ETV Bharat / bharat

फ्रेंडशिप डे स्पेशल: बिहार की राजनीति में अनोखी मिसाल है 'बड़े भाई-छोटे भाई' की दोस्ती की कहानी - Friendship Day 2024

कहा जाता है कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त नहीं होता, ना ही कोई दुश्मन. लेकिन बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार और लालू यादव की दोस्ती इस कथन को चुनौती देती है. भले ही वे अलग-अलग गठबंधनों में रहे हों, उनकी आपसी समझ और व्यक्तिगत संबंधों की गहराई ने राजनीति से ऊपर उठकर एक मिसाल पेश की है. पढ़ें, फ्रेंडशिप डे के मौके पर विशेष रिपोर्ट:

नीतीश और लालू की दोस्ती की कहानी.
नीतीश और लालू की दोस्ती की कहानी. (ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 4, 2024, 5:05 PM IST

पटनाः बिहार की सियासत में दोस्ती की अनोखी मिसाल, नीतीश कुमार और लालू यादव हैं. ये दोनों दिग्गज नेता भले ही राजनीतिक तौर पर विभिन्न गठबंधनों का हिस्सा रहे हों, लेकिन उनकी दोस्ती और आपसी समझ की कहानी राजनीति से परे एक मिसाल बनी हुई है. वर्षों से सत्ता और विपक्ष के बीच संतुलन बनाने वाले ये नेता न सिर्फ अपने सियासी कौशल के लिए जाने जाते हैं, बल्कि अपनी दोस्ती के लिए भी मशहूर हैं. आइए, जानते हैं कैसे इन दोनों की दोस्ती ने बिहार की राजनीति को नई दिशा दी है.

दोनों की जोड़ी को अद्वितीयः लालू यादव की जीवंत और बेबाक शैली के विपरीत नीतीश कुमार का शांति और संतुलित दृष्टिकोण, दोनों की जोड़ी को अद्वितीय बनाता है. उनके बीच की समझ और विश्वास ने न सिर्फ बिहार की राजनीति में नई दिशा दी है, बल्कि यह भी सिखाया है कि राजनीतिक मतभेदों के बावजूद व्यक्तिगत संबंधों को कैसे संजोया जा सकता है. दोनों नेता राजनीतिक तौर पर कभी दूर होते हैं कभी साथ आते हैं बावजूद इसके दोनों के दोस्ताना संबंध कायम है. दोनों ने दो दोस्ती को कायम रखने के लिए एक दूसरे को कई बार सहारा दिया. नीतीश कुमार, लालू यादव को बड़े भाई कहकर संबोधित करते हैं तो वहीं लालू यादव भी छोटे भाई वाला स्नेह देते हैं.

नीतीश के लिए प्रभुनाथ को लगायी थी फटकारः वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह बताते हैं कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के बीच गहरी दोस्ती है. एक बार प्रभु नाथ सिंह मंच से नीतीश कुमार के बारे में भला बुरा कह रहे थे, तभी लालू प्रसाद यादव ने प्रभु नाथ सिंह को डांटा. कहा कि नीतीश मुख्यमंत्री हैं इसका ख्याल कीजिए. राजनीतिक तौर पर लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार भले ही अलग हैं, लेकिन दोनों के बीच अक्सर बातचीत होती रहती है दोनों के व्यक्तिगत संबंध अच्छे हैं.

"एक बार मैंने नीतीश कुमार से पूछा कि आपने लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनाने में मदद क्यों किया था, तो नीतीश कुमार ने कहा था कि लालू प्रसाद यादव ने सत्ता को अपनी पीढ़ी में लाने का काम किया इसलिए मैंने उन्हें मदद किया था."- संतोष सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

कब से शुरू हुई दोस्ती: 1970 के दशक में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार एक दूसरे के करीब आए. लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार दोनों पटना विश्वविद्यालय के छात्र थे. नीतीश कुमार इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे तो लालू प्रसाद यादव विधि स्नातक के छात्र थे. पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ का पहला चुनाव 1971 में हुआ तब लालू प्रसाद यादव को रामजतन सिन्हा ने हरा दिया था. 1973 में छात्र संघ का दूसरा चुनाव हुआ तो लालू प्रसाद यादव ने जीत हासिल की. लालू प्रसाद यादव को छात्र संघ चुनाव में जीत दिलाने में नीतीश कुमार की अहम भूमिका थी. नीतीश कुमार ने इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों का वोट लालू यादव को दिलवाया था.

जेपी आंदोलन के दौरान आए और करीबः जेपी आंदोलन में नीतीश कुमार की सक्रियता बढ़ी. इस आंदोलन के दौरान ही नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव एक दूसरे के करीब आए. लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक सफर को बहुत हद तक नीतीश कुमार ने आसान बनाया. 1990 में राजनीतिक परिस्थितियों बदल रही थी और कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद नेता प्रतिपक्ष के पद को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी. लालू प्रसाद यादव के समक्ष कई चुनौतियां थी, जिनमें रामसुंदर दास, गजेंद्र प्रसाद हिमांशु, रघुनाथ झा जैसे दिग्गज नेता थे. तब लालू प्रसाद यादव ने अपने पक्ष में गोलबंदी शुरू की.

शरद और नीतीश ने संभाला मोर्चाः नेता प्रतिपक्ष पद हासिल करने के लिए 42 विधायकों का समर्थन जरूरी था. विधायक लालू प्रसाद यादव के पक्ष में नहीं थे. उन परिस्थितियों में शरद यादव और नीतीश कुमार ने मोर्चा संभाला. लालू प्रसाद यादव के पक्ष में विधायकों को खड़ा किया. शरद यादव चाहते थे कि लालू प्रसाद यादव नेता प्रतिपक्ष और बिहार का मुख्यमंत्री बने. यह जिम्मेदारी शरद यादव ने नीतीश कुमार को दी. नीतीश कुमार भी लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनना चाहते थे. आखिरकार नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की मुहिम काम आए और लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बने.

दोनों के बीच दोस्ती की कड़ीः 1993 आते-आते नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के बीच राजनीतिक दूरियां बढ़ने लगी. 1991 के लोकसभा चुनाव में जनता दल को 54 में 48 सीटों पर जीत हासिल हुई थी और लालू प्रसाद यादव मजबूत नेता के रूप में उभर चुके थे. कई ऐसे मौके आए जब लालू प्रसाद यादव ने नीतीश कुमार की बात को मनाना बंद कर दिया. और तभी नीतीश कुमार ने अलग होने का मन बना लिया. 1994 में समता पार्टी का गठन हुआ. लेकिन 2015 में साथ आए. कुछ वर्षों बाद फिर 2022 में नीतीश और लालू एक साथ आए. दोनों नेता ओबीसी पॉलिटिक्स को एक साथ धार देने का काम करते हैं. यही दोनों के बीच दोस्ती की कड़ी है.

क्यों मनाते हैं फ्रेंडशिप डेः फ्रेंडशिप डे की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. अमेरिका में 1935 में अगस्त महीने के पहले रविवार के दिन सबको स्तब्ध करने वाली घटना हुई अमेरिका में एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई और माना जाता है की हत्या के पीछे अमेरिकी सरकार की भूमिका थी जिसकी मौत हुई थी उसका एक दोस्त खबर सुनकर हताश और निराश हुआ और उसने भी आत्महत्या कर ली उसकी दोस्ती और लगाओ को देखते हुए अगस्त के पहले रविवार को उसी दिन से फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाया जाने लगा.

इसे भी पढ़ेंः फ्रेंडशिप डे 2024: 'थ्री इडियट्स' से 'जाने तू या..' तक बॉलीवुड की ये फिल्में सिखाती हैं फ्रेंडशिप के गुर, दोस्तों संग करें एंजॉय - Friendship Day 2024

इसे भी पढ़ेंः इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे मनाने की क्यों पड़ी जरूरत, जानें वजह - International Day of Friendship

पटनाः बिहार की सियासत में दोस्ती की अनोखी मिसाल, नीतीश कुमार और लालू यादव हैं. ये दोनों दिग्गज नेता भले ही राजनीतिक तौर पर विभिन्न गठबंधनों का हिस्सा रहे हों, लेकिन उनकी दोस्ती और आपसी समझ की कहानी राजनीति से परे एक मिसाल बनी हुई है. वर्षों से सत्ता और विपक्ष के बीच संतुलन बनाने वाले ये नेता न सिर्फ अपने सियासी कौशल के लिए जाने जाते हैं, बल्कि अपनी दोस्ती के लिए भी मशहूर हैं. आइए, जानते हैं कैसे इन दोनों की दोस्ती ने बिहार की राजनीति को नई दिशा दी है.

दोनों की जोड़ी को अद्वितीयः लालू यादव की जीवंत और बेबाक शैली के विपरीत नीतीश कुमार का शांति और संतुलित दृष्टिकोण, दोनों की जोड़ी को अद्वितीय बनाता है. उनके बीच की समझ और विश्वास ने न सिर्फ बिहार की राजनीति में नई दिशा दी है, बल्कि यह भी सिखाया है कि राजनीतिक मतभेदों के बावजूद व्यक्तिगत संबंधों को कैसे संजोया जा सकता है. दोनों नेता राजनीतिक तौर पर कभी दूर होते हैं कभी साथ आते हैं बावजूद इसके दोनों के दोस्ताना संबंध कायम है. दोनों ने दो दोस्ती को कायम रखने के लिए एक दूसरे को कई बार सहारा दिया. नीतीश कुमार, लालू यादव को बड़े भाई कहकर संबोधित करते हैं तो वहीं लालू यादव भी छोटे भाई वाला स्नेह देते हैं.

नीतीश के लिए प्रभुनाथ को लगायी थी फटकारः वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह बताते हैं कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के बीच गहरी दोस्ती है. एक बार प्रभु नाथ सिंह मंच से नीतीश कुमार के बारे में भला बुरा कह रहे थे, तभी लालू प्रसाद यादव ने प्रभु नाथ सिंह को डांटा. कहा कि नीतीश मुख्यमंत्री हैं इसका ख्याल कीजिए. राजनीतिक तौर पर लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार भले ही अलग हैं, लेकिन दोनों के बीच अक्सर बातचीत होती रहती है दोनों के व्यक्तिगत संबंध अच्छे हैं.

"एक बार मैंने नीतीश कुमार से पूछा कि आपने लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनाने में मदद क्यों किया था, तो नीतीश कुमार ने कहा था कि लालू प्रसाद यादव ने सत्ता को अपनी पीढ़ी में लाने का काम किया इसलिए मैंने उन्हें मदद किया था."- संतोष सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

कब से शुरू हुई दोस्ती: 1970 के दशक में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार एक दूसरे के करीब आए. लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार दोनों पटना विश्वविद्यालय के छात्र थे. नीतीश कुमार इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे तो लालू प्रसाद यादव विधि स्नातक के छात्र थे. पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ का पहला चुनाव 1971 में हुआ तब लालू प्रसाद यादव को रामजतन सिन्हा ने हरा दिया था. 1973 में छात्र संघ का दूसरा चुनाव हुआ तो लालू प्रसाद यादव ने जीत हासिल की. लालू प्रसाद यादव को छात्र संघ चुनाव में जीत दिलाने में नीतीश कुमार की अहम भूमिका थी. नीतीश कुमार ने इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों का वोट लालू यादव को दिलवाया था.

जेपी आंदोलन के दौरान आए और करीबः जेपी आंदोलन में नीतीश कुमार की सक्रियता बढ़ी. इस आंदोलन के दौरान ही नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव एक दूसरे के करीब आए. लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक सफर को बहुत हद तक नीतीश कुमार ने आसान बनाया. 1990 में राजनीतिक परिस्थितियों बदल रही थी और कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद नेता प्रतिपक्ष के पद को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी. लालू प्रसाद यादव के समक्ष कई चुनौतियां थी, जिनमें रामसुंदर दास, गजेंद्र प्रसाद हिमांशु, रघुनाथ झा जैसे दिग्गज नेता थे. तब लालू प्रसाद यादव ने अपने पक्ष में गोलबंदी शुरू की.

शरद और नीतीश ने संभाला मोर्चाः नेता प्रतिपक्ष पद हासिल करने के लिए 42 विधायकों का समर्थन जरूरी था. विधायक लालू प्रसाद यादव के पक्ष में नहीं थे. उन परिस्थितियों में शरद यादव और नीतीश कुमार ने मोर्चा संभाला. लालू प्रसाद यादव के पक्ष में विधायकों को खड़ा किया. शरद यादव चाहते थे कि लालू प्रसाद यादव नेता प्रतिपक्ष और बिहार का मुख्यमंत्री बने. यह जिम्मेदारी शरद यादव ने नीतीश कुमार को दी. नीतीश कुमार भी लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनना चाहते थे. आखिरकार नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की मुहिम काम आए और लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बने.

दोनों के बीच दोस्ती की कड़ीः 1993 आते-आते नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के बीच राजनीतिक दूरियां बढ़ने लगी. 1991 के लोकसभा चुनाव में जनता दल को 54 में 48 सीटों पर जीत हासिल हुई थी और लालू प्रसाद यादव मजबूत नेता के रूप में उभर चुके थे. कई ऐसे मौके आए जब लालू प्रसाद यादव ने नीतीश कुमार की बात को मनाना बंद कर दिया. और तभी नीतीश कुमार ने अलग होने का मन बना लिया. 1994 में समता पार्टी का गठन हुआ. लेकिन 2015 में साथ आए. कुछ वर्षों बाद फिर 2022 में नीतीश और लालू एक साथ आए. दोनों नेता ओबीसी पॉलिटिक्स को एक साथ धार देने का काम करते हैं. यही दोनों के बीच दोस्ती की कड़ी है.

क्यों मनाते हैं फ्रेंडशिप डेः फ्रेंडशिप डे की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. अमेरिका में 1935 में अगस्त महीने के पहले रविवार के दिन सबको स्तब्ध करने वाली घटना हुई अमेरिका में एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई और माना जाता है की हत्या के पीछे अमेरिकी सरकार की भूमिका थी जिसकी मौत हुई थी उसका एक दोस्त खबर सुनकर हताश और निराश हुआ और उसने भी आत्महत्या कर ली उसकी दोस्ती और लगाओ को देखते हुए अगस्त के पहले रविवार को उसी दिन से फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाया जाने लगा.

इसे भी पढ़ेंः फ्रेंडशिप डे 2024: 'थ्री इडियट्स' से 'जाने तू या..' तक बॉलीवुड की ये फिल्में सिखाती हैं फ्रेंडशिप के गुर, दोस्तों संग करें एंजॉय - Friendship Day 2024

इसे भी पढ़ेंः इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे मनाने की क्यों पड़ी जरूरत, जानें वजह - International Day of Friendship

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.