ग्वालियर: संगीत सम्राट तानसेन, एक ऐसी शख्सियत जिसने अपने गायन से देश नहीं बल्कि दुनिया में नाम अमर कर दिया. हर साल भारत में तानसेन को समर्पित तानसेन समारोह का आयोजन उनकी जन्मस्थली ग्वालियर में आयोजित होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि संगीत सम्राट तानसेन बचपन में बेजुबान पैदा हुए थे? इसके बाद भी आखिर उन्होंने कैसे देश दुनिया में अपनी मधुर और सुरीली आवाज का डंका बजाया? चलिए आज आपको लेकर चलते हैं उनके गांव जहां उन्होंने साधना की और अपनी तान से प्राचीन शिव मंदिर की दीवारों तक को झुका दिया था.
ग्वालियर से 45 किमी दूर है तानसेन का जन्मस्थान
मध्य प्रदेश का ग्वालियर जिसे यूनेस्को ने संगीत नगरी यानी सिटी ऑफ म्यूजिक का खिताब दिया. इसी ग्वालियर मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर जंगलों के बीच बेहट गांव स्थित है. वो गांव जहां संगीत सम्राट तानसेन ने जन्म लिया था, जिस मिट्टी में खेल कूदकर बड़े हुए और जिस झिलमिल नदी के किनारे उन्होंने रियाज किया था, वह आज भी बेहट के जंगल में स्थित है. वह साधना स्थल यहां आज भी है, जहां बैठकर तानसेन गायन का अभ्यास करते थे. ये साधना स्थल जंगल में बने झिलमिलेश्वर महादेव मंदिर परिसर में स्थित है.
शिवजी की कृपा से हुआ था तानसेन का जन्म
बताया जाता है कि संगीत सम्राट तानसेन ने एक हिंदू परिवार में जन्म लिया था. वह इसी बेहट गांव में रहने वाले मकरंद पांडे के घर जन्मे थे और परिवार ने उनका नाम रामतनु (तनय) रखा था. झिलमिलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी पं. संजीव शर्मा ने बताया, '' मकरंद पांडे को विवाह के कई वर्षों बाद तक कोई संतान नहीं हुई थी. उस दौरान इस मंदिर पर सेवा कर रहे उनके पूर्वज ने मकरंद पांडे से शिवलिंग पर बकरी का दूध चढ़ाने के लिए कहा और ऐसा नियमित करने से मकरंद को रामतनु के रूप में पुत्र प्राप्त हुआ.''
बचपन से बोल नहीं सकते थे तानसेन
पुजारी संजीव शर्मा ने आगे बताया, '' पुत्र प्राप्ति के बाद मकरंद ने शिव जी से दूरी बना ली, जिसका असर ये हुआ कि जब बेटा थोड़ा बड़ा हुआ तो उसके गले में आवाज ही नहीं थी. कुछ दिनों बाद पता चला कि रामतनु गूंगा है. परेशान मकरंद पांडे एक बार फिर महादेव के मंदिर में पुजारी के पास पहुंचे. पुजारी ने उपाय बताया कि रामतनु अगर अपने पिता की भांति प्रतिदिन शिवलिंग पर दूध चढ़ाए तो हो सकता है कि ईश्वर की कृपा हो और उसकी आवाज आ जाए. इस बात पर ध्यान देते हुए मकरंद पांडे ने अपने बेटे रामतनु को प्रतिदिन शिवलिंग पर दूध चढ़ाने के लिए भेजना शुरू कर दिया.''
नियमित दुग्धाभिषेक करते थे रामतनु
पुजारी संजीव शर्मा के मुताबिक, '' धीरे-धीरे समय बीतता गया और रामतनु पांडे के माता-पिता का देहांत हो गया. अब रामतनु अकेले हो गए, लेकिन उन्होंने अपना नियम नहीं तोड़ा. वह प्रतिदिन हर हाल में भगवान शिव का दुग्ध अभिषेक करने बकरी के साथ जाया करते थे. एक दिन रामतनु जंगल में अपने जानवरों को चराने गए थे. अचानक बारिश आई तो सभी जानवर घर की ओर दौड़ पड़े और उनके पीछे-पीछे रामतनु भी घर पहुंच गए. घर पहुंचकर जब वह भोजन करने बैठे तो याद आया कि उन्होंने झिलमिलेश्वर महादेव पर दुग्धाभिषेक नहीं किया है. इसके बाद वह तुरंत बकरी को कंधे पर रखकर जंगल की ओर चल दिए. भारी बारिश की वजह से गांव से लगा नाला उस समय उफान पर था. लोगों ने रामतनु को रोकने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने जान की परवाह किए बिना ही नाला पार किया और मंदिर पहुंचे.
भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव ने दी आवाज
पुजारी संजीव शर्मा ने आगे बताया, '' रामतनु ने बकरी को आगे किया और जैसे ही शिवलिंग पर दूध की पहली बूंद गिरी तो आवाज आई कि मांग क्या मांगता है? रामतनु आवाज सुन चौंके. वह शिवलिंग के गर्भ गृह से बाहर आए तो देखा वहां कोई नहीं था. वह गर्भ गृह में दोबारा जाने ही वाले थे कि एक बार फिर वही गूंज सुनाई दी. आवाज आई कि मांग क्या मांगता है? रामतनु ने अपने गले की ओर इशारा किया. इसके बाद फिर उधर से आवाज आई कि जितनी तेज आवाज निकाल सकता है, निकाल ले, उतनी आवाज जीवन भर रहेगी. रामतनु ने भगवान से प्रार्थना की कि उनकी आवाज इतनी सुरीली हो कि उनका नाम अमर हो जाए. ये प्रार्थना करते ही रामतनु ने जोर से एक अलाप लिया जो इतना तेज था कि एक बिजली जैसी तेज चमक के साथ सामने मौजूद मंदिर की पूरी दीवारें टेढ़ी हो गईं. उसके बाद वह रोजाना उस मंदिर में आकर संगीत साधना करने लगे और उनकी आवाज पूरी तरह से वापस आ गई.
अकबर ने बेहट में ली थी तानसेन की परीक्षा
इतिहासकार बताते हैं कि आज भी झिलमिलेश्वर महादेव परिसर में तानसेन का साधना स्थल मौजूद है, जहां वह बैठकर संगीत का अलाप करते थे. ऐसा कहा जाता है कि तानसेन जब मुगल सुल्तान अकबर के दरबार में थे. तब अकबर भी इस मंदिर पर आया करते थे, लेकिन उन्हें इस तरह के चमत्कारों पर विश्वास नहीं था. इसलिए इसे प्रमाणित करने के लिए शर्त रखी कि वह उस मंदिर को तुड़वाकर दोबारा बनवाएगा. अगर तानसेन की आवाज़ से दीवारें दोबारा टेढ़ी नहीं हुई तो उनका सर कलम करा दिया जाएगा. अकबर ने वैसा ही किया. गांव वालों के विरोध के बावजूद मंदिर तुड़वाया और पहले से ज्यादा मजबूत खंबे शिवलिंग के चारों ओर खड़े करवाकर गुंबद बनवाया. उसके बाद तानसेन से वह चमत्कार करने के लिए कहा. अपने आराध्य से प्रार्थना कर तानसेन ने ध्रुपद गाया और वैसे ही मंदिर की दीवारें एक बार फिर पहले की तरह ही तिरछी हो गईं और आज भी उसी स्थिति में हैं.
- संगीत शैलियों में फिर जीवित होगी तानसेन की नगरी, दिखेगा ग्वालियर का सांगीतिक वैभव
- तानसेन की खट्टी इमली खाकर निकलते हैं मीठे राग, खुद संगीत सम्राट भी चबाते थे इस पेड़ की पत्तियां
हर साल तानसेन समारोह की होती है संगीत सभा
तानसेन से जुड़ी तमाम कहानियां हैं, लेकिन इनका कोई पुष्ट आधार नहीं है. ऐसे में उनसे जुड़ी जानकारी ज्यादातर किवदंती मानी जाती हैं. तानसेन की जन्मस्थली बेहट में हर साल तानसेन समारोह के दौरान आज भी संगीत सभा की जाती है, जो यह स्पष्ट करती है कि इस क्षेत्र का तानसेन से नाता जरूर रहा है.