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'भारत का संविधान बहुसंख्यकवादी नहीं, बल्कि...'ओवैसी ने की इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश की आलोचना - ASADUDDIN OWAISI

जस्टिस यादव प्रयागराज में वीएचपी के कानूनी प्रकोष्ठ के सम्मेलन में शामिल हुआ और UCC पर भाषण दिया. इसकी ओवैसी ने आलोचना की है.

असदुद्दीन ओवैसी
असदुद्दीन ओवैसी (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 9, 2024, 5:20 PM IST

हैदराबाद: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सोमवार को विश्व हिंदू परिषद (VHP) की बैठक में भाग लेने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव की कड़ी आलोचना की और कार्यक्रम में जज की कथित टिप्पणियों पर आपत्ति जताई.

ओवैसी ने एक्स पर पोस्ट में कहा, "वीएचपी को कई मौकों पर प्रतिबंधित किया गया था. यह आरएसएस से जुड़ा हुआ है, एक ऐसा संगठन जिसे वल्लभभाई पटेल ने 'घृणा और हिंसा की ताकत' होने के कारण बैन किया था. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने ऐसे संगठन के सम्मेलन में भाग लिया. इस स्पीच का आसानी से खंडन किया जा सकता है, लेकिन आपको यह याद दिलाना अधिक महत्वपूर्ण है कि भारत का संविधान न्यायिक स्वतंत्रता और निष्पक्षता की अपेक्षा करता है."

'भारत का संविधान बहुसंख्यकवादी नहीं'
हैदराबाद के सांसद ने कहा, "भारत का संविधान बहुसंख्यकवादी नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक है. लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की जाती है." ओवैसी ने कहा कि जस्टिस यादव की कथित टिप्पणी न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल है और यह न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाती है. उन्होंने कहा, "एक अल्पसंख्यक पार्टी वीएचपी के कार्यक्रमों में भाग लेने वाले व्यक्ति से न्याय की उम्मीद कैसे कर सकती है?"

जज ने क्या कहा?
बता दें कि रविवार को जस्टिस यादव ने प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) में वीएचपी के कानूनी प्रकोष्ठ के सम्मेलन में भाग लिया और समान नागरिक संहिता (UCC) पर भाषण दिया. उन्होंने कथित तौर पर कहा, "मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह हिंदुस्तान है, यह देश बहुसंख्यकों (यानी हिंदुओं) की इच्छा के अनुसार काम करेगा. यह कानून है. आप यह नहीं कह सकते कि आप (जस्टिस यादव) हाई कोर्ट के जज होने के बावजूद ऐसा कह रहे हैं. कानून बहुमत के अनुसार काम करता है."

समान नागरिक संहिता का उद्देश्य व्यक्तिगत कानूनों का एक सेट स्थापित करना है, जो सभी नागरिकों पर लागू होते हैं, चाहे उनका धर्म, लिंग या जाति कुछ भी हो. इसमें विवाह, तलाक, गोद लेना, विरासत और उत्तराधिकार जैसे पहलू शामिल होंगे. मुस्लिम समुदाय का नाम लिए बिना न्यायाधीश ने कहा कि कई पत्नियां रखना, तीन तलाक और हलाला जैसी प्रथाएं अस्वीकार्य हैं.

यह भी पढ़ें- शीना बोरा हत्याकांड : SC ने इंद्राणी की विदेश यात्रा की याचिका पर CBI को नोटिस दिया

हैदराबाद: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सोमवार को विश्व हिंदू परिषद (VHP) की बैठक में भाग लेने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव की कड़ी आलोचना की और कार्यक्रम में जज की कथित टिप्पणियों पर आपत्ति जताई.

ओवैसी ने एक्स पर पोस्ट में कहा, "वीएचपी को कई मौकों पर प्रतिबंधित किया गया था. यह आरएसएस से जुड़ा हुआ है, एक ऐसा संगठन जिसे वल्लभभाई पटेल ने 'घृणा और हिंसा की ताकत' होने के कारण बैन किया था. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने ऐसे संगठन के सम्मेलन में भाग लिया. इस स्पीच का आसानी से खंडन किया जा सकता है, लेकिन आपको यह याद दिलाना अधिक महत्वपूर्ण है कि भारत का संविधान न्यायिक स्वतंत्रता और निष्पक्षता की अपेक्षा करता है."

'भारत का संविधान बहुसंख्यकवादी नहीं'
हैदराबाद के सांसद ने कहा, "भारत का संविधान बहुसंख्यकवादी नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक है. लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की जाती है." ओवैसी ने कहा कि जस्टिस यादव की कथित टिप्पणी न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल है और यह न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाती है. उन्होंने कहा, "एक अल्पसंख्यक पार्टी वीएचपी के कार्यक्रमों में भाग लेने वाले व्यक्ति से न्याय की उम्मीद कैसे कर सकती है?"

जज ने क्या कहा?
बता दें कि रविवार को जस्टिस यादव ने प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) में वीएचपी के कानूनी प्रकोष्ठ के सम्मेलन में भाग लिया और समान नागरिक संहिता (UCC) पर भाषण दिया. उन्होंने कथित तौर पर कहा, "मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह हिंदुस्तान है, यह देश बहुसंख्यकों (यानी हिंदुओं) की इच्छा के अनुसार काम करेगा. यह कानून है. आप यह नहीं कह सकते कि आप (जस्टिस यादव) हाई कोर्ट के जज होने के बावजूद ऐसा कह रहे हैं. कानून बहुमत के अनुसार काम करता है."

समान नागरिक संहिता का उद्देश्य व्यक्तिगत कानूनों का एक सेट स्थापित करना है, जो सभी नागरिकों पर लागू होते हैं, चाहे उनका धर्म, लिंग या जाति कुछ भी हो. इसमें विवाह, तलाक, गोद लेना, विरासत और उत्तराधिकार जैसे पहलू शामिल होंगे. मुस्लिम समुदाय का नाम लिए बिना न्यायाधीश ने कहा कि कई पत्नियां रखना, तीन तलाक और हलाला जैसी प्रथाएं अस्वीकार्य हैं.

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