हैदराबाद : एक अनुमान के मुताबिक लगभग 50 से 70 मिलियन अमेरिकी लंबे समय से कम या ज्यादा गंभीर नींद विकारों से पीड़ित हैं. वहीं एम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में यह आंकड़ा लगभग 10.4 करोड़ का हैं. दुनिया भर में हुए कई शोधों में इस बात का उल्लेख किया जा चुका है कि नींद की कमी और नींद संबंधी विकारों का मानव स्वास्थ्य पर गहरा और व्यापक प्रभाव पड़ता है. जो कई बार गंभीर समस्याओं के होने का कारण भी बन सकता है. वहीं चिकित्सकों से प्राप्त आंकड़ों की माने तो पिछले तीन सालों में नींद विकारों जैसे अनिद्रा या इंसोम्निया तथा ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया जैसे स्लीप डिसऑर्डर के मामलों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है.
खराब नींद के कारण होने वाले रोगों व समस्याओं के बारे में तथा नींद विकारों व उनके कारणों और लक्षणों के बारें में जागरूकता बढ़ाने, नींद विकारों व उनसे जुड़े मुद्दों पर विचार व चर्चा करने, हर उम्र के लोगों को बेहतर नींद लेने के लिए प्रेरित करने तथा इसके लिए अच्छी आदतों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हर साल मार्च के दूसरे शुक्रवार को World sleep day मनाया जाता है. इस साल World sleep day आयोजन 15 मार्च को " वैश्विक स्वास्थ्य के लिए नींद की समानता " थीम पर मनाया जा रहा है.
क्या कहते हैं आंकड़े
पहले के दौर में नींद ना आने की समस्या को बुजुर्गों की समस्या माना जाता था. लेकिन पिछले कुछ सालों में कम उम्र के बच्चों व युवाओं में भी नींद से जुड़ी समस्याएं या निंद्रा विकार देखने में आने लगे हैं. एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया की लगभग 30% आबादी नींद की समस्या से पीड़ित हैं. जिनमें से 25% मामले अभी भी बुजुर्गों में देखने में आते हैं. अमेरिकन स्लीप एसोसिएशन के आंकड़ों की आने तो वहां लगभग 25 मिलियन से अधिक लोग स्लीप एपनिया से पीड़ित हैं. जो कि निंद्रा विकारों में सबसे आम समस्या मानी जाती है. वहीं नेशनल सेंटर ऑफ बायो टेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन- NCBI के आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग करीब 20% से ज्यादा लोग नींद की समस्या के शिकार हैं.
पिछले साल प्रकाशित हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान- AIIMS के पल्मोनरी क्रिटिकल केयर और स्लीप मेडिसिन विभाग के चिकित्सकों के शोध विश्लेषण में बताया गया था कि भारत में करीब 10.4 करोड़ लोग ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया- OSA के शिकार हैं. इनमें से 4.7 करोड़ इसके गंभीर स्तर से पीड़ित हैं. अध्ययन में पांच से दस वर्ष की आयु के बच्चों में इसके प्रसार और जोखिम कारकों का भी अध्ययन किया गया था. जिसके नतीजों में बताया गया था कि ओएसए भारतीय बच्चों को तेजी से प्रभावित कर रहा है.
विश्व नींद दिवस का उद्देश्य व इतिहास
आज के समय में बहुत से लोग खराब जीवनशैली, व्यस्त व तनाव भरी दिनचर्या तथा अन्य कई कारणों के चलते नींद ना आने से जुड़ी समस्याओं तथा कम या ज्यादा गंभीर नींद विकारों का शिकार बन जाते हैं. जिनमें हर उम्र तथा वर्ग के लोग शामिल हैं. दुनिया भर के चिकित्सकों का मानना है तथा कई शोधों में भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि खराब गुणवत्ता वाली तथा कम समय के लिए ली गई नींद, कई प्रकार के कम या ज्यादा गंभीर शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े रोगों तथा समस्याओं का कारण बन सकती है. चिकित्सकों की माने तो लंबे समय तक नींद की कमी और नींद संबंधी विकारों के दीर्घकालिक प्रभाव उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा, अवसाद, दिल का दौरा और स्ट्रोक सहित कई गंभीर समस्याओं का जोखिम बढ़ा सकते हैं.
अच्छी नींद की जरूरत सिर्फ हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने के लिए ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए भी जरूरी होती है. अच्छी व जरूरी मात्रा में नींद ना सिर्फ गंभीर मानसिक विकारों के प्रभावों को कम करने में मददगार होती है बल्कि मन को प्रसन्न व शांत रखने में भी इसकी बहुत अहम भूमिका होती है. ऐसे में ऐसे लोग जो नींद से जुड़ी विभिन्न समस्याओं का सामना कर रहे हैं , उनकी अवस्था पर तथा उनके कल्याण के लिए विचार व चर्चा करने , उनकी सहायता करने, अच्छी नींद की जरूरत के बारे में लोगों को जागरूक करने तथा आम जन को अच्छे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली नींद लेने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से हर साल मार्च माह में World sleep day मनाया जाता है.
World sleep day को मनाए जाने की शुरुआत वर्ल्ड स्लीप सोसाइटी की विश्व नींद दिवस समिति द्वारा वर्ष 2008 में की गई थी. जिसका उद्देश्य दुनिया भर में गंभीर नींद विकारों का सामना कर रहे लोगों की मदद करना था. गौरतलब है कि इस समिति में मुख्य रूप से नींद की दवा और नींद अनुसंधान के क्षेत्र में अध्ययन कर रहे स्वास्थ्य पेशेवर और प्रदाता शामिल थे . तब से हर साल स्प्रिंग वर्नल इक्विनॉक्स से पहले शुक्रवार को विश्व नींद दिवस मनाया जाता है, जिसमें 70 से अधिक देश भाग लेते हैं. sleep benefits , world sleep day theme , sleep disorder .