पटनाः खुद को मोदी का 'हनुमान' कहने वाले चिराग पासवान के तेवर इन दिनों बदले-बदले नजर आ रहे हैं. पिछले कुछ दिनों से चिराग पासवान जिस तरह से सरकार के बड़े फैसलों का विरोध कर रहे हैं उससे वो केंद्रीय मंत्री कम विपक्ष के नेता ज्यादा लग रहे हैं. चिराग के इस रुख की तारीफ विपक्ष भी कर रहा है और सरकार पर दबाव बनाने की सलाह भी दे रहा है. चिराग के इस बदले रुख के बाद तो सियासी गलियारों में दूसरी किस्म की चर्चा भी शुरू हो चुकी है. हालांकि NDA नेता कह रहे हैं कि सबकुछ ठीक है.
केंद्र में मंत्री, स्टैंड विपक्ष वालाः 2024 के लोकसभा चुनाव में NDA के बैनर तले 100 फीसदी स्ट्राइक रेट के साथ चिराग पासवान की पार्टी ने बिहार की 5 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की. इस सफलता का चिराग को इनाम भी मिला और उन्हें मोदी 3.0 में कैबिनेट मंत्री बनाया गया. लेकिन कई बड़े मुद्दों पर चिराग ने खुलकर सरकार के फैसले का जिस तरह से सार्वजनिक तौर पर विरोध किया है उससे सरकार के लिए मुश्किल खड़ी हो गयी है.
जातीय जनगणना की मांगः केंद्र सरकार ने जनगणना कराने की घोषणा की तो विपक्ष की तरफ से जातीय जनगणना की मांग शुरू हो गई. चिराग पासवान ने विपक्ष के सुर में सुर मिलाए और केंद्र सरकार की सोच के विपरीत कहा कि जातीय जनगणना होनी चाहिए. राहुल गांधी और तेजस्वी यादव लगातार जातीय जनगणना की मांग करते रहे हैं और इसको लेकर सरकार पर लगातार हमलावर भी हैं. ऐसे में चिराग पासवान के बयान को विपक्ष ने लपक लिया. बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश सिंह और अन्य विपक्षी नेताओं ने चिराग फैसले के बयान की तारीफ तो की ही लगे हाथों केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की भी नसीहत दे डाली.
लैटरल बहाली का खुलकर विरोध: जातीय जनगणना के अलावा चिराग पासवान ने यूपीएससी के लैटरल बहाली वाले विज्ञापन का भी सार्वजनिक तौर पर विरोध किया. हालांकि ये पहली बार नहीं हो रहा था. चिराग के पुरजोर विरोध सहित कई चीजों का ध्यान रखते हुए केंद्र सरकार ने मजबूरी में यूपीएससी को इस विज्ञापन को वापस लेने के आदेश दे दिये. विपक्ष ने भी इस मुद्दे को जोर-जोर से उठाना शुरू किया था. इस तरह यहां भी चिराग का सुर विपक्ष के सुर से मिलता दिखा.
एससी-एसटी में कोटा को लेकर विरोध:इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण में कोटा बनाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार के सामने रखा. केंद्र सरकार इसको लेकर अपना रुख स्पष्ट करती इससे पहले ही विपक्ष ने इस मसले को लेकर केंद्र सरकार को घेरना शुरू किया और एससी-एसटी आरक्षण को खत्म करने की साजिश का आरोप लगाना शुरू किया. चिराग पासवान यहां भी विपक्ष के साथ खड़े नजर आए और ऐसी किसी भी कोशिश का विरोध का एलान किया. इतना ही नहीं इस मुद्दे पर विपक्ष के भारत बंद का भी चिराग पासवान ने समर्थन किया.
वक्फ बोर्ड विधेयकः एक और खास मसले पर चिराग के विचार अपनी ही सरकार से जुदा नजर आए और वो था वक्फ बोर्ड संशोधन बिल. 8 अगस्त को जब संसद में ये बिल पेश किया गया तो विपक्ष ने सरकार के खिलाफ जमकर हमला बोला और बिल को मुसलमान विरोधी करार दिया. इस मसले पर सरकार को संजीवनी दी जेडीयू नेता और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने जिन्होंने विपक्ष के नेताओं के आरोपों पर पलटवार किया और उन्हें आईना दिखाया. चिराग ने इस बिल का विरोध भले ही नहीं किया लेकिन जिस तरह से जेडीयू ने समर्थन किया वैसा समर्थन भी नहीं किया.
सियासी गलियारों में शुरू हुए कयासों के दौरः लोकसभा चुनाव के दौरान NDA और मोदी के साथ पूरी शक्ति के साथ खड़े चिराग पासवान के बदले तेवर ने सियासी गलियारों में नयी चर्चाओं को हवा दे दी है. राजनीतिक विशेषज्ञ सुनील पांडेय का भी कहना है कि चार बड़े मुद्दों पर चिराग पासवान ने जो लाइन ली है वो केंद्र सरकार की लाइन के अलग है जबकि वो खुद केंद्रीय मंत्री हैं. मतलब साफ है चिराग पासवान बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रेशर पॉलिटिक्स कर रहे हैं.
"चिराग पासवान को लेकर चर्चा चलने लगी है कि विधानसभा चुनाव आते-आते चिराग बिहार की राजनीति में जरूर उल्टा-पुल्टा करेंगे. ऐसे में आने वाले समय में चिराग निश्चित रूप से NDA के लिए चुनौती बनेंगे.इसे प्रेशर पॉलिटिक्स कहा जाता है, लेकिन प्रेशर पॉलिटिक्स भी किसी उद्देश्य के लिए होना चाहिए. सही बात तो ये है कि चिराग को सबकुछ मनमाफिक मिला है. वे बार-बार अपने को मोदी का हनुमान कहते हैं तो फिर राम से ये छल वाली प्रवृत्ति समझ में नहीं आती है."- सुनील पांडेय, राजनीतिक विशेषज्ञ
'हमारा रुख स्पष्ट है': हालांकि एलजेपीआर के नेता इसे सरकार का विरोध नहीं मान रहे हैं. पार्टी के प्रवक्ता प्रोफसर विनीत सिंह का कहना है कि हमारी पार्टी और हमारे नेता चिराग पासवान जी का रुख कुछ मामलों में बिल्कुल स्पष्ट है. जन सरकार को कोई भी मुद्दा खासकर उस समाज के लिए जो बिल्कुल हाशिए पर है, छुआछूत से आज भी ग्रसित है, उनके मुद्दों को हम मुखरता से उठाते रहते हैं.
" एससी-एसटी में क्रीमी लेयर, वक्फ बोर्ड, लैटरल एंट्री या जातिगत जनगणना की बात हो, हमने इसको प्रभावी तरीके से NDA के मंच पर उठाया है.NDA एक लोकतांत्रिक गठबंधन है और हम उसके महत्त्वपूर्ण घटक हैं तो हमें ये अधिकार मिलता है कि हम अपनी चिंताओं को वहां पर साझा करें. उस पर चर्चा भी होती है और सबसे खुशी की बात है कि प्रधानमंत्रीजी स्वयं उन मुद्दों पर संज्ञान लेते हैं और हमने देखा है कि उन मुद्दों पर उचित और त्वरित कार्रवाई भी होती है."- प्रोफेसर विनीत सिंह, प्रवक्ता, एलजेपीआर
बीजेपी को जवाब देना हो रहा है मुश्किलः चिराग पासवान के तेवर ने जिसके लिए सबसे बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है वो बीजेपी है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पशुपति कुमार पारस को दरकिनार करते हुए चिराग पासवान का खुलकर समर्थन किया और उनके मनमाफिक सीट और टिकट भी दिया, लेकिन चिराग पासवान के बदले तेवर से बीजेपी को बड़ा झटका लगा है. हालांकि बीजेपी नेता कह रहे हैं कि NDA पूरी तरह एकजुट है.
"चिराग पासवान खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते हैं. जातीय जनगणना की मांग भी करते हैं लेकिन उसे जारी नहीं करने की बात भी करते हैं. NDA को मजबूत करने में उनकी भी भूमिका रही है इसलिए उनकी मंशा पर शंका नहीं करना चाहिए.NDA मेंं जीतन मांझी भी हैं, उपेंद्र कुशवाहा भी है और नीतीश कुमार तो बिहार में सरकार ही चला रहे हैं. कुल मिलाकर NDA पूरी तरह एकजुट है."- राकेश कुमार सिंह, प्रवक्ता, बीजेपी
'बीजेपी की सियासी फजीहत': चिराग के बदलते तेवर पर राजनीतिक विशेषज्ञ प्रिय रंजन भारती का कहना है कि चिराग पासवान का रवैया विपक्ष जैसा है. नीतीश कुमार जिस प्रकार से दबाव की पॉलिटिक्स करते हुए अपनी सब बात बीजेपी से मनवाते रहे हैं चिराग पासवान भी उसी रास्ते पर हैं.
"चिराग पासवान की नजर बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है. लेकिन बीजेपी जिस प्रकार से अपने फैसलों पर लगातार यू टर्न ले रही है उससे उसकी फजीबत हो रही है. आने वाले विधानसभा चुनाव के समय इससे नुकसान पहुंच सकता है."- प्रियरंजन भारती, राजनीतिक विशेषज्ञ
क्या 2020 दोहराएंगे चिराग ?: केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के ताजा रुख से 2020 की यादें ताजा होने लगी हैं जब उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव में NDA से नाता तोड़ लिया था और अपने दम पर चुनाव लड़ा था. चिराग के इस फैसले के कारण NDA, खासकर जेडीयू को खासा नुकसान उठाना पड़ा था. हालांकि उससे एक साल पहले ही यानी 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में तत्कालीन एलजेपी ने NDA के बैनर तले चुनाव लड़कर 100 फीसदी स्ट्राइक रेट के साथ 6 सीट पर जीत हासिल की थी.
2020 और 2025 की परिस्थितियों में अंतरः चिराग पासवान के तेवर 2020 की याद जरूर दिला रहे हैं लेकिन फर्क ये है कि तब वो नीतीश और जेडीयू के खिलाफ जमकर हमलावर थे. लेकिन इस बार वो जिन फैसलों का विरोध कर रहे हैं वो उस सरकार के फैसले हैं जिस सरकार में वो खुद मंत्री हैं. यानी इस बार उनका विरोध बीजेपी से दिखाई पड़ रहा है. हालांकि अभी भी वो फैसलों पर सरकार के यू-टर्न की तारीफ जरूर कर रहे हैं.
चिराग के तेवर, पारस के लिए मौकाः इस बीच एक अहम सियासी घटनाक्रम में मंगलवार को आरएलजेपी के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात की. इस दौरान समस्तीपुर के पूर्व सांसद प्रिंस राज भी मौजूद रहे.चिराग पासवान के सरकार के फैसलों से अलग राय रखने के बीच करीब आधे घंटे तक चली शाह-पारस की मुलाकात को बेहद ही अहम माना जा रहा है. सियासी हलकों में इस बात की चर्चा है कि पारस के लिए NDA में अपनी जगह जमाने का ये सबसे मुफीद मौका है. शाह से मुलाकात के दौरान पारस ने ये भरोसा भी दिलाया कि आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी NDA का समर्थन करेगी.
दिलीप जायसवाल ने की थी पारस से मुलाकातः अमित शाह से पारस की मुलाकात को इसलिए हल्के में नहीं लिया जा सकता है, क्योंकि चिराग पासवान के सरकार के फैसलों से अलग रुख अपनाने के बाद बीजेपी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने खुद पशुपति पारस से मुलाकात की थी. वहीं जीतन राम मांझी ने भी शाह-पारस की मुलाकात को भविष्य के लिए अच्छा संकेत बताया और कहा कि मैं भी जल्द ही पारसजी से मिलूंगा.
कहीं 2020 वाला हश्र न हो जाएः 2019 में शानदार सफलता अर्जित करने के बाद एलजेपी की ओर से तब रामविलास पासवान को केंद्रीय कैबिनेट में जगह मिली थी, लेकिन 8 अक्टूबर 2020 को रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग पासवान ने NDA से अलग होकर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा. चिराग का ये दांव उल्टा पड़ गया और पूरे बिहार में सिर्फ एक सीट ही मिल पाई. इतना ही नहीं पार्टी में भी बड़ी टूट हो गयी और सभी सांसदों ने चिराग का साथ छोड़ दिया था.