इसी कार्य से जमशेदपुर आया था, जहां पहचान छिपाने के लिए मनीश शर्मा नाम रखा और उसके बाद मनोज जोशी के नाम से अपने दस्तावेज बना लिए. वर्तमान में आरोपी की पत्नी का नाम रोमा जोशी है, जो पश्चिम बंगाल की रहने वाली है. साथ ही आरोपी सुरेश शर्मा के दो बेटे हैं.
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