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अजब एमपी की गजब कहानी, छिंदवाड़ा के सरकारी स्कूल में नहीं हैं बच्चे लेकिन हर दिन स्कूल पहुंचते हैं टीचर - Chhindwara School Without Children

एमपी में कई जिलों में ऐसे स्कूल हैं जहां बच्चों की संख्या ज्यादा है और उस अनुपात में शिक्षक नहीं हैं लेकिन छिंदवाड़ा में एक स्कूल ऐसा भी है जहां एक भी बच्चे का एडमिशन नहीं है लेकिन शिक्षक की नियुक्ति जरूर है. खास बात ये है कि ये शिक्षक रोज स्कूल भी आते हैं और इस बात की जानकारी शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों को है लेकिन वही ढाक के तीन पात वाली स्थिति है.

PRIMARY SCHOOL THUNIA UDNA VILLAGE
छिंदवाड़ा जिले के उदना गांव का सरकारी स्कूल (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : May 5, 2024, 5:28 PM IST

छिंदवाड़ा। स्कूल में शिक्षक का काम है पढ़ाना और वह पढ़ाएगा भी तभी जब स्कूल में बच्चे होंगे, और यदि स्कूल में एक भी बच्चा नहीं हो तो फिर ऐसे स्कूल में भला शिक्षक का क्या काम. खैर अधिकारियों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि स्कूल में बच्चे हैं या नहीं क्योंकि ये सरकारी स्कूल है और यहां पदस्थ शिक्षक को भी इस बात से लेना देना नहीं है कि स्कूल में बच्चे नहीं हैं उनका काम है बस प्रतिदिन स्कूल आना है और शाम ढलते ही घर चले जाना है. छिंदवाड़ा से महज 7 किमी दूर एक ऐसा ही सरकारी स्कूल है जहां पदस्थ शिक्षक खानापूर्ती के लिए सिर्फ ड्यूटी बजाने पहुंचते हैं.

छिंदवाड़ा जिले के थुनिया उदना गांव का सरकारी स्कूल
Chhindwara School Without Children (ETV Bharat)

बच्चे नहीं तो क्या टीचर तो हैं पदस्थ

छिंदवाड़ा जिला मुख्यालय से महज 7 किलोमीटर दूर थुनिया उदना गांव में पहली से पांचवी तक सरकारी स्कूल है. पढ़ाई का स्तर गिरता गया तो धीरे-धीरे परिजनों का स्कूल से मोह भंग हो गया और धीरे-धीरे सभी ने अपने बच्चों को यहां पढ़ाना बंद कर दिया. अब हालात यह है कि पहली से पांचवी तक स्कूल में एक भी बच्चे का एडमिशन नहीं है लेकिन एक टीचर की पोस्टिंग जरूर है. ग्रामीणों का कहना है कि हर दिन स्कूल में शिक्षक आते हैं और शाम को घर चले जाते हैं.

गांव में हैं करीब 500 बच्चे

थुनिया उदना गांव में करीब 1500 की जनसंख्या है और गांव में करीब 500 बच्चे हैं. ये सभी बच्चे निजी और गांव के बाहर के दूसरे सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं. गांव के सरपंच सुनील यदुवंशी ने बताया कि "स्कूल में पढ़ाई का स्तर ठीक नहीं होने की वजह से कोई भी ग्रामीण अपने बच्चों का इस स्कूल में दाखिला नहीं करवाता है, इसी कारण अब स्कूल खाली हो गया है. धीरे-धीरे गांव वालों ने अपने बच्चों को यहां से निकालकर निजी स्कूलों में या आसपास के दूसरे सरकारी स्कूलों में शिफ्ट कर दिया है. गांव के स्कूल में सिर्फ एक शिक्षक हैं जो बीएलओ का काम करते हैं."

3 बच्चों के लिए 3 टीचर

जिले के सिर्फ थुनिया उदना गांव के स्कूल का ही ऐसा हाल नहीं है बल्कि शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर सारना गांव के स्कूल के भी हालात ऐसे ही हैं. यहां के सरकारी स्कूल में 3 बच्चे हैं और 3 बच्चों को पढ़ाने के लिए यहां 3 शिक्षकों की पोस्टिंग है. बताया जाता है कि छिंदवाड़ा शहर में रहने वाले अधिकतर शिक्षकों की पोस्टिंग ग्रामीण और आदिवासी अंचलों के स्कूलों में है लेकिन जुगाड़ के चलते अधिकतर शिक्षक शहर के नजदीक स्कूलों में अटैचमेंट करवा लेते हैं ताकि उन्हें दूर जाकर काम ना करना पड़े वहीं दूर दराज के क्षेत्रों में कई स्कूल ऐसे हैं जहां पर बच्चे तो हैं लेकिन एक भी शिक्षक नहीं है.

कई जगह के बच्चे कर चुके हैं आंदोलन

2023 के सत्र के दौरान छिंदवाड़ा जिले के अमरवाड़ा विधानसभा के ग्रामीण इलाके और जुन्नारदेव विधानसभा के आदिवासी अंचलों से कई बच्चों ने कलेक्टर कार्यालय में जाकर धरना प्रदर्शन भी किया था. बच्चों का कहना था कि उनके गांव में स्कूल भी है और बच्चे भी बहुत हैं लेकिन पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं हैं. कई स्कूल तो अतिथि शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं लेकिन एक तस्वीर यह भी है कि जहां पर बच्चे नहीं हैं वहां शिक्षक हैं और जहां बच्चे हैं तो वहां शिक्षक नहीं हैं. इस व्यवस्था से एमपी की शिक्षा व्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है.

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'वरिष्ठ अधिकारियों को दी गई है जानकारी'

जिला शिक्षा अधिकारी जीएस बघेल का कहना है कि "गांव में लगातार स्कूल में बच्चों को भेजने के लिए जागरुकता और दूसरे अभियान चलाए जा रहे हैं. सारी व्यवस्थाएं भी स्कूल में दी जा रही हैं. इस संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित कर दिया गया है जो आदेश आएगा अग्रिम कार्रवाई की जाएगी. अभी एक शिक्षक की पदस्थापना है जो बीएलओ का काम कर रहे हैं."

छिंदवाड़ा। स्कूल में शिक्षक का काम है पढ़ाना और वह पढ़ाएगा भी तभी जब स्कूल में बच्चे होंगे, और यदि स्कूल में एक भी बच्चा नहीं हो तो फिर ऐसे स्कूल में भला शिक्षक का क्या काम. खैर अधिकारियों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि स्कूल में बच्चे हैं या नहीं क्योंकि ये सरकारी स्कूल है और यहां पदस्थ शिक्षक को भी इस बात से लेना देना नहीं है कि स्कूल में बच्चे नहीं हैं उनका काम है बस प्रतिदिन स्कूल आना है और शाम ढलते ही घर चले जाना है. छिंदवाड़ा से महज 7 किमी दूर एक ऐसा ही सरकारी स्कूल है जहां पदस्थ शिक्षक खानापूर्ती के लिए सिर्फ ड्यूटी बजाने पहुंचते हैं.

छिंदवाड़ा जिले के थुनिया उदना गांव का सरकारी स्कूल
Chhindwara School Without Children (ETV Bharat)

बच्चे नहीं तो क्या टीचर तो हैं पदस्थ

छिंदवाड़ा जिला मुख्यालय से महज 7 किलोमीटर दूर थुनिया उदना गांव में पहली से पांचवी तक सरकारी स्कूल है. पढ़ाई का स्तर गिरता गया तो धीरे-धीरे परिजनों का स्कूल से मोह भंग हो गया और धीरे-धीरे सभी ने अपने बच्चों को यहां पढ़ाना बंद कर दिया. अब हालात यह है कि पहली से पांचवी तक स्कूल में एक भी बच्चे का एडमिशन नहीं है लेकिन एक टीचर की पोस्टिंग जरूर है. ग्रामीणों का कहना है कि हर दिन स्कूल में शिक्षक आते हैं और शाम को घर चले जाते हैं.

गांव में हैं करीब 500 बच्चे

थुनिया उदना गांव में करीब 1500 की जनसंख्या है और गांव में करीब 500 बच्चे हैं. ये सभी बच्चे निजी और गांव के बाहर के दूसरे सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं. गांव के सरपंच सुनील यदुवंशी ने बताया कि "स्कूल में पढ़ाई का स्तर ठीक नहीं होने की वजह से कोई भी ग्रामीण अपने बच्चों का इस स्कूल में दाखिला नहीं करवाता है, इसी कारण अब स्कूल खाली हो गया है. धीरे-धीरे गांव वालों ने अपने बच्चों को यहां से निकालकर निजी स्कूलों में या आसपास के दूसरे सरकारी स्कूलों में शिफ्ट कर दिया है. गांव के स्कूल में सिर्फ एक शिक्षक हैं जो बीएलओ का काम करते हैं."

3 बच्चों के लिए 3 टीचर

जिले के सिर्फ थुनिया उदना गांव के स्कूल का ही ऐसा हाल नहीं है बल्कि शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर सारना गांव के स्कूल के भी हालात ऐसे ही हैं. यहां के सरकारी स्कूल में 3 बच्चे हैं और 3 बच्चों को पढ़ाने के लिए यहां 3 शिक्षकों की पोस्टिंग है. बताया जाता है कि छिंदवाड़ा शहर में रहने वाले अधिकतर शिक्षकों की पोस्टिंग ग्रामीण और आदिवासी अंचलों के स्कूलों में है लेकिन जुगाड़ के चलते अधिकतर शिक्षक शहर के नजदीक स्कूलों में अटैचमेंट करवा लेते हैं ताकि उन्हें दूर जाकर काम ना करना पड़े वहीं दूर दराज के क्षेत्रों में कई स्कूल ऐसे हैं जहां पर बच्चे तो हैं लेकिन एक भी शिक्षक नहीं है.

कई जगह के बच्चे कर चुके हैं आंदोलन

2023 के सत्र के दौरान छिंदवाड़ा जिले के अमरवाड़ा विधानसभा के ग्रामीण इलाके और जुन्नारदेव विधानसभा के आदिवासी अंचलों से कई बच्चों ने कलेक्टर कार्यालय में जाकर धरना प्रदर्शन भी किया था. बच्चों का कहना था कि उनके गांव में स्कूल भी है और बच्चे भी बहुत हैं लेकिन पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं हैं. कई स्कूल तो अतिथि शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं लेकिन एक तस्वीर यह भी है कि जहां पर बच्चे नहीं हैं वहां शिक्षक हैं और जहां बच्चे हैं तो वहां शिक्षक नहीं हैं. इस व्यवस्था से एमपी की शिक्षा व्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है.

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जिला शिक्षा अधिकारी जीएस बघेल का कहना है कि "गांव में लगातार स्कूल में बच्चों को भेजने के लिए जागरुकता और दूसरे अभियान चलाए जा रहे हैं. सारी व्यवस्थाएं भी स्कूल में दी जा रही हैं. इस संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित कर दिया गया है जो आदेश आएगा अग्रिम कार्रवाई की जाएगी. अभी एक शिक्षक की पदस्थापना है जो बीएलओ का काम कर रहे हैं."

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