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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : 4 hours ago

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इंटरनेशनल सेफ अबॉर्शन डे पर रांची के वीमेंस कॉलेज में कार्यक्रम, सुरक्षित गर्भपात का हक देने की उठी मांग - International Safe Abortion Day

Workshop in Ranchi womens College. अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षित गर्भपात दिवस पर रांची के वीमेंस कॉलेज में कार्यशाला का आयोजन किया गया. जिसमें सुरक्षित गर्भपात को लेकर चुप्पी तोड़ने की जरूरत पर वक्ताओं ने जोर दिया.

Workshop On Safe Abortion
रांची वीमेंस कॉलेज में आयोजित कार्यशाला में मौजूद शिक्षक और छात्राएं. (फोटो-ईटीवी भारत)

रांची:अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षित गर्भ समापन दिवस पर शनिवार को रांची वीमेंस कॉलेज सभागार में राष्ट्रीय सेवा योजना “स्वच्छता ही सेवा, स्वभाव स्वच्छता संस्कार स्वच्छता अभियान” के तहत अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षित गर्भपात दिवस पर कार्यशाला का आयोजन किया गया. महिलाओं को सामाजिक और कानूनी सहायता देने वाली संस्था "हाशिया" के सहयोग से आयोजित इस कार्यशाला में रांची महिला कॉलेज की प्राचार्या डॉ सुप्रिया , रांची महिला कॉलेज की प्रोग्राम ऑफिसर डॉ कुमारी उर्वशी, डॉ कुमारी भारती सिंह, डॉ हर्षिता सिन्हा सहित बड़ी संख्या में समाज की अलग-अलग वर्ग की महिलाओं ने भाग लिया.

सुरक्षित गर्भपात की जरूरत क्यों

हाशिया नामक संस्था की संस्थापक अपूर्वा विवेक ने बताया कि 28 सितंबर को प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले इंटरनेशनल सेफ अबॉर्शन डे हमें इस बात का चिंतन करने का मौका देता है कि सुरक्षित गर्भपात की जरूरत क्यों हैं और हमें अबॉर्शन को लेकर क्यों बात करनी चाहिए. इस विषय पर सेमिनार और अन्य एक्टिविटी की जरूरत क्यों है.

अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षित गर्भपात दिवस पर रांची के वीमेंस कॉलेज में कार्यशाला (फोटो-ईटीवी भारत)

सुरक्षित गर्भ-समापन महिलाओं का अधिकार

उन्होंने कहा कि स्त्रियों को अन्य अधिकार तो मिल गए, लेकिन भारत में गर्भपात की वैधता मिले 55 वर्ष हो जाने के बावजूद स्त्रियों को यह अधिकार क्यों नहीं मिला कि वह गर्भपात पर फैसला ले सकें. अपूर्वा विवेक ने कहा कि अगर कोई सर्जरी करानी हो तो उसमें महिलाओं की इच्छा या कंसेंट लेकर डॉक्टर्स सर्जरी कर देंगे, लेकिन गर्भपात की स्थिति में डॉक्टर का कंसेंट ही जरूरी हो जाता है. यह महिलाओं को उनके सुरक्षित गर्भपात कराने के अधिकार से वंचित करने जैसा है. जबकि सुरक्षित गर्भ-समापन महिलाओं के स्वास्थ्य और अधिकारों का एक महत्वपूर्ण पहलू है.

गर्भपात को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता

रांची महिला कॉलेज के मैत्रेयी सभागार में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षित गर्भपात दिवस पर वक्ताओं ने कहा कि सुरक्षित गर्भपात को महिलाओं का अधिकार होना चाहिए था, लेकिन दुर्भाग्य से और देश में इसके प्रति जागरुकता की कमी की वजह से इस विषय को लेकर कलंक की धारणा बनी हुई है जो महिलाओं को अपने शरीर के संबंध में जानकारीपूर्ण विकल्प चुनने की क्षमता को प्रभावित कर रही है .

छात्राओं के लिए जानकारी अहम

वक्ताओं ने कहा कि छात्राओं को सुरक्षित और कानूनी गर्भ-समापन सेवाओं तक पहुंच सहित प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों पर व्यापक जानकारी प्रदान करने की जरूरत है. यह न केवल उन्हें सही निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाएगा, बल्कि उन्हें अपने और समाज में दूसरों के लिए संघर्ष करने के लिए भी सक्षम बनाएगा.

सेमिनार में कानूनी ढांचे, चिकित्सा प्रक्रियाओं और सुरक्षित सेवाओं तक पहुंच के महत्व सहित सुरक्षित गर्भ-समापन पर साक्ष्य-आधारित जानकारी दी गई. गर्भ-समापन से जुड़े आम मिथकों और गलत धारणाओं को, गर्भ-समापन के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पहलुओं और इसकी आवश्यकता पर भी चर्चा हुई.

विषय पर ओपन सेशन का आयोजन

सेमिनार के दौरान छात्राओं, शिक्षिकाओं और कर्मचारियों के लिए प्रश्न पूछने और विषय पर एक खुला सेशन भी हुआ. जिसमें छात्राओं और कॉलेज की महिला स्टाफ ने अपने मन में सुरक्षित गर्भपात को लेकर उठ रहे तमाम सवाल पूछे और उसका समाधान जाना. सेमिनार के दौरान रांची के बुढ़मू सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की प्रभारी, महिला चिकित्सक डॉ इशानी सिंह ने वीडियो क्लिपिंग के माध्यम से और मांडर-रातू की स्वास्थ्य कार्यकर्ता सहिया दीदी ने ग्रामीण स्तर और कार्य के दौरान प्राप्त हुए अनुभव को साझा किया.

28 सितम्बरका दिन महत्वपूर्ण

28 सितम्बर को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षित गर्भ-समापन (अबॉर्शन) दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योंकि भारत में गर्भ-समापन को कानूनी वैधता मिले करीब 55 साल बाद भी, इस विषय पर खुलकर बात नहीं होती और न ही इस पर काम होता है. हाशिया की संस्थापक ने बताया कि इस चुप्पी के माहौल से जो जटिलताएं उभरती हैं. जाहिर है, उन्हें भी दरकिनार कर दिया जाता है. गर्भपात को लेकर तरह-तरह की भ्रान्तियां पनपती हैं, जिन पर कोई सवाल नहीं पूछे जाते. ऐसे में आज का दिन हमें मौका देता है कि हम समझें कि ये क्यों जरूरी है कि औरतों के पास अपने शरीर और मन से संबंधित निर्णय लेने का हक हो.

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