ETV Bharat / bharat

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सभी अनुसूचित जाति और जनजाति एक जैसी नहीं, रिजर्वेशन में जाति आधारित हिस्सेदारी संभव - SC sub classification SC ST

author img

By Sumit Saxena

Published : Aug 1, 2024, 11:28 AM IST

Updated : Aug 1, 2024, 2:55 PM IST

SC sub classification of SC- ST for purpose of reservation is permissible: सुप्रीम कोर्ट ने आज अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के भीतर उप-वर्गीकरण के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. शीर्ष अदालत ने आरक्षण के उद्देश्य से एससी/एसटी के भीतर उप वर्गीकरण को स्वीकार्य किया.

Supreme Court Sub Classification Of SC- ST
सुप्रीम कोर्ट (ANI)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाया. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संवैधानिक पीठ ने अनुसूचित जाति-जनजाति श्रेणियों के लिए उप-वर्गीकरण को मान्यता दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के भीतर उप-वर्गीकरण स्वीकार्य किया है.

पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमने चिन्नैया फैसले को खारिज कर दिया है. इसमें कहा गया था कि अनुसूचित जातियों का कोई भी 'उप-वर्गीकरण' संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) का उल्लंघन होगा. सीजेआई ने कहा कि उप-वर्गीकरण अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि उप-वर्गों को सूची से बाहर नहीं रखा गया है. संवैधानिक पीठ ने 6:1 के बहुमत से कहा, 'हमने माना है कि आरक्षण के उद्देश्य से अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण जायज है. सभी अनुसूचित जाति और जनजाति एक जैसी नहीं, रिजर्वेशन में जाति आधारित हिस्सेदारी संभव है.'

पीठ ने कहा, 'आरक्षण के माध्यम से चयनित उम्मीदवारों की अयोग्यता के कलंक के कारण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्य अक्सर उन्नति की सीढ़ी चढ़ने में असमर्थ होते हैं.' सीजेआई ने कहा, 'संविधान का अनुच्छेद 14 किसी वर्ग के उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है. न्यायालय को उप-वर्गीकरण की वैधता का परीक्षण करते समय यह निर्धारित करना चाहिए कि क्या वर्ग समरूप है. साथ ही उप-वर्गीकरण के उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक एकीकृत वर्ग है.'

सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ में जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र मिश्रा शामिल थे. पीठ ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार की ओर से दायर करीब दो दर्जन याचिकाओं पर फैसला सुनाया. जस्टिस त्रिवेदी ने इस फैसले से असहमति जताई है.

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 15 और 16 में ऐसा कुछ नहीं है जो राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से रोकता हो. उच्च न्यायालय ने पंजाब कानून की धारा 4(5) को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था, जिसमें 'वाल्मीकि' और 'मजहबी सिखों' को 50फीसदी कोटा दिया गया था, इसमें यह भी शामिल था कि यह प्रावधान ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 2004 के फैसले का उल्लंघन है.

ये भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, बार काउंसिल में SC/ST वकीलों का नामांकन सिर्फ 125 रुपये में

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाया. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संवैधानिक पीठ ने अनुसूचित जाति-जनजाति श्रेणियों के लिए उप-वर्गीकरण को मान्यता दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के भीतर उप-वर्गीकरण स्वीकार्य किया है.

पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमने चिन्नैया फैसले को खारिज कर दिया है. इसमें कहा गया था कि अनुसूचित जातियों का कोई भी 'उप-वर्गीकरण' संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) का उल्लंघन होगा. सीजेआई ने कहा कि उप-वर्गीकरण अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि उप-वर्गों को सूची से बाहर नहीं रखा गया है. संवैधानिक पीठ ने 6:1 के बहुमत से कहा, 'हमने माना है कि आरक्षण के उद्देश्य से अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण जायज है. सभी अनुसूचित जाति और जनजाति एक जैसी नहीं, रिजर्वेशन में जाति आधारित हिस्सेदारी संभव है.'

पीठ ने कहा, 'आरक्षण के माध्यम से चयनित उम्मीदवारों की अयोग्यता के कलंक के कारण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्य अक्सर उन्नति की सीढ़ी चढ़ने में असमर्थ होते हैं.' सीजेआई ने कहा, 'संविधान का अनुच्छेद 14 किसी वर्ग के उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है. न्यायालय को उप-वर्गीकरण की वैधता का परीक्षण करते समय यह निर्धारित करना चाहिए कि क्या वर्ग समरूप है. साथ ही उप-वर्गीकरण के उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक एकीकृत वर्ग है.'

सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ में जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र मिश्रा शामिल थे. पीठ ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार की ओर से दायर करीब दो दर्जन याचिकाओं पर फैसला सुनाया. जस्टिस त्रिवेदी ने इस फैसले से असहमति जताई है.

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 15 और 16 में ऐसा कुछ नहीं है जो राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से रोकता हो. उच्च न्यायालय ने पंजाब कानून की धारा 4(5) को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था, जिसमें 'वाल्मीकि' और 'मजहबी सिखों' को 50फीसदी कोटा दिया गया था, इसमें यह भी शामिल था कि यह प्रावधान ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 2004 के फैसले का उल्लंघन है.

ये भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, बार काउंसिल में SC/ST वकीलों का नामांकन सिर्फ 125 रुपये में
Last Updated : Aug 1, 2024, 2:55 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.