पटना: बिहार के कई राजनेता लोकसभा चुनाव में दूसरे राज्यों में चुनावी मैदान में हैं. ऐसे आधा दर्जन बड़े नेता हैं जो एक बार फिर से मैदान में हैं. उसमें बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा प्रमुख नेता हैं जो बड़े अभिनेता रहे हैं. पटना साहिब से 2009 और 2014 में रिकॉर्ड मतों से जीतकर बीजेपी के सांसद रहे हैं. लेकिन बीजेपी से दूरी बनाने के बाद कांग्रेस के टिकट पर जब 2019 में पटना साहिब से चुनाव लड़ा तो हार गए.
बिहारी बाबू आसनसोल से लड़ेंगे चुनाव: शत्रुघ्न सिन्हा 28 साल तक बीजेपी में रहने के बाद कांग्रेस में गए थे, लेकिन कांग्रेस में सफलता नहीं मिली. तब खामोश बाबू टीएमसी में शामिल हो गए और आसनसोल से टीएमसी के टिकट पर लोकसभा उपचुनाव में जीत हासिल की. अब एक बार फिर से आसनसोल से टीएमसी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
चुनावी मैदान में दुर्गापुर से कीर्ति आजाद : कीर्ति आजाद बिहार से चुनाव लड़ते रहे हैं. दरभंगा से सांसद रहे हैं, लेकिन बीजेपी से दूरी के बाद कीर्ति आजाद के लिए लोकसभा में जाना अब एक बड़ी चुनौती है. ऐसे में कीर्ति आजाद ने भी पश्चिम बंगाल का रुख किया है. उन्हें टीएमसी ने दुर्गापुर से उम्मीदवार बनाया है.
क्रिकेट खिलाड़ी रहे हैं कीर्ति आजाद : कीर्ति आजाद बिहार के पूर्व सीएम भागवत के बेटे हैं और क्रिकेट खिलाड़ी भी रहे हैं. पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच में उनके लगाए गए छक्के आज भी क्रिकेट प्रेमियों के दिलों दिमाग पर है और उस मैच में भारत को जीत भी मिली थी. 1983 वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम के भी कीर्ति आजाद हिस्सा रहे थे. इंडिया के लिए साथ टेस्ट और 25 वनडे मैच खेला था लेकिन राजनीति के पिच पर बिहार में बीजेपी से निकलने के बाद फेल हो चुके हैं और अब बंगाल का रुख किया है. ऐसे कीर्ति आजाद पूर्णिया में जन्म हुआ था और दरभंगा से भाजपा से 1999 2009 और 2014 में सांसद रह चुके हैं.
भागलपुर के निशिकांत दुबे का गोड्डा में जलवा: निशिकांत दुबे बिहार के भागलपुर के रहने वाले हैं, लेकिन झारखंड के गोड्डा से लगातार चुनाव जीते रहे हैं. बीजेपी के टिकट पर इस बार भी निशिकांत दुबे गुड्डा से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. 2009 से लगातार सांसद रहे है निशिकांत दुबे तेज तर्रार नेता के तौर पर जाने जाते हैं.
अपराजिता सारंगी रह चुकी हैं आईएएस अधिकारी: बिहार के मुजफ्फरपुर में जन्मी और भागलपुर में शिक्षा लेने वाली अपराजिता सारंगी आईएएस अधिकारी रही हैं. 2019 में उड़ीसा के भुवनेश्वर से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और बीजू जनता दल के अरुण पटनायक को हराया. एक बार फिर से भुवनेश्वर से अपराजिता सारंगी उम्मीदवार हैं.
मधुबनी के महाबल दिल्ली में दिखाएंगे दम: महाबल मिश्रा दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. आप पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया है . महाबल मिश्रा मधुबनी जिले के सीरियापुर के रहने वाले हैं. सेना से रिटायरमेंट के बाद कई सामाजिक कार्य किया है. दिल्ली में पूर्वांचल समुदाय का एक बड़ा चेहरा बन गए हैं. 1997 में पहली बार पार्षद का चुनाव लड़े और जीते. 1997 से 2008 तक दिल्ली विकास प्राधिकरण के सदस्य भी रहे हैं. अब लोकसभा चुनाव के मैदान में हैं.
भोजपुरी अभिनेता मनोज तिवारी भी यहां से लड़ रहे चुनाव: मनोज तिवारी उत्तर पूर्व दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के टिकट पर इस बार भी लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. दो बार से लगातार सांसद हैं. ऐसे 2009 में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ समाजवादी पार्टी के टिकट पर गोरखपुर से चुनाव भी लड़ा था लेकिन उसमें हार गए थे. मनोज तिवारी भोजपुरी के प्रसिद्ध अभिनेता हैं और गायक भी. बिहार से बाहर भी उनकी लोकप्रियता काफी है.
'बिहार की राजनीति देश को प्रभावित करती है': वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री जयकुमार सिंह का कहना है कि बिहार ऐसी धरती है जिसकी राजनीतिक धुरंधर के रूप में पृष्ठभूमि रही है. जब बिहार करवट बदलता है तो देश की सत्ता ही नहीं व्यवस्था भी बदल जाती है. दूसरे राज्यों को तो छोड़िए दूसरे देशों में भी बिहार के लोग फिजी सूरीनाम मॉरीशस में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के रूप में देखे जा रहे हैं.
"देश की राजनीति बिहार और उत्तर प्रदेश तय करता रहा है. बिहार की राजनीति देश को प्रभावित करती है और इसलिए बिहार का कई चेहरा दूसरे राज्यों में आसानी से दिख जाता है."- जय कुमार सिंह, वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री
"लोकतंत्र की यह खूबसूरती है कि जाति धर्म संप्रदाय क्षेत्र के बंधन को तोड़कर आपकी स्वीकारता यदि राष्ट्रीय स्तर पर है तो अपनी छवि के आधार पर दूसरे राज्यों में भी अपना आधार बना सकते हैं. बिहार के कई लोगों ने ऐसा किया है तो बिहार ने भी दूसरे राज्यों के कई नेताओं को जगह दी है."- राजीव रंजन, राजनीतिक विशेषज्ञ
'दूसरे राज्यों में बिहारियों के रहने के कारण मिलता है टिकट': राजनीतिक विशेषज्ञ प्रिय रंजन भारती का भी कहना है कि अपनी लोकप्रियता के आधार पर ही बिहार के नेता दूसरे राज्यों में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों से टिकट लेकर न केवल चुनाव लड़ते रहे हैं बल्कि चुनाव जीतते भी रहे हैं. इस बार भी बिहार के कई नेता दूसरे राज्यों से चुनाव लड़ रहे हैं. यह एक तरह से बिहार प्रतिभा का लोहा भी है.
"इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि बिहार के लोग बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों में रहते हैं. इस वजह से भी कई पार्टियों को बिहारी को ही टिकट देना मजबूरी बन गयी है. इसलिए बिहार के लोग न केवल शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में बल्कि राजनीति में भी दूसरे से एक कदम आगे हैं."-प्रिय रंजन भारती,राजनीतिक विशेषज्ञ
बिहार में नहीं मिली सफलता!: बिहार के कई ऐसे नेता भी हैं जिन्हें बिहार की राजनीतिक रास नहीं आई है. संजय निरुपम उसमें से एक हैं जो चुनाव भी पटना से लड़े थे लेकिन राजनीति हमेशा महाराष्ट्र की करते रहे हैं. देवेश चंद्र ठाकुर भी मुंबई से राजनीति शुरू की थी लेकिन वहां सफल नहीं हुई तो लौटकर बिहार आ गए और इस बार सीतामढ़ी से चुनाव लड़ रहे हैं. 2009 में शेखर सुमन ने भी पटना साहिब से कांग्रेस के टिकट पर शत्रुघ्न सिन्हा के खिलाफ चुनाव लड़ा था लेकिन सफलता नहीं मिली. ऐसे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, सरोजिनी नायडू, कृपलानी जॉर्ज फर्नांडिस मधु लिमेय और शरद यादव जैसे नाम हैं, जिन्होंने बिहार की जमीन से राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान को विस्तार दिया था.
बिहार की सियासत में कम प्रभाव: जेबी कृपलानी 1953 में भागलपुर से उपचुनाव जीते थे. जॉर्ज फर्नांडिस 1967 से 2004 तक 9 बार चुनाव लड़े. इसमें से आठ बार बिहार से ही सांसद बने. जॉर्ज फर्नांडिस मैंगलोर के रहने वाले थे. लेकिन बिहार के नालंदा मुजफ्फरपुर से लगातार सांसद बनते रहे. शरद यादव मध्य प्रदेश के रहने वाले थे लेकिन बिहार के मधेपुरा से चार बार सांसद रहे. शरद यादव सात बार सांसद बने उसमें से चार बार बिहार से ही सांसद चुने गए. मधु लिमये चार बार बिहार ने ही सांसद बनाया था जबकि वह महाराष्ट्र के पुणे के निवासी थे. बिहार ने भी दूसरे राज्यों के कई नेताओं को स्वीकार किया है तो बिहार के कई नेता दूसरे राज्यों में अपना जलवा दिखा रहे हैं.
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