सागर: जब कोई इंसान मकान बनाने की सोचता है तो जमीन के बाद सबसे पहले उसके दिमाग में निर्माण सामग्री में होने वाले खर्च का ख्याल आता है. मकान निर्माण में ईंट,रेत, सीमेंट और लोहा जैसी चीजें अनिवार्य होती है. फिर मजदूरी और दूसरे खर्चों पर भी विचार करना होता है. अगर कोई ऐसी तकनीक बताए जिसमें ईंट के अलावा मकान की दीवारों पर होने वाले प्लास्टर का खर्चा कम हो जाए तो ऐसी तकनीक पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल होगा. सागर शहर के जाने माने इंजीनियर राजेश मिश्रा पिछले 10 सालों से बिना ईंट के कई मकानों और व्यावासियक इमारतों का निर्माण कर चुके हैं.
'बिना ईंट के दीवार बनाने की तकनीक'
इंजीनियर राजेश मिश्रा बताते हैं कि "लगातार भवन निर्माण में आने वाली नई और पुरानी तकनीकों का अध्ययन करता रहता हूं. मेरे मन में विचार आया कि बिना ईंट के क्या दीवार बनायी जा सकती है तो इसके लिए कई तरह के अध्ययन के बाद मैंने अपनी साइट्स पर प्रयोग शुरू किया. इस तकनीक में लोहा, रेत और सीमेंट का उपयोग होता है. ईंट का उपयोग ना होने के कारण हम दीवार बनाने के लिए पतली लोहे की छड़ों का उपयोग कर एक जालनुमा दीवार तैयार करते हैं. फिर सीधे रेत और सीमेंट का गारा उपयोग किया जाता है. जो आसानी से लोहे के फ्रेम को पकड़ लेता है और बिना ईंट की दीवार तैयार हो जाती है. लोहे के फ्रेम के कारण मजबूत होने के साथ-साथ इन दीवारों पर प्लास्टर की अलग से जरूरत नहीं होती है. साथ ही दीवार बनने के बाद उसे प्लास्टिक से ढक दिया जाता है, तो धूप पड़ने के कारण गारे में उपयोग हुआ पानी वाष्पीकृत नहीं हो पाता है और दीवारों की तराई होती रहती है. इन दीवारों के सूखने पर पुट्टी करने के बाद सीधे कलर किया जा सकता है."
'मिट्टी, जल संरक्षण और कार्बन उत्सर्जन में कमी'
इंजीनियर राजेश मिश्रा कहते हैं कि "ये तकनीक पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभाती है. सबसे पहले तो ईंटों का उपयोग ना होने के कारण ईंट में लगने वाली मिट्टी की बचत होती है. इसके साथ ही ईंट पकाने के लिए आग जलायी जाती है. ईंट भट्टों का धुंआ काफी हानिकारक होता है और बड़े पैमाने पर कार्बन उत्सर्जन करता है. इस तकनीक पानी की बचत भी काफी होती है. दीवारों को प्लास्टिक से ढक देने के कारण उनकी जरूरत का पानी दीवारों को अपने आप मिल जाता है.
'ईंट वाली दीवारों से ज्यादा सुरक्षित है ये दीवार'
इंजीनियर राजेश मिश्रा कहते हैं कि "अक्सर बरसात में हम दीवार ढहने वाली खबरें सुनते हैं और मलबे में दबने के कारण लोगों की दर्दनाक मौतों की खबर भी सुनने मिलती है. लेकिन इस तकनीक से निर्मित दीवारें भूकंप और भारी बरसात वाली स्थिति में उस तरह से नहीं ढहती है,जिस तरह ईंट वाली दीवारें भरभराकर गिरती हैं. ये दोनों तरफ लोहे के फ्रेम से बंधी होने के कारण काफी मजबूत होती हैं."
'करीब 15 से 20 प्रतिशत खर्च होता है कम'
इंजीनियर राजेश मिश्रा बताते हैं कि "इस तकनीक से मकान निर्माण में खर्चा भी ईंटों के मकान के मुकाबले कम होता है. हालांकि ये उस समय के ईंट के दामों पर निर्भर करता है लेकिन एक अनुमान के मुताबिक करीब 15 से 20 फीसदी खर्च इस तकनीक से निर्माण करने में कम हो जाता है."