नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना की अदालत की निगरानी में जांच की मांग करने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) की सुनवाई 22 जुलाई के लिए निर्धारित की है. दो गैर सरकारी संगठनों- कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) द्वारा दायर जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ सुनवाई करेगी.
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने मामले को अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसके बाद सुनवाई की तिथि निर्धारित की गई. पीठ ने यह भी कहा कि शुक्रवार के लिए सूचीबद्ध इसी तरह की याचिका पर 22 जुलाई को जनहित याचिका के साथ ही सुनवाई की जाएगी.
गैर सरकारी संगठनों कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) द्वारा दायर याचिका में अधिकारियों को विभिन्न राजनीतिक दलों को शेल कंपनियों और घाटे में चल रही कंपनियों के वित्तपोषण के स्रोत की जांच करने का निर्देश देने की मांग की गई थी, जैसा कि चुनावी बॉन्ड डेटा के माध्यम से खुलासा किया गया है.
याचिका में अधिकारियों को यह निर्देश देने की भी मांग की गई है कि वे राजनीतिक दलों से कंपनियों द्वारा इन दलों को लेन-देन की व्यवस्था के तहत दिए गए दान की राशि वसूल करें, जहां ये अपराध की आय पाई जाती है. इसमें आरोप लगाया गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में करोड़ों रुपये का घोटाला शामिल है, जिसे सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में स्वतंत्र जांच के जरिए ही उजागर किया जा सकता है.
एसआइटी जांच की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में जांच की मांग करते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इस मामले की जांच में न केवल प्रत्येक मामले में पूरी साजिश को उजागर करने की जरूरत होगी, जिसमें कंपनी के अधिकारी, सरकार के अधिकारी और राजनीतिक दलों के पदाधिकारी शामिल होंगे, बल्कि ईडी या आईटी और सीबीआई जैसी एजेंसियों के संबंधित अधिकारी भी शामिल होंगे, जो इस साजिश का हिस्सा बन गए हैं.
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कई दवा कंपनियां, जो घटिया दवाएं बनाने के लिए विनियामक जांच के दायरे में थीं, उसने भी चुनावी बॉन्ड खरीदे. उन्होंने कहा कि इस तरह की व्यवस्था भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 का स्पष्ट उल्लंघन है.
सुप्रीम कोर्ट न ने अपने फरवरी के फैसले में चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था, जिसके तहत राजनीतिक दलों को गुमनाम तरीके से धन दिया जा सकता था, और एसबीआई को तुरंत चुनावी बॉन्ड जारी करना बंद करने का आदेश दिया था. इसने सर्वसम्मति से चुनावी बॉन्ड योजना के साथ-साथ आयकर अधिनियम और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में किए गए संशोधनों को भी रद्द कर दिया था, जिसके तहत दान को गुमनाम बना दिया गया था.
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