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शूरवीर महाराणा प्रताप की गौरवमयी गाथा सुनाता है कुंभलगढ़ किला, 36 किमी दीवार है आकर्षण का केंद्र

Rajasthan Kumbhalgarh Fort- विश्व विरासत सप्ताह में जानिए कुंभलगढ़ के किले के बारे में, जहां हर साल लाखों की संख्या में देसी-विदेशी सैलानी आते हैं.

कुंभलगढ़ का किला
कुंभलगढ़ का किला (ETV Bharat Rajsamand)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 21, 2024, 10:45 AM IST

Updated : Nov 21, 2024, 11:47 AM IST

जानिए कुंभलगढ़ के किले के बारे में (ETV Bharat Rajsamand)

राजसमंद/उदयपुर :राजस्थान को गढ़ और किलों का प्रदेश कहा जाता है. इनमें से कुछ ऐसे राजशाही निर्माण हैं, जो अपनी विशेषताओं के कारण प्रसिद्ध हैं. ऐसा ही एक किला है मेवाड़ का कुंभलगढ़, जिसे वर्ष 2013 में यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में शामिल किया गया था. यह किला शूरवीर महाराणा प्रताप की जन्मस्थली है और सिसोदिया राजवंश की बुलंदियों का जीता जागता उदाहरण भी है.

अनोखा है कुंभलगढ़ दुर्ग :विश्व विरासत में शामिल कुंभलगढ़ दुर्ग आज देश और दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र है. इसकी बनावट भी अनोखी है. यह दुनिया का ऐसा अनोखा दुर्ग है, जिसके अंदर 360 मंदिरें हैं. इनमें 300 केवल जैन मंदिर ही हैं. किले के चारों तरफ 36 किलोमीटर लंबी दीवार है. 15वीं शताब्दी में इसका निर्माण राणा कुंभा ने करवाया था. एशिया में ग्रेट वॉल ऑफ चाइना के बाद दूसरी सर्वाधिक लंबी दीवार कुंभलगढ़ दुर्ग की ही है. राजस्थान में चित्तौड़गढ़ के बाद सबसे बड़ा किला यही है, जो अरावली पर्वतमाला पर समुद्र तल से 1,100 मीटर (3,600 फीट) की पहाड़ी की चोटी पर है.

जानिए कुंभलगढ़ के किले के बारे में (ETV Bharat GFX)
राजस्थान में चित्तौड़गढ़ के बाद सबसे बड़ा किला कुंभलगढ़ है (ETV Bharat Rajsamand)

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कुंभलगढ़ किला दुनिया भर में प्रसिद्ध :कुंभलगढ़ हेरिटेज सोसायटी के सचिव कुबेर सिंह सोलंकी ने बताया कि ऐतिहासिक दुर्ग की चार दीवारी और 7 विशाल द्वारों के परकोटे में मुख्य महल के साथ बादल महल, शिव मंदिर, वेदी मंदिर, नीलकंठ महादेव और मम्मदेव सहित 60 हिंदू मंदिर हैं, जबकि 300 जैन मंदिर बने हुए हैं. मुख्य किले तक पहुंचने के लिए आपको एक खड़ी रैंप जैसे पथ (1 किमी से थोड़ा अधिक) पर चढ़ना पड़ता है. किले के अंदर बने कमरों के साथ अलग-अलग खंड हैं और उन्हें अलग-अलग नाम दिए गए हैं.

अरावली पर्वतमाला पर समुद्र तल से 1,100 मीटर की पहाड़ी की चोटी पर स्थित दुर्ग (ETV Bharat Rajsamand)

यह है ऐतिहासिक दीवार की खासियत :कुंभलगढ़ दुर्ग की दीवार 36 किलोमीटर लंबी है. दुर्ग की दीवार इतनी चौड़ी है कि इसपर क्रमबद्ध एक साथ 8 घोड़े खड़े रह सकते हैं. सुरक्षा के लिहाज 36 किमी दीवार में ही 4 आपातकालीन द्वार भी बनाए गए थे, जिससे आसानी से राजपरिवार को निकाला जा सके. हालांकि, यह किला हमेशा अभेद्य रहा, जिससे ऐसी कोई नौबत ही नहीं आई. कुंभलगढ़ दुर्ग को अजेय दुर्ग भी कहा गया है.

वर्ष 2013 में यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में शामिल किया गया (ETV Bharat Rajsamand)

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1458 में बनकर तैयार हुआ था कुंभलगढ़ दुर्ग :महाराणा कुंभा की ओर से इस दुर्ग का निर्माण कार्य 1443 में शुरू किया गया था, जो 1458 में पूरा हुआ. इसे बनाने में करीब 16 वर्षों का समय लगा था. पौराणिक कथाओं के अनुसार किले के निर्माण में रात को काम करने वाले श्रमिकों को रोशनी मुहैया कराने के लिए के राणा कुंभा ने बड़े पैमाने पर दीपक जलवाए, जिनमें रोजाना 50 किलो घी और 100 किलो कपास लग जाता था. राणा कुंभा ने अपने शासनकाल में 84 किलों का निर्माण करवाया था. किले में दक्षिण से प्रवेश करने पर आरेट पोल, हल्ला पोल और हनुमान पोल पड़ते हैं. यहां पोल का अर्थ द्वार से है. किले के ऊपरी भाग में बने महलों तक जाने के लिए आपको भैरव पोल, निम्बो पोल और पागड़ा पोल से होकर जाना होता है. संकट के समय इस किले को मेवाड़ के तत्कालीन शासकों के लिए शरणगाह के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता था. यह किला मजबूत नींव और निर्माण का परिणाम था कि सीधे हमले से तो ये किला सदैव ही अभेद्य रहा.

किले के चारों तरफ 36 किलोमीटर लंबी दीवार (ETV Bharat Rajsamand)

महाराणा उदयसिंह की भी शरणस्थली रहा :महाराणा प्रताप के पिता महाराणा उदयसिंह की भी कुंभलगढ़ दुर्ग शरण स्थली रही है. चित्तौड़गढ़ में उदयसिंह का जन्म हुआ तो बनवीर ने मेवाड़ के वंश को खत्म करने का षड़यंत्र रचा. वह खुद उदयसिंह की हत्या करने के लिए उसके कक्ष की तरफ आने लगा, तब पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन को उदयसिंह के कपड़े पहनाकर उसकी जगह सुला दिया और उदयसिंह को अपने बेटे चंदन के कपड़े पहना दिए. बनवीर ने चंदन को उदयसिंह समझकर उसकी हत्या कर दी. पन्नाधाय उदयसिंह को बचाकर कुंभलगढ़ ले आईं और कई वर्षों तक कुंभलगढ़ के केलवाड़ा में रहीं और बाद में कुंभलगढ़ दुर्ग ही शरणस्थली बना. बाद में उदयसिंह ने उदयपुर बसाया.

अरावली की वादियों में स्थित कुंभलगढ़ किला (ETV Bharat Rajsamand)

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महाराणा प्रताप का जन्म भी इसी किले :मेवाड़ के पराक्रर्मी महाराणा प्रताप का जन्म भी कुंभलगढ़ दुर्ग में ही हुआ था. प्रतिवर्ष महाराणा प्रताप जन्म जयंती के दिन इस कक्ष में विशेष पुष्पांजलि कार्यक्रम होता है. सुरक्षा की दृष्टि से जन्म कक्ष के ताला लगा रहता है. यह दुर्ग अभी पुरातत्व विभाग के अधीन है. देसी-विदेशी पर्यटक पुरातत्व विभाग की खिड़की से टिकट लेकर दुर्ग भ्रमण कर सकते हैं.

शूरवीर महाराणा प्रताप की जन्मस्थली है ये किला (ETV Bharat Rajsamand)

अनोखा है लाइट एंड साउंड सिस्टम :पर्यटन एवं पुरातत्व विभाग की ओर से रात को लाइट एंड साउंड सिस्टम लगा रखा है. इससे हर रोज शाम को दिन ढलने के बाद आकर्षक लाइटिंग की जाती है और साउंड सिस्टम के माध्यम से कुंभलगढ़ दुर्ग के इतिहास को बताया जाता है. रात के समय इसे देखने के लिए देश व विदेश से बढ़ी तादाद में पर्यटक यहां आते हैं. हर शाम एक लाइट एंड साउंड शो होता है, जो शाम 6.45 बजे शुरू होता है. 45 मिनट का शो एक आकर्षक अनुभव है, जो किले के इतिहास को जीवंत कर देता है. शो की कीमत बड़ों के लिए 100 रुपए है और बच्चों के लिए 50 रुपए है. यह शाम 6.45 बजे शुरू होता है और अंत तक आते-आते यहां काफी अंधेरा हो जाता है. किले को रोशन करने के लिए शाम के समय विशाल रोशनी जलाई जाती है.

हर साल लाखों की संख्या में देसी-विदेशी सैलानी आते हैं यहां (ETV Bharat Rajsamand)
Last Updated : Nov 21, 2024, 11:47 AM IST

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