लखनऊ : राजधानी के गोसाईगंज स्थित कासिमपुर गांव के प्रगतिशील किसान रमेश कुमार वर्मा ने परंपरागत खेती छोड़कर आधुनिक और मुनाफे वाली खेती की ओर कदम बढ़ाया. पिछले 30 वर्षों से सब्जियों की खेती कर रहे रमेश ने अपनी मेहनत और नई तकनीकों के इस्तेमाल से खेती को एक फायदे का व्यवसाय बना दिया है. आज वह ढाई एकड़ जमीन से सालाना 12 से 13 लाख रुपये कमा रहे हैं और कई किसानों के लिए प्रेरणा बन गए हैं.
विदेशी सब्जियों से शुरू की नई राह : 1993 में खेती शुरू करने वाले रमेश शुरुआती दौर में देसी सब्जियों की खेती पर निर्भर थे, लेकिन मंडी में उचित दाम न मिलने से उन्होंने विदेशी सब्जियों की ओर रुख किया. उन्होंने बताया कि जब मंडी में देसी सब्जियां लेकर जाता था तो वहां नई सब्जियां देखने को मिलती थीं. उन सब्जियों के नाम लिखते थे और फिर उसकी बीज बाजार में ढूंढते थे. उस जमाने में इंटरनेट भी नहीं था. हमने कृषि विभाग का सहयोग लिया था. अब हम ज्यादातर सब्जियों के बीज दिल्ली से मंगवाते हैं और स्थानीय विभाग के लोग भी बीज दिला देते हैं. उन्होंने बताया कि 2006 में उन्होंने विदेशी सब्जियां उगाना शुरू किया, हालांकि शुरुआती दिनों में इन सब्जियों की देखभाल और पानी की सही जानकारी नहीं थी. कृषि विभाग की मदद से उन्होंने इसकी जानकारी हासिल की और नई तकनीकों को अपनाया.
रमेश बताते हैं, कि वह ज्यादातर विदेशी सलाद, ब्रोकली, रेड कैबेज, आइसबर्ग, पार्सले, चेरी टमाटर, थाइम, ब्रोसल स्प्राउट, बेसिन और अन्य 8-10 प्रकार की सब्जियां उगाते हैं. इन सब्जियों की सप्लाई लखनऊ के चार और पांच सितारा होटलों में होती है, जहां से मुझे रोजाना लगभग 5,000 रुपये की आमदनी होती है.
विदेशी सब्जी | दाम |
थाइम | 600 रुपये प्रति किलो |
पार्सले | 100 रुपये प्रति किलो |
ब्रोसल स्प्राउट | 500 रुपये प्रति किलो |
चाइनीस कैबेज | 50 रुपये प्रति किलो |
(मौसम के आधार पर सब्जियों के दाम गिरते और बढ़ते हैं) |
पॉलीहाउस और आधुनिक खेती की तकनीक : उन्होंने बताया कि 10 साल पहले अपने खेत में पॉलीहाउस बनवाया था. 9 लाख रुपये की लागत से बने इस पॉलीहाउस पर सरकार ने 4.5 लाख रुपये की सब्सिडी दी. पॉलीहाउस की मदद से वह हर मौसम में 6 से 8 प्रकार की सब्जियां उगाते हैं. सिंचाई में पानी बचत के लिए ड्रिप का प्रयोग करते हैं, इससे पानी की भी बचत होती है और फसल भी सही लगती है.
उन्होंने बताया कि वह नए-नए कृषि उपकरण का भी प्रयोग करते हैं. कुछ कृषि उपकरण किराए पर लाते हैं और कुछ खरीदे हैं. इस वक्त अपनी फसल को छुट्टे पशुओं से बचाना बहुत बड़ा चैलेंज है, इसके उन्होंने झटका मशीन भी खरीदी है, जिसकी लागत 7000 है. इससे छुट्टे पशु अगर खेत में आते हैं तो उनको तार लगते हैं, झटका लगता है और वह खेत में नहीं दाखिल होते हैं. उन्होंने बताया कि एक खेत में एक ही प्रकार की फसल उगाने की बजाय वह 6-7 प्रकार की सब्जियां उगाते हैं. इससे बाजार में उनकी फसल की कीमत बेहतर मिलती है. साथ ही, फसल तैयार होने के बाद यह आसानी से बिक जाती है.
प्रशिक्षण देकर किसानों को बना रहे आत्मनिर्भर : रमेश न सिर्फ अपनी खेती से मुनाफा कमा रहे हैं, बल्कि अन्य किसानों को भी उन्नत खेती के गुर सिखा रहे हैं. अब तक हजारों किसान उनसे प्रशिक्षण ले चुके हैं. वह बताते हैं कि किसान अपने खेत को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर अलग-अलग सब्जियां उगाएं. इससे उन्हें बेहतर आमदनी मिलेगी और नुकसान से बचा जा सकेगा.
किराए पर जमीन लेकर बढ़ाई खेती : शुरुआती दिनों में रमेश ने 1 बीघा जमीन पर खेती शुरू की थी, लेकिन अब उन्होंने 3 बीघा जमीन किराए पर लेकर अपनी खेती का दायरा बढ़ा दिया है. एक बीघा जमीन का सालाना किराया 45,000 रुपये है, लेकिन इससे होने वाली आमदनी इस लागत को बहुत पीछे छोड़ देती है.
रमेश कुमार वर्मा का मानना है कि पारंपरिक खेती से हटकर नई तकनीकों और फसलों को अपनाने से किसान बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं. उन्होंने कहा कि मेहनत, सही जानकारी और दूरदृष्टि से खेती भी एक लाभदायक व्यवसाय बन सकती है.
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