सागर: केमीकल इंजीनियरिंग जैसे विषय से उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद आमतौर पर लोग वैसा ही व्यावसाय या नौकरी करते हैं, लेकिन शायद ही कोई ऐसा हो, जो अपनी विशेषज्ञता के हिसाब से व्यावसाय या नौकरी ना करके पर्यावरण को बचाने के लिए काम करे. सागर की निलय शर्मा ने केमिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी की है. पढ़ाई के दौरान ही प्लास्टिक और केमिकल से पर्यावरण, मानव और जीव जंतुओं को हो रहे नुकसान की चिंता उन्हें सताने लगी. फिर उन्होंने ऐसा बिजनेस माॅडल तैयार किया. जो पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ मानव और जीव जंतुओं की सेहत के लिए नुकसान दायक नहीं है.
उन्होंने गेंहू और धान के भूसे के साथ गन्ने की खोई से कप प्लेट और ऐसे उत्पाद तैयार करे. जो सिंगल यूज होने के कारण कहीं फेंक दिए जाएं, तो खाद बन जाए और अगर जानवर खा ले, तो आसानी से पचा ले. अब वो इसका कारखाना बनाने जा रही है और जल्द ही पूरे देश में अपने प्रोडक्ट की सप्लाई करेंगी.
कौन हैं निलय शर्मा
डॉ निलय शर्मा ने जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. फिर इन्होंने एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग में एमटेक किया. इसके बाद आईआईटी गुवाहाटी से केमिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी की. पीएचडी के बाद एनआईटी जालंधर में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाने के बाद कोरोना और पारिवारिक समस्याओं के कारण वापस सागर आना पड़ा. पारिवारिक जिम्मेदारियां ऐसी थी कि उन्होंने खुद अपना व्यवसाय करने के बारे में सोचा. निलय शर्मा बताती हैं कि 'जब उन्होंने केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. इस दौरान उन्होंने देखा कि ज्यादातर चीज ऐसी है. जो पर्यावरण के लिए काफी घातक है. मानव और जीव जंतुओं के लिए भी नुकसानदायक है, तो उन्होंने कुछ ऐसा करने का सोचा की जो पर्यावरण के लिए नुकसानदायक ना हो और मानव और जीव जंतुओं के लिए भी शारीरिक रूप से नुकसान ना पहुंचाए.
कैसे आया आइडिया
डॉ निलय शर्मा बताती है कि सिंगल यूज प्लास्टिक का लगातार उपयोग हो रहा है और काफी नुकसान हो रहा है. कहीं ना कहीं माइक्रो प्लास्टिक मानव शरीर बाॅडी में पहुंच गया है. जब हम सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग करके कप प्लेट फेंकते हैं. उसमें खाना बचा होने के कारण जानवर उसको खा लेते हैं. ये हमारे शरीर के अंदर माइक्रो प्लास्टिक के रूप में पहुंच चुका है. इसके अलावा बडे़ शहरों और सागर में भी प्लास्टिक की वजह से बारिश में बाढ़ की स्थिति बन जाती है.
प्लास्टिक की वजह से ड्रैनेज सिस्टम चोक हो रहा है. नाले चोक होने से बस्तियों में पानी भर जाते हैं. यहीं देखकर लगा कि प्लास्टिक का बहुत नुकसान हुआ है और लगातार हो रहा है. भारत सरकार ने 1 जुलाई 2022 से अधिकारिक तौर पर प्लास्टिक को प्रतिबंधित कर दिया है. लोग बोलते हैं कि हमने प्लास्टिक छोडकर पेपर का उपयोग करना शुरू कर दिया है, लेकिन पेपर इकोफ्रेंडली नहीं होता है. पेपर पेड़ काटकर बनाए जाते हैं. फिर उस पर माइक्रोप्लास्टिक की कवर लगा दी जाती है कि उसमें से कोई चीज ना गिरे.
इसके अलावा इसमें काफी नुकसान दायक केमिकल मिलाए जाते हैं. तब जाकर पेपर की कोडिंग होती है. ये भी उतने ही नुकसानदायक है, जिस तरह सिंगल यूज प्लास्टिक होते हैं. यही देखकर मैंने सोचा कि उसको देखते हुए थर्ड जनरेशन प्रोडक्ट बनाना था. जो किसी के लिए भी हानिकारक ना हो. चाहे हवा, पानी, जमीन, मानव, पशु, जीव जंतु किसी को नुकसान ना पहुंचाते हुए ऐसा प्रोडक्ट बनाना था. जो आने वाले कल के लिए है. लोग इसको समझे और उपयोग करें, तो उनके शरीर और पर्यावरण के साथ पूरे ईको सिस्टम के लिए अच्छा है.
किन चीजों से बनाए ईको फ्रेंडली प्रोडक्ट
डॉ नीलेश शर्मा बताती है कि कोरोना के दौरान जब उन्हें घर वापस आना पड़ा और सागर में ही उनकी खेती किसानी है, तो किसी का कामकाज देखने के लिए उन्हें खेत जाना पड़ता था. वहां उन्होंने देखा कि धान और गेहूं का भूसा काफी मात्रा में बर्बाद भी होता है. ऐसे में उन्होंने सोचा कि यह हमारे बुंदेलखंड में जो एग्रीकल्चर बेस्ट मटेरियल है. जैसे धान का भूसा और गेंहू का भूसा है. गन्ने का रस निकालते हैं, तो उसकी खोई बचती है, उसका उपयोग हम इन प्रोडक्ट को
बनाने के लिए करते हैं.
इनके जरिए मैं सबसे पहले कप प्लेट तैयार किए हैं. जिसमें सभी ऐसी चीजों का प्रयोग किया गया है जो ना तो पर्यावरण को नुकसान पहुंचा है और ना ही मानव शरीर या जीव जंतुओं के लिए नुकसान पहुंचाए. मैंने जो कप प्लेट तैयार किए हैं. इनका उपयोग करने के बाद अगर इन्हें सडक पर फेंकते हैं और जानवर खाते हैं, तो आसानी से खा सकते हैं और पच जाता है. इसके अलावा अगर ये जमीन पर पड़ा भी रहे, तो खाद बन जाती है.
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व्यावसायिक तौर पर उत्पादन
डॉ निलय शर्मा बताती हैं कि प्रोडक्ट तैयार करने के बाद मैंने इसके बिजनेस मॉडल के बारे में काफी रिसर्च की. फिर मैंने सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी ली और स्टार्टअप के तौर पर इसे शुरू करने के बारे में सोचा. आइडिया से प्रभावित होकर एमपीआईडीसी ने मुझे सागर के सिंदगुंवा इंडस्ट्रियल एरिया में जमीन मुहैया कराई है. इसके अलावा मुझे लोन भी मिला है. फिलहाल फैक्ट्री का निर्माण कार्य चल रहा है और मशीनरी लगने के बाद करीब 20 लोगों को रोजगार मिलेगा. इसके अलावा देश के बड़े शहरों में प्रोडक्ट भेजने के लिए मार्केटिंग और सेल्स टीम की जरूरत पड़ेगी, तो उसमें भी लोगों को रोजगार मिलेगा. उन्होंने बताया कि अभी तक करीब साढ़े पांच लाख रुपए के प्रोडक्ट बेच चुकी हैं. एक अनुमान के मुताबिक इस व्यवसाय में उन्हें 20 से 30 खरीदी फायदा होने की उम्मीद है.