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1993 Serial Blast Case : अब्दुल करीम टुंडा बरी, अजमेर की टाडा कोर्ट ने 31 साल बाद सुनाया फैसला, 2 को उम्रकैद

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 29, 2024, 1:14 PM IST

Updated : Feb 29, 2024, 3:45 PM IST

Abdul Karim Tunda, 1993 में देश में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में अजमेर की टाडा कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने मुख्य आरोपी अब्दुल करीम टुंडा को बरी कर दिया है, जबकि दो अन्य आरोपियों को सजा सुनाई है.

1993 Bomb Blast
अब्दुल करीम टुंडा बरी
अजमेर की टाडा कोर्ट ने 31 साल बाद सुनाया फैसला, 2 को उम्रकैद

अजमेर. साल 1993 में देश में हुए सीरियल बम ब्लास्ट के मामले में टाडा कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. अजमेर की टाडा कोर्ट ने 23 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था, और अब गुरुवार को अदालत ने इस मामले में अब्दुल करीम टुंडा को बरी कर दिया है. बता दें कि इस मामले में टुंडा मुख्य आरोपी था.

अजमेर की टाडा कोर्ट ने 1993 के सीरियल बम ब्लास्ट के मामले में टुंडा को बरी करने के साथ ही दो अन्य आरोपियों इरफान और हमीदुद्दीन को सजा सुनाई है. बता दें कि 6 दिसंबर 1993 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद 1993 में कोटा, लखनऊ, हैदराबाद, सूरत, कानपुर, और मुंबई की ट्रेनों में सीरियल बम ब्लास्ट हुए थे. इस मामले में टुंडा मुख्य आरोपी था. सीबीआई ने भी टुंडा को ही इन धमाकों का मास्टर माइंड माना था और 2013 में नेपाल बॉर्डर से उसकी गिरफ्तारी हुई थी.

इसे भी पढ़ें : आतंकी अब्दुल करीम उर्फ टुंडा के मामले में 29 फरवरी को आ सकता टाडा कोर्ट का फैसला

क्या हुआ था 1993 में ? : 6 दिसंबर 1992 को बाबरी विघ्वंश को याद कर इस दिन को काला दिन के रूप में मनाया जाता रहा है. इसी कड़ी में 6 दिसंबर 1993 को मस्जिद के विघ्वंश की पहली वर्षगांठ पर भारत के 5 बड़े शहरों को बम धमाकों से दहलाया गया. लखनऊ, कानपुर, हैदराबाद, सूरत और मुंबई की ट्रेनों में ये सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे. अजमेर की टाडा कोर्ट में इसी मामले की सुनवाई हुई. कोर्ट में इस दौरान 570 गवाहों के बयान दर्ज किए गए. दोनों पक्षों की बहस के बाद अब टाडा कोर्ट ने टुंडा को बरी कर दिया है.

सीबीआई को बड़ा झटका : बाबरी विध्वंस की बरसी 6 दिसंबर 1993 को देश के पांच बड़े शहरों में विभिन्न ट्रेनों में बम ब्लास्ट करने के मामले में टाडा कोर्ट ने आरोपी अब्दुल करीम टुंडा को बरी कर दिया है. यहां सीबीआई को एक बड़ा झटका लगा है, जबकि मामले में टुंडा को मास्टर माइंड माना जा रहा था. वहीं, कोर्ट ने हमीमुद्दीन और इरफान को टाडा एक्ट, एक्सप्लोसिव एक्ट और रेलवे एक्ट समेत कई धाराओं में उम्र कैद की सजा सुनाई है.

अजमेर की टाडा कोर्ट ने 31 साल बाद सुनाया फैसला...

इसे भी पढ़ें : घर में हथियारों की खेप छुपाने के मामले में आरोपी को 7 साल की सजा, टाडा कोर्ट ने सुनाई सजा, 30 साल से चल रहा था फरार

खास बात यह रही है कि सीबीआई ने टाडा कोर्ट में अब्दुल करीम टुंडा के खिलाफ चार्जशीट पेश की थी. इसमें सीबीआई टुंडा के खिलाफ कोई भी ठोस सबूत कोर्ट में पेश नहीं कर पाई, जबकि इस प्रकरण में 80 से अधिक गवाह पेश किए गए थे, लेकिन गवाहों ने भी टुंडा को नहीं पहचाना. ऐसे में अब्दुल करीम उर्फ टुंडा के बरी होने से कहीं ना कहीं सीबीआई की तफ्तीश और अनुसंधान पर सवाल खड़े हो रहे हैं. बता दें कि अब्दुल करीम टुंडा को लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी बताकर सीबीआई ने नेपाल बॉर्डर से 2013 में गिरफ्तार किया था

एक्सप्लोसिव एक्ट मामले में है उम्र कैद : अब्दुल करीम टुंडा के खिलाफ 33 प्रकरण दर्ज थे. इनमें से 29 मामलों में टुंडा बरी हो चुका है, जबकि एक्सप्लोसिव एक्ट के मामले में सोनीपत कोर्ट से टुंडा को उम्र कैद की सजा हो चुकी है. टाडा कोर्ट से बरी होने के बाद टुंडा के खिलाफ सीबीआई सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है.

हमीनुद्दीन और इरफान को उम्र कैद : टाडा कोर्ट ने हमीमुद्दीन और इरफान को टाडा एक्ट, एक्सप्लोसिव एक्ट के तहत दोषी मानते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई है. हमीमुद्दीन और इरफान ने ट्रेनों में बम ब्लास्ट किए थे.

इसे भी पढ़ें-सबूतों के अभाव में संदिग्ध आतंकी अब्दुल करीम टुंडा बरी, जानें पूरा मामला

साक्ष्य के अभाव में फैसला : सीबीआई के वकील भवानी रोहिला ने बताया कि साक्ष्य नहीं होने के कारण, ट्रेनों में सीरियल ब्लास्ट के आरोपियों की बैठक में भी अब्दुल करीम उर्फ टुंडा को शामिल नहीं होना बताया गया. रोहिला ने बताया कि सीबीआई के अनुसंधान में बम डिवाइस बनाने को लेकर भी टुंडा पर आरोपी बनाया गया था. मसलन टुंडा ने ही ट्रेनों में ब्लास्ट के लिए बम डिवाइस को बनाया और बम बनाने का प्रशिक्षण भी दिया. अन्य आरोपियों ने अपने एकबालिया बयान में इस बात को कबूल भी किया था कि टुंडा ने उन्हें बम बनाने का प्रशिक्षण दिया था, लेकिन कोर्ट ने अन्य आरोपियों के बयान को नहीं माना. उन्होंने बताया कि बम बनाने का प्रशिक्षण टुंडा ने अन्य आरोपियों को दिया इस बात का कोई साक्ष्य नहीं था. रोहिला ने बताया कि सीबीआई से विचार विमर्श करके टाडा कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी.

इसे भी पढ़ें-1993 Serial Train Blasts: टाडा कोर्ट में नहीं पेश हुए गवाह, अरेस्ट वारंट जारी

सुप्रीम कोर्ट में कर सकते हैं अपील : राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता बृजेश पांडे ने बताया कि ट्रेनों में ब्लास्ट करने की साजिश में यह सभी आरोपी संलिप्त थे. इनमें मुख्य आरोपी डॉ जलीस अंसारी था, उसके समेत सभी सह अभियुक्तों को सजा हुई थी. इस प्रकरण में अब्दुल करीम उर्फ टुंडा, हमीमुद्दीन और इरफान को बाद में गिरफ्तार किया गया था. इनके खिलाफ अन्य जगहों पर भी प्रकरण दर्ज है. प्रोडक्शन वारंट के तहत तीनों को अजमेर जेल लाया गया था. पांडे ने बताया कि सीबीआई और राज्य सरकार की ओर से कोर्ट में पुरजोर पैरवी की गई. इस कारण हमीमुद्दीन और इरफान को उम्र कैद की सजा हुई. सीबीआई प्रकरण में अब्दुल करीम उर्फ टुंडा को मास्टरमाइंड मान रही थी, जबकि वह बरी हो गया और उसके सहयोगियों को सजा हुई इस सवाल के जवाब में राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता बृजेश पांडे ने बताया कि कोर्ट का निर्णय सर्वोपरि है. सीबीआई से बात करके इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाएगी. आतंकी हमीमुद्दीन और इरफान भी टाडा कोर्ट के फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं. बता दें कि हमीमुद्दीन ने जेल लौटते हुए यह कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में फैसले के विरुद्ध अपील की जाएगी.

अजमेर की टाडा कोर्ट ने 31 साल बाद सुनाया फैसला, 2 को उम्रकैद

अजमेर. साल 1993 में देश में हुए सीरियल बम ब्लास्ट के मामले में टाडा कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. अजमेर की टाडा कोर्ट ने 23 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था, और अब गुरुवार को अदालत ने इस मामले में अब्दुल करीम टुंडा को बरी कर दिया है. बता दें कि इस मामले में टुंडा मुख्य आरोपी था.

अजमेर की टाडा कोर्ट ने 1993 के सीरियल बम ब्लास्ट के मामले में टुंडा को बरी करने के साथ ही दो अन्य आरोपियों इरफान और हमीदुद्दीन को सजा सुनाई है. बता दें कि 6 दिसंबर 1993 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद 1993 में कोटा, लखनऊ, हैदराबाद, सूरत, कानपुर, और मुंबई की ट्रेनों में सीरियल बम ब्लास्ट हुए थे. इस मामले में टुंडा मुख्य आरोपी था. सीबीआई ने भी टुंडा को ही इन धमाकों का मास्टर माइंड माना था और 2013 में नेपाल बॉर्डर से उसकी गिरफ्तारी हुई थी.

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क्या हुआ था 1993 में ? : 6 दिसंबर 1992 को बाबरी विघ्वंश को याद कर इस दिन को काला दिन के रूप में मनाया जाता रहा है. इसी कड़ी में 6 दिसंबर 1993 को मस्जिद के विघ्वंश की पहली वर्षगांठ पर भारत के 5 बड़े शहरों को बम धमाकों से दहलाया गया. लखनऊ, कानपुर, हैदराबाद, सूरत और मुंबई की ट्रेनों में ये सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे. अजमेर की टाडा कोर्ट में इसी मामले की सुनवाई हुई. कोर्ट में इस दौरान 570 गवाहों के बयान दर्ज किए गए. दोनों पक्षों की बहस के बाद अब टाडा कोर्ट ने टुंडा को बरी कर दिया है.

सीबीआई को बड़ा झटका : बाबरी विध्वंस की बरसी 6 दिसंबर 1993 को देश के पांच बड़े शहरों में विभिन्न ट्रेनों में बम ब्लास्ट करने के मामले में टाडा कोर्ट ने आरोपी अब्दुल करीम टुंडा को बरी कर दिया है. यहां सीबीआई को एक बड़ा झटका लगा है, जबकि मामले में टुंडा को मास्टर माइंड माना जा रहा था. वहीं, कोर्ट ने हमीमुद्दीन और इरफान को टाडा एक्ट, एक्सप्लोसिव एक्ट और रेलवे एक्ट समेत कई धाराओं में उम्र कैद की सजा सुनाई है.

अजमेर की टाडा कोर्ट ने 31 साल बाद सुनाया फैसला...

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खास बात यह रही है कि सीबीआई ने टाडा कोर्ट में अब्दुल करीम टुंडा के खिलाफ चार्जशीट पेश की थी. इसमें सीबीआई टुंडा के खिलाफ कोई भी ठोस सबूत कोर्ट में पेश नहीं कर पाई, जबकि इस प्रकरण में 80 से अधिक गवाह पेश किए गए थे, लेकिन गवाहों ने भी टुंडा को नहीं पहचाना. ऐसे में अब्दुल करीम उर्फ टुंडा के बरी होने से कहीं ना कहीं सीबीआई की तफ्तीश और अनुसंधान पर सवाल खड़े हो रहे हैं. बता दें कि अब्दुल करीम टुंडा को लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी बताकर सीबीआई ने नेपाल बॉर्डर से 2013 में गिरफ्तार किया था

एक्सप्लोसिव एक्ट मामले में है उम्र कैद : अब्दुल करीम टुंडा के खिलाफ 33 प्रकरण दर्ज थे. इनमें से 29 मामलों में टुंडा बरी हो चुका है, जबकि एक्सप्लोसिव एक्ट के मामले में सोनीपत कोर्ट से टुंडा को उम्र कैद की सजा हो चुकी है. टाडा कोर्ट से बरी होने के बाद टुंडा के खिलाफ सीबीआई सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है.

हमीनुद्दीन और इरफान को उम्र कैद : टाडा कोर्ट ने हमीमुद्दीन और इरफान को टाडा एक्ट, एक्सप्लोसिव एक्ट के तहत दोषी मानते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई है. हमीमुद्दीन और इरफान ने ट्रेनों में बम ब्लास्ट किए थे.

इसे भी पढ़ें-सबूतों के अभाव में संदिग्ध आतंकी अब्दुल करीम टुंडा बरी, जानें पूरा मामला

साक्ष्य के अभाव में फैसला : सीबीआई के वकील भवानी रोहिला ने बताया कि साक्ष्य नहीं होने के कारण, ट्रेनों में सीरियल ब्लास्ट के आरोपियों की बैठक में भी अब्दुल करीम उर्फ टुंडा को शामिल नहीं होना बताया गया. रोहिला ने बताया कि सीबीआई के अनुसंधान में बम डिवाइस बनाने को लेकर भी टुंडा पर आरोपी बनाया गया था. मसलन टुंडा ने ही ट्रेनों में ब्लास्ट के लिए बम डिवाइस को बनाया और बम बनाने का प्रशिक्षण भी दिया. अन्य आरोपियों ने अपने एकबालिया बयान में इस बात को कबूल भी किया था कि टुंडा ने उन्हें बम बनाने का प्रशिक्षण दिया था, लेकिन कोर्ट ने अन्य आरोपियों के बयान को नहीं माना. उन्होंने बताया कि बम बनाने का प्रशिक्षण टुंडा ने अन्य आरोपियों को दिया इस बात का कोई साक्ष्य नहीं था. रोहिला ने बताया कि सीबीआई से विचार विमर्श करके टाडा कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी.

इसे भी पढ़ें-1993 Serial Train Blasts: टाडा कोर्ट में नहीं पेश हुए गवाह, अरेस्ट वारंट जारी

सुप्रीम कोर्ट में कर सकते हैं अपील : राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता बृजेश पांडे ने बताया कि ट्रेनों में ब्लास्ट करने की साजिश में यह सभी आरोपी संलिप्त थे. इनमें मुख्य आरोपी डॉ जलीस अंसारी था, उसके समेत सभी सह अभियुक्तों को सजा हुई थी. इस प्रकरण में अब्दुल करीम उर्फ टुंडा, हमीमुद्दीन और इरफान को बाद में गिरफ्तार किया गया था. इनके खिलाफ अन्य जगहों पर भी प्रकरण दर्ज है. प्रोडक्शन वारंट के तहत तीनों को अजमेर जेल लाया गया था. पांडे ने बताया कि सीबीआई और राज्य सरकार की ओर से कोर्ट में पुरजोर पैरवी की गई. इस कारण हमीमुद्दीन और इरफान को उम्र कैद की सजा हुई. सीबीआई प्रकरण में अब्दुल करीम उर्फ टुंडा को मास्टरमाइंड मान रही थी, जबकि वह बरी हो गया और उसके सहयोगियों को सजा हुई इस सवाल के जवाब में राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता बृजेश पांडे ने बताया कि कोर्ट का निर्णय सर्वोपरि है. सीबीआई से बात करके इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाएगी. आतंकी हमीमुद्दीन और इरफान भी टाडा कोर्ट के फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं. बता दें कि हमीमुद्दीन ने जेल लौटते हुए यह कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में फैसले के विरुद्ध अपील की जाएगी.

Last Updated : Feb 29, 2024, 3:45 PM IST
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