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मतदान करना एवरेस्ट फतह से कम नहीं! सड़क नहीं, 8 KM पैदल चलकर जंगल और पहाड़ के रास्ते पहुंचते हैं मतदाता

Gaya Villages Lack Basic Amenities : कहते हैं भारत गांवों का देश है. भारत की आत्मा गांवों में बसती है, लेकिन बिहार के कुछ गांव की हालत आजादी के कई दशकों बाद भी नहीं बदली है. गया जिले के लुटीटाड़ और खड़ाऊ गांव के मतदाता आज भी 8 किलोमीटर पैदल जंगल और पहाड़ के रास्ते मतदान स्थल तक पहुंचते हैं. पढ़ें खास रिपोर्ट

इमामगंज प्रखंड का बदहाल गांव
इमामगंज प्रखंड का बदहाल गांव
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 9, 2024, 2:19 PM IST

Updated : Mar 9, 2024, 7:01 PM IST

इमामगंज प्रखंड का बदहाल गांव

गयाः एक बार फिर देश में चुनावी बिगुल बजने वाला है, पूरे ताम-झाम के साथ हमारे नेताओं का काफिला वोटरों के गांव और घरों में पहुंचेगा. तमाम तरह के बड़े-बड़े वादे होंगे. क्षेत्र में विकास और खुशहाली की बात होगी. लेकिन ये सब हकिकत में होगा या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं, तभी तो बिहार के गया जिले का ये गांव आज भी पूछ रहा है कि हमारी किस्मत कब बदलेगी? यहां आए तमाम नेताओं के वादे जमीनदोज हो गए, जी हां हम बात कर रहे हैं गया के खड़ाऊ और लुटीटाड़ गांव की, जहां वोट देना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं.

इमामगंज प्रखंड का बदहाल गांव : गया जिले के कई ऐसे गांव है, जहां आजादी के बाद से दुर्भाग्य ने उनका साथ नहीं छोड़ा. ऐसे इलाके विकास से कोसों दूर हैं. गया का खड़ाऊ और लुटीटाड़ ऐसा इलाका है, जहां विकास की तस्वीर नहीं दिखती है. आज भी ये गांव पिछड़े हैं. खड़ाऊ और लूटीटांड़ गांव गया के नक्सल प्रभावित इमामगंज प्रखंड में आता है. यह गांव आज भी सड़क, पेयजल, स्वास्थ्य जैसी समस्याओं से जूझ रहा है. आजादी के सात दशक बाद भी काफी दूर तक लोग पैदल ही चलकर वोट करने जाते हैं.

ईटीवी भारत GFX
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ना सीरत बदली ना गांव की सूरत : इस गांव में कई किलोमीटर तक पहुंच पथ नहीं है. उबड़-खाबड़ सड़क मार्ग के जरिए 20 से 25 किलोमीटर की यात्रा करके इन गांवों में मैगरा, बरहा के रास्ते ही पहुंचा जा सकता है. इसमें भी कई किलोमीटर की यात्रा दोपहिया वाहन से ही संभव हो सकती है. ये दुर्भाग्य है कि विकास का दावा करने वाली सरकारों के काल में भी खड़ाऊ और लुटीटाड़ पहुंचने के लिए एक अच्छी सड़क मुयस्सर नहीं है, जबकि दोनों गांव इमामगंज प्रखंड के अंतर्गत आते हैं.

7-8 किलोमीटर दूर है मतदान केंद्र : यहां के लोगों के लिए वोट करना किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि जब वोट डालने को निकलते हैं, तो उनके सामने जंगल और पहाड़ी इलाका होता है. मतदान केंद्र तक पहुंचने के लिए यही एक मात्र विकल्प है. करीब 7 से 8 किलोमीटर की दूरी पर खड़ाऊ गांव से मल्हारी गांव है. जहां इनका मतदान केंद्र होता है. ऐसे में इस गांव के लोग पैदल ही वोट देने को निकल पड़ते हैं. बुजुर्गों का मतदान केंद्र पर पहुंचना संभव ही नहीं. वोट देकर लौटने में सुबह से शाम हो जाती है, खाने के लिए सत्तू और मकई का भुजा बांंधकर निकलना पड़ता है.

खटिये पर जाते हैं गांव के मरीज
खटिये पर जाते हैं गांव के मरीज

"वोट देने के लिए 7-8 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. खड़ाऊ गांव का मतदान केंद्र मल्हारी में है. मल्हारी की दूरी 7 से 8 किलोमीटर की पड़ती है. वहां जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है. हमलोग जंगल और पहाड़ के रास्ते ही पैदल चलकर वोट देने को पहुंचते हैं. सुबह से शाम हो जाती है. भूख से बचने के लिए मकई का भुजा, सत्तू बांंधकर ले जाते हैं"- अर्जुन सिंह भोक्ता, ग्रामीण

गांव में ना सड़क ना पानी की सुविधा : गांव के ही राष्ट्रपति सिंह भोक्ता और मोहम्मद इलियास बताते हैं कि "न सड़क है न पानी.. ना ही कोई अन्य कोई सुविधा हमें है. हम लोग विकास से दूर रह गए हैं. घर में अगर कोई बीमार पड़ जाए, तो उसे अस्पताल ले जाने में विलंब हो जाता है और मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देता है. पेयजल की भी सुविधा नहीं है. हमारा गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित है. आजादी मिलने के बाद भी हमारी स्थिति नहीं बदली है".

ना सीरत बदली ना गांव की सूरत
ना सीरत बदली ना गांव की सूरत

'बूढ़े-बुजुर्ग वोट करने नहीं जा पाते': अर्जुन सिंह भोक्ता बताते हैं कि रोड की सुविधा नहीं है. पहले बूढ़े बुजुर्ग पहाड़ जंगल के रास्ते 7-8 किलोमीटर चलकर वोट देने को पहुंचते थे, अब हम लोग जा रहे हैं. प्रत्याशी आते हैं, वादा करते हैं, सड़क बना देंगे, जल की व्यवस्था कर देंगे, लेकिन ऐसा नहीं होता है. हम मांग करते हैं कि हमारा मतदान केंद्र नजदीक होना चाहिए. लुटीटाड़ खड़ाऊ में यही स्थिति है. वोट देने जाते हैं, तो खाने के लिए व्यवस्था करना पड़ता है. सत्तू रोटी या मकई का भुजा लेकर जाते हैं.

ईटीवी भारत GFX
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''हम लोगों ने कई बार स्थानीय विधायक जीतन राम मांझी, जिला पदाधिकारी को लिखा है. खड़ाऊ से मल्हारी रोड पास भी हुआ है, लेकिन ठेकेदार ने गांव में ही घूमा-घूमकर दो किलोमीटर में रोड बना दिया और छोड़ दिया, जो 2 किलोमीटर गांव में रोड बना वह भी टूटने लगा है. हमलोग मांग करते हैं, कि ये परेशानी दूर की जाए. मुख्यालय पहुंचने और वोट देने जाने के लिए पैदल जंगल पहाड़ के रास्ते का सहारा नहीं लेना पड़े.'' - विजय यादव, मल्हारी मुखिया कलिता देवी के प्रतिनिधि

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कई किलोमीटर तक पहुंच पथ नहीं

ग्रामीणों की समस्या से निजात देने की मांग : बहरहाल इमामगंज के इन इलाकों के ग्रामीण वोटरों की कहानी बताती है, कि दावे काफी कुछ कर लिए जाएं, लेकिन जमीनी तौर पर वह पूरी तरह सच नहीं होते. इन गांवों के लोग चाहते हैं कि उन्हें आजादी के समय से चल रही इन समस्याओं से निजात दिलाई जाए. गांव के लोग कहते हैं हमें कोई सड़क, पानी और अस्पताल दे दे. हमारे यहां कोई साधन नहीं है. सड़क पानी की व्यवस्था नहीं है. हम वोट दें तो कैसे दें. आज तक हमारे किसी नेता ने हमसे किए वादे पूरे नहीं किए.

''खड़ाऊ के लोग कई किलोमीटर पैदल चलकर जंगल पहाड़ के रास्ते वोट करने जाते हैं. इसकी फिलहाल जानकारी नहीं है. जानकारी पता की जाएगी और इस संबंध में कदम उठाए जाएंगे.'' - गणेश कुमार, स्थानीय विधायक जीतन राम मांझी के प्रतिनिधि

इमामगंज प्रखंड का बदहाल गांव

गयाः एक बार फिर देश में चुनावी बिगुल बजने वाला है, पूरे ताम-झाम के साथ हमारे नेताओं का काफिला वोटरों के गांव और घरों में पहुंचेगा. तमाम तरह के बड़े-बड़े वादे होंगे. क्षेत्र में विकास और खुशहाली की बात होगी. लेकिन ये सब हकिकत में होगा या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं, तभी तो बिहार के गया जिले का ये गांव आज भी पूछ रहा है कि हमारी किस्मत कब बदलेगी? यहां आए तमाम नेताओं के वादे जमीनदोज हो गए, जी हां हम बात कर रहे हैं गया के खड़ाऊ और लुटीटाड़ गांव की, जहां वोट देना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं.

इमामगंज प्रखंड का बदहाल गांव : गया जिले के कई ऐसे गांव है, जहां आजादी के बाद से दुर्भाग्य ने उनका साथ नहीं छोड़ा. ऐसे इलाके विकास से कोसों दूर हैं. गया का खड़ाऊ और लुटीटाड़ ऐसा इलाका है, जहां विकास की तस्वीर नहीं दिखती है. आज भी ये गांव पिछड़े हैं. खड़ाऊ और लूटीटांड़ गांव गया के नक्सल प्रभावित इमामगंज प्रखंड में आता है. यह गांव आज भी सड़क, पेयजल, स्वास्थ्य जैसी समस्याओं से जूझ रहा है. आजादी के सात दशक बाद भी काफी दूर तक लोग पैदल ही चलकर वोट करने जाते हैं.

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ना सीरत बदली ना गांव की सूरत : इस गांव में कई किलोमीटर तक पहुंच पथ नहीं है. उबड़-खाबड़ सड़क मार्ग के जरिए 20 से 25 किलोमीटर की यात्रा करके इन गांवों में मैगरा, बरहा के रास्ते ही पहुंचा जा सकता है. इसमें भी कई किलोमीटर की यात्रा दोपहिया वाहन से ही संभव हो सकती है. ये दुर्भाग्य है कि विकास का दावा करने वाली सरकारों के काल में भी खड़ाऊ और लुटीटाड़ पहुंचने के लिए एक अच्छी सड़क मुयस्सर नहीं है, जबकि दोनों गांव इमामगंज प्रखंड के अंतर्गत आते हैं.

7-8 किलोमीटर दूर है मतदान केंद्र : यहां के लोगों के लिए वोट करना किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि जब वोट डालने को निकलते हैं, तो उनके सामने जंगल और पहाड़ी इलाका होता है. मतदान केंद्र तक पहुंचने के लिए यही एक मात्र विकल्प है. करीब 7 से 8 किलोमीटर की दूरी पर खड़ाऊ गांव से मल्हारी गांव है. जहां इनका मतदान केंद्र होता है. ऐसे में इस गांव के लोग पैदल ही वोट देने को निकल पड़ते हैं. बुजुर्गों का मतदान केंद्र पर पहुंचना संभव ही नहीं. वोट देकर लौटने में सुबह से शाम हो जाती है, खाने के लिए सत्तू और मकई का भुजा बांंधकर निकलना पड़ता है.

खटिये पर जाते हैं गांव के मरीज
खटिये पर जाते हैं गांव के मरीज

"वोट देने के लिए 7-8 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. खड़ाऊ गांव का मतदान केंद्र मल्हारी में है. मल्हारी की दूरी 7 से 8 किलोमीटर की पड़ती है. वहां जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है. हमलोग जंगल और पहाड़ के रास्ते ही पैदल चलकर वोट देने को पहुंचते हैं. सुबह से शाम हो जाती है. भूख से बचने के लिए मकई का भुजा, सत्तू बांंधकर ले जाते हैं"- अर्जुन सिंह भोक्ता, ग्रामीण

गांव में ना सड़क ना पानी की सुविधा : गांव के ही राष्ट्रपति सिंह भोक्ता और मोहम्मद इलियास बताते हैं कि "न सड़क है न पानी.. ना ही कोई अन्य कोई सुविधा हमें है. हम लोग विकास से दूर रह गए हैं. घर में अगर कोई बीमार पड़ जाए, तो उसे अस्पताल ले जाने में विलंब हो जाता है और मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देता है. पेयजल की भी सुविधा नहीं है. हमारा गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित है. आजादी मिलने के बाद भी हमारी स्थिति नहीं बदली है".

ना सीरत बदली ना गांव की सूरत
ना सीरत बदली ना गांव की सूरत

'बूढ़े-बुजुर्ग वोट करने नहीं जा पाते': अर्जुन सिंह भोक्ता बताते हैं कि रोड की सुविधा नहीं है. पहले बूढ़े बुजुर्ग पहाड़ जंगल के रास्ते 7-8 किलोमीटर चलकर वोट देने को पहुंचते थे, अब हम लोग जा रहे हैं. प्रत्याशी आते हैं, वादा करते हैं, सड़क बना देंगे, जल की व्यवस्था कर देंगे, लेकिन ऐसा नहीं होता है. हम मांग करते हैं कि हमारा मतदान केंद्र नजदीक होना चाहिए. लुटीटाड़ खड़ाऊ में यही स्थिति है. वोट देने जाते हैं, तो खाने के लिए व्यवस्था करना पड़ता है. सत्तू रोटी या मकई का भुजा लेकर जाते हैं.

ईटीवी भारत GFX
ईटीवी भारत GFX

''हम लोगों ने कई बार स्थानीय विधायक जीतन राम मांझी, जिला पदाधिकारी को लिखा है. खड़ाऊ से मल्हारी रोड पास भी हुआ है, लेकिन ठेकेदार ने गांव में ही घूमा-घूमकर दो किलोमीटर में रोड बना दिया और छोड़ दिया, जो 2 किलोमीटर गांव में रोड बना वह भी टूटने लगा है. हमलोग मांग करते हैं, कि ये परेशानी दूर की जाए. मुख्यालय पहुंचने और वोट देने जाने के लिए पैदल जंगल पहाड़ के रास्ते का सहारा नहीं लेना पड़े.'' - विजय यादव, मल्हारी मुखिया कलिता देवी के प्रतिनिधि

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कई किलोमीटर तक पहुंच पथ नहीं

ग्रामीणों की समस्या से निजात देने की मांग : बहरहाल इमामगंज के इन इलाकों के ग्रामीण वोटरों की कहानी बताती है, कि दावे काफी कुछ कर लिए जाएं, लेकिन जमीनी तौर पर वह पूरी तरह सच नहीं होते. इन गांवों के लोग चाहते हैं कि उन्हें आजादी के समय से चल रही इन समस्याओं से निजात दिलाई जाए. गांव के लोग कहते हैं हमें कोई सड़क, पानी और अस्पताल दे दे. हमारे यहां कोई साधन नहीं है. सड़क पानी की व्यवस्था नहीं है. हम वोट दें तो कैसे दें. आज तक हमारे किसी नेता ने हमसे किए वादे पूरे नहीं किए.

''खड़ाऊ के लोग कई किलोमीटर पैदल चलकर जंगल पहाड़ के रास्ते वोट करने जाते हैं. इसकी फिलहाल जानकारी नहीं है. जानकारी पता की जाएगी और इस संबंध में कदम उठाए जाएंगे.'' - गणेश कुमार, स्थानीय विधायक जीतन राम मांझी के प्रतिनिधि

Last Updated : Mar 9, 2024, 7:01 PM IST
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