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तेजी से बढ़ रहे लंग्स कैंसर के मरीज, विशेषज्ञों ने दिए ये सुझाव - health Workshop in Lucknow KGMU - HEALTH WORKSHOP IN LUCKNOW KGMU

विश्न में हर साल करीब 20 लाख फेफड़ों के कैंसर के नए मरीज की पहचान हो रही है. इनमें 18 लाख लोग हर साल मर जाते हैं. भारत में भी लंग्स कैंसर के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 2, 2024, 4:13 PM IST

लखनऊ :फेफड़ों के कैंसर के मामलों में तेजी से इजाफा हो रहा है. इसकी बड़ी वजह प्रदूषण और खान-पान है. अफसोस की बात यह है कि बीमारी की पहचान देरी से हो रही है. नतीजतन गंभीर अवस्था में मरीज अस्पताल आ रहे हैं. नतीजतन इलाज कठिन हो रहा है. यह चिंता किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ने जाहिर की.

रिवर बैंक काॅलोनी स्थित इंडियन मेडिकल एसोसिएशन सभागार में बुधवार को गुई कार्यशाला में फेफड़ों के कैंसर की पहचान और इलाज पर मंथन हुआ. इंडियन सोसायटी फॉर स्टडी ऑफ लंग कैंसर (आईएसएसएलसी), केजीएमयू, लखनऊ चेस्ट क्लब और इंडियन चेस्ट सोसायटी यूपी चैप्टर के सहयोग से कार्यशाला हुई.

डॉ. सूर्यकांत ने कहा कि फेफड़ों के कैंसर और टीबी के लक्षण अक्सर मिलते-जुलते होते हैं. धूम्रपान के कारण सांस की नलियों में होने वाले परेशानी को पल्मोनरी टीबी का लक्षण समझकर गलत इलाज शुरू कर दिया जाता है. इन्हीं समान लक्षणों के कारण फेफड़ों के कैंसर की मरीज की पहचान में देरी होती है, जो मौत की बड़ी वजह बनता है.

डॉ. सूर्यकान्त ने कहा कि भारत में फेफड़ों का कैंसर का लगभग सभी तरह के कैंसरों का छह प्रतिशत हिस्सेदारी है. कैंसर संबंधित मौतों का आंकड़ा आठ प्रतिशत है. विश्न में हर साल करीब 20 लाख फेफड़ों के कैंसर के नए मरीज की पहचान हो रही है. इनमें 18 लाख हर साल मर जाते हैं.

आईएसएसएलसी के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. डी बेहरा ने फेफड़ों के कैंसर में परीक्षण, ट्यूमर प्रकार में विभिन्न म्यूटेशन और विभिन्न प्रकार की कीमोथेरेपी के बारे में जानकारी साझा की. कल्याण कैंसर संस्थान की डॉ. दीप्ति मिश्रा ने मोलेक्युलर बायोमार्कर्स में अपडेट्स और फेफड़ों के कैंसर के निदान में इम्यूनोहिस्टोकेमिस्ट्री की भूमिका के बारे में बताया.

ट्रॉमा सेंटर में वेंटिलेटर फुल :केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में वेंटिलेटर फुल हो गए हैं. हालात यह है कि 24 घंटे बाद भी मरीजों को वेंटिलेटर वाले बेड नहीं मिल पा रहे हैं. इसकी वजह से गंभीर मरीजों को सांसे दे पाने में अड़चन आ रही है. ट्रॉमा सेंटर में करीब 400 बेड हैं.

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