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हरिद्वार लोकसभा सीट पर फिट नहीं संत, जनता को नहीं भाती साधुओं की 'नेतागिरी', इन वजहों से दल बनाते हैं दूरी

Haridwar Lok Sabha seat, Saint on Haridwar Lok Sabha seat उत्तराखंड की हरिद्वार लोकसभा सीट से लगातार संतो को टिकट देने की मांग उठती रहती है, मगर इसके बाद भी राजनीतिक दल संतों को चुनावी मैदान में उतारने से दूरी बनाते हैं. हरिद्वार लोकसभा सीट पर राजनैतिक पार्टियां संतों को नेता क्यों नहीं बनाते? हरिद्वार लोकसभा सीट पर क्या है संतों का समीकरण? आइये आपको बताते हैं.

Haridwar Lok Sabha seat
हरिद्वार लोकसभा सीट पर फिट नहीं संत
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Mar 8, 2024, 9:38 PM IST

Updated : Mar 9, 2024, 3:44 PM IST

देहरादून (उत्तराखंड): लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बीजेपी ने उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों में से तीन पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. दो लोकसभा सीटों को अभी होल्ड पर रखा गया है. पौड़ी और हरिद्वार ये वो दो लोकसभा सीट हैं. पौड़ी लोकसभा सीट से ज्यादा हरिद्वार लोकसभा सीट को लेकर चर्चाएं तेज हैं. हरिद्वार को लेकर हर राजनीतिक दल सक्रिय और गंभीर है. यहां से उम्मीदवारी करने वाले नेताओं को हर तरीके से पार्टी परखती है. हरिद्वार का नाम सुनते ही मन में गंगा, मंदिर और आश्रम अखाड़े के साथ-साथ साधु संतों की छवि सामने आती है. काफी हद तक इन आश्रम, अखाड़े और साधु संतों के चरणों में कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी और तमाम दलों के नेता आए दिन बैठे रहते हैं. जब बात चुनाव में संतो को टिकट देने की आती है तो दोनों ही प्रमुख पार्टियों के माथे पर बाल आ जाता है. कई बार तो पार्टी के आला कमान को खुद साधु संतों के सामने हाथ जोड़ने पड़ते हैं.

जनता को नहीं भाती संतों की नेतागिरी: हरिद्वार लोकसभा सीट पर लंबे समय से संतों को टिकट देने की मांग उठती रहती है. भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों दलों ने कई बार संतों पर दांव भी खेला है, मगर संतों को इसमें सफलता नहीं मिलती. अभी की स्थिति को लेकर जानकार बताते हैं दोनों ही दलों ने फिलहाल किसी भी संत का नाम पैनल तक में नहीं भेजा है. दरअसल, हरिद्वार के वोटर साधु संतों को आध्यात्मिक रूप से बहुत तवज्जो देते हैं लेकिन जैसे ही बात राजनेता बनने की आती है तो यहां की जनता उन्हें इस रूप में स्वीकार नहीं करती. एक या दो अपवाद छोड़ दें तो अमूमन राजनीतिक दलों ने टिकट देने के मामले में संतों से तौबा ही की है.

Haridwar Lok Sabha seat
हरिद्वार लोकसभा सीट

लंबी है चुनाव लड़ने वाले संतो की लिस्ट: लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस जल्द ही लिस्ट जारी कर सकती है. भारतीय जनता पार्टी ने फिलहाल टिहरी लोकसभा के साथ-साथ अल्मोड़ा और नैनीताल लोकसभा पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है. हरिद्वार और पौड़ी को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने नाम तय नहीं किये हैं. संत समाज चाहता है कि हरिद्वार लोकसभा सीट पर अगर किसी संत को टिकट मिलता है तो वह इस सीट के साथ-साथ पार्टी को भी फायदा पहुंचाएंगे. आध्यात्मिक नगरी होने के कारण संत यहां के हालात और यहां के विकास पर अधिक ध्यान दे सकते हैं. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव महंत रविंद्र पुरी महाराज लगातार यह मांग कर रहे हैं कि किसी एक संत को भारतीय जनता पार्टी चुनावी मैदान में उतारे. बताया जाता है कि रवींद्र पुरी ने भी अपना बायोडाटा पार्टी आलाकमान को किसी महत्वपूर्ण सोर्स के माध्यम से भेजा है. इसके साथ ही हरिद्वार के एक बड़े संत आर्य समाजी स्वामी यतीश्वरानंद के लिए भी पैरवी कर रहे हैं. साथ ही साथ संतों में अगर बात की जाए तो एक बार हरीश रावत से हार चुके स्वामी यतींद्रानंद को भी चुनाव लड़वाने की मांग संतों की तरफ की जा रही है. इसके साथ ही हिंदू रक्षा सेवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी प्रबोधानंद गिरि का नाम भी इस लिस्ट में शामिल है.

Haridwar Lok Sabha seat
लोकसभा सीटों का गणित

इस कारण नहीं जीतते संत: हरिद्वार की राजनीति को लंबे समय से कवर करने वाले सुनील दत्त पांडे कहते हैं हरिद्वार भले ही संतों की नगरी हो लेकिन यहां पर संतों को जनता ने राजनेता के रूप में स्वीकार नहीं करती. एक दो बार जरूर कुछ संत यहां से जीते हैं लेकिन उसे समय भी कुछ कारण बने हैं. इसमें राम लहर में जगदीश मुनि जीते तो नारायण दत्त तिवारी सरकार में सतपाल ब्रह्मचारी नगर पालिका अध्यक्ष बन गए. सुनील दत्त पांडे कहते हैं सही बात तो यही है कि लोगों को लगता है कि हरिद्वार लोकसभा सीट है तो संत कोई कमाल कर सकता है, लेकिन पार्टी इसको लेकर बेहद समझदारी से काम लेती है. हरिद्वार लोकसभा सीट में हरिद्वार शहर, नारसन से लेकर देहरादून तक का क्षेत्र आता है. हरिद्वार में संतों की संख्या भी इतनी नहीं है कि वह अकेले दम पर किसी संत को चुनाव जितवा दें. अखाड़ों की पॉलिटिक्स भी इस मामले में काफी हद तक जिम्मेदार है.

हरिद्वार लोकसभा सीट से सांसदों की लिस्ट: हरिद्वार लोकसभा सीट पर अभी बीजेपी से रमेश पोखरियाल निशंक सांसद हैं. वे लगातार दो बार से इस सीट से सांसद बने हैं. इससे पहले साल 2009 में हरीश रावत इस लोकसभा सीट से सांसद बने. साल 2004 में समाजवादी पार्टी के राजेंद्र कुमार बाडी सांसद थे. 1996 से लेकर 1999 तक भारतीय जनता पार्टी के ही प्रत्याशी हरपाल सिंह साथी सांसद रहे. इससे पहले 1991 में राम सिंह सैनी सांसद थे. 1989 में जग पाल सिंह भी कांग्रेस पार्टी से सांसद रहे. 1984 में भी सुंदरलाल सांसद थे. 1980 में जगपाल सिंह जनता पार्टी के टिकट पर सांसद बने. 1977 में भगवान दास राठौर भारतीय लोक दल के सांसद रह चुके हैं.

Haridwar Lok Sabha seat
हरिद्वार लोकसभा सीट से सांसद

हरिद्वार में कुल 14 हजार संत वोटर: हरिद्वार के चुनावी आंकड़े संतों की जो हकीकत बयां करते हैं. एक बार विधानसभा चुनावों में बड़े अखाड़े के संत स्वामी सुंदर दास चुनावी मैदान में खड़े हुए. उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद जगदीश मुनि राम मंदिर आंदोलन की लहर में विधायक बने. इसके बाद लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में स्वामी यतींद्रानंद, सतपाल ब्रह्मचारी, ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी,फिर सतपाल ब्रह्मचारी को हार का सामना करना पड़ा. स्वामी यतिश्रानन्द विधानसभा में एक बार जीतने में कामयाब रहे. वे किसी अखाड़े से नहीं बल्कि आर्य समाजी हैं. अगली बार उन्हें भी चुनाव में जनता ने नकार दिया. हरिद्वार में संत वोटरों की संख्या कुल 14 हजार है.

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देहरादून (उत्तराखंड): लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बीजेपी ने उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों में से तीन पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. दो लोकसभा सीटों को अभी होल्ड पर रखा गया है. पौड़ी और हरिद्वार ये वो दो लोकसभा सीट हैं. पौड़ी लोकसभा सीट से ज्यादा हरिद्वार लोकसभा सीट को लेकर चर्चाएं तेज हैं. हरिद्वार को लेकर हर राजनीतिक दल सक्रिय और गंभीर है. यहां से उम्मीदवारी करने वाले नेताओं को हर तरीके से पार्टी परखती है. हरिद्वार का नाम सुनते ही मन में गंगा, मंदिर और आश्रम अखाड़े के साथ-साथ साधु संतों की छवि सामने आती है. काफी हद तक इन आश्रम, अखाड़े और साधु संतों के चरणों में कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी और तमाम दलों के नेता आए दिन बैठे रहते हैं. जब बात चुनाव में संतो को टिकट देने की आती है तो दोनों ही प्रमुख पार्टियों के माथे पर बाल आ जाता है. कई बार तो पार्टी के आला कमान को खुद साधु संतों के सामने हाथ जोड़ने पड़ते हैं.

जनता को नहीं भाती संतों की नेतागिरी: हरिद्वार लोकसभा सीट पर लंबे समय से संतों को टिकट देने की मांग उठती रहती है. भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों दलों ने कई बार संतों पर दांव भी खेला है, मगर संतों को इसमें सफलता नहीं मिलती. अभी की स्थिति को लेकर जानकार बताते हैं दोनों ही दलों ने फिलहाल किसी भी संत का नाम पैनल तक में नहीं भेजा है. दरअसल, हरिद्वार के वोटर साधु संतों को आध्यात्मिक रूप से बहुत तवज्जो देते हैं लेकिन जैसे ही बात राजनेता बनने की आती है तो यहां की जनता उन्हें इस रूप में स्वीकार नहीं करती. एक या दो अपवाद छोड़ दें तो अमूमन राजनीतिक दलों ने टिकट देने के मामले में संतों से तौबा ही की है.

Haridwar Lok Sabha seat
हरिद्वार लोकसभा सीट

लंबी है चुनाव लड़ने वाले संतो की लिस्ट: लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस जल्द ही लिस्ट जारी कर सकती है. भारतीय जनता पार्टी ने फिलहाल टिहरी लोकसभा के साथ-साथ अल्मोड़ा और नैनीताल लोकसभा पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है. हरिद्वार और पौड़ी को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने नाम तय नहीं किये हैं. संत समाज चाहता है कि हरिद्वार लोकसभा सीट पर अगर किसी संत को टिकट मिलता है तो वह इस सीट के साथ-साथ पार्टी को भी फायदा पहुंचाएंगे. आध्यात्मिक नगरी होने के कारण संत यहां के हालात और यहां के विकास पर अधिक ध्यान दे सकते हैं. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव महंत रविंद्र पुरी महाराज लगातार यह मांग कर रहे हैं कि किसी एक संत को भारतीय जनता पार्टी चुनावी मैदान में उतारे. बताया जाता है कि रवींद्र पुरी ने भी अपना बायोडाटा पार्टी आलाकमान को किसी महत्वपूर्ण सोर्स के माध्यम से भेजा है. इसके साथ ही हरिद्वार के एक बड़े संत आर्य समाजी स्वामी यतीश्वरानंद के लिए भी पैरवी कर रहे हैं. साथ ही साथ संतों में अगर बात की जाए तो एक बार हरीश रावत से हार चुके स्वामी यतींद्रानंद को भी चुनाव लड़वाने की मांग संतों की तरफ की जा रही है. इसके साथ ही हिंदू रक्षा सेवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी प्रबोधानंद गिरि का नाम भी इस लिस्ट में शामिल है.

Haridwar Lok Sabha seat
लोकसभा सीटों का गणित

इस कारण नहीं जीतते संत: हरिद्वार की राजनीति को लंबे समय से कवर करने वाले सुनील दत्त पांडे कहते हैं हरिद्वार भले ही संतों की नगरी हो लेकिन यहां पर संतों को जनता ने राजनेता के रूप में स्वीकार नहीं करती. एक दो बार जरूर कुछ संत यहां से जीते हैं लेकिन उसे समय भी कुछ कारण बने हैं. इसमें राम लहर में जगदीश मुनि जीते तो नारायण दत्त तिवारी सरकार में सतपाल ब्रह्मचारी नगर पालिका अध्यक्ष बन गए. सुनील दत्त पांडे कहते हैं सही बात तो यही है कि लोगों को लगता है कि हरिद्वार लोकसभा सीट है तो संत कोई कमाल कर सकता है, लेकिन पार्टी इसको लेकर बेहद समझदारी से काम लेती है. हरिद्वार लोकसभा सीट में हरिद्वार शहर, नारसन से लेकर देहरादून तक का क्षेत्र आता है. हरिद्वार में संतों की संख्या भी इतनी नहीं है कि वह अकेले दम पर किसी संत को चुनाव जितवा दें. अखाड़ों की पॉलिटिक्स भी इस मामले में काफी हद तक जिम्मेदार है.

हरिद्वार लोकसभा सीट से सांसदों की लिस्ट: हरिद्वार लोकसभा सीट पर अभी बीजेपी से रमेश पोखरियाल निशंक सांसद हैं. वे लगातार दो बार से इस सीट से सांसद बने हैं. इससे पहले साल 2009 में हरीश रावत इस लोकसभा सीट से सांसद बने. साल 2004 में समाजवादी पार्टी के राजेंद्र कुमार बाडी सांसद थे. 1996 से लेकर 1999 तक भारतीय जनता पार्टी के ही प्रत्याशी हरपाल सिंह साथी सांसद रहे. इससे पहले 1991 में राम सिंह सैनी सांसद थे. 1989 में जग पाल सिंह भी कांग्रेस पार्टी से सांसद रहे. 1984 में भी सुंदरलाल सांसद थे. 1980 में जगपाल सिंह जनता पार्टी के टिकट पर सांसद बने. 1977 में भगवान दास राठौर भारतीय लोक दल के सांसद रह चुके हैं.

Haridwar Lok Sabha seat
हरिद्वार लोकसभा सीट से सांसद

हरिद्वार में कुल 14 हजार संत वोटर: हरिद्वार के चुनावी आंकड़े संतों की जो हकीकत बयां करते हैं. एक बार विधानसभा चुनावों में बड़े अखाड़े के संत स्वामी सुंदर दास चुनावी मैदान में खड़े हुए. उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद जगदीश मुनि राम मंदिर आंदोलन की लहर में विधायक बने. इसके बाद लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में स्वामी यतींद्रानंद, सतपाल ब्रह्मचारी, ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी,फिर सतपाल ब्रह्मचारी को हार का सामना करना पड़ा. स्वामी यतिश्रानन्द विधानसभा में एक बार जीतने में कामयाब रहे. वे किसी अखाड़े से नहीं बल्कि आर्य समाजी हैं. अगली बार उन्हें भी चुनाव में जनता ने नकार दिया. हरिद्वार में संत वोटरों की संख्या कुल 14 हजार है.

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Last Updated : Mar 9, 2024, 3:44 PM IST
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