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महिलाओं को नहीं बताए जाते गर्भपात को लेकर उनके अधिकार, कोर्ट को देना पड़ता है दखल-हाईकोर्ट - RAJASTHAN HIGH COURT

हाईकोर्ट का कहना है कि महिलाओं को उनके गर्भपात को लेकर उनके अधिकारों के बारे में नहीं बताया जाता. कोर्ट को दखल देना पड़ता है.

Rajasthan High Court
राजस्थान हाईकोर्ट (ETV Bharat Jaipur)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 4, 2024, 9:32 PM IST

जयपुर:राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि एमटीपी एक्ट 24 सप्ताह की अवधि में गर्भपात की अनुमति देता है. इस अवधि में गर्भपात के लिए कदम नहीं उठाए जाते और फिर बाद में गर्भपात की अनुमति के लिए कोर्ट में याचिका दायर की जाती है. कोर्ट में देरी से आने से कई जटिलाएं पैदा हो जाती हैं, जिससे अधिकांश मामलों में महिला के जीवन पर जोखिम आ जाता है.

अदालत ने कहा कि महिलाओं और पीड़िताओं को गर्भपात को लेकर उनके अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं दी जाती, जिसके चलते अदालत को दखल देना पड़ता है. गर्भपात की अनुमति मांगने में देरी के चलते यौन उत्पीड़न के कारण गर्भवती हुई पीड़िताओं को अवांछित गर्भावस्था को जारी रखना पड़ता है और कई बार संतान को जन्म देना पड़ता है. ऐसे में उचित कानून बनने तक अदालत दिशा-निर्देश देना जरूरी समझती है. इसके साथ ही अदालत ने मामले में स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका के तौर पर दर्ज करने को कहा है.

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वहीं अदालत ने यौन उत्पीड़न की शिकार पीड़िता को गर्भपात की अनुमति नहीं देने और उसके कल्याण के लिए पूर्व में एकलपीठ की ओर से दिए आदेश में दखल से इनकार किया है. अदालत ने कहा कि पीड़िता करीब 32 सप्ताह की गर्भवती है और अब गर्भपात उसके जीवन पर बहुत बड़ा जोखिम उठाने के बराबर होगा, जिसकी अदालत अनुमति नहीं दे सकता है. सीजे एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस उमाशंकर व्यास की खंडपीठ ने यह आदेश पीड़िता की ओर से गर्भपात की अनुमति के लिए दायर अपील पर सुनवाई करते हुए दिए.

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अपील में अधिवक्ता नयना सराफ ने अदालत को बताया कि पीड़िता मानव तस्करी में फंसकर यौन उत्पीड़न का शिकार हुई और गर्भवती हो गई. उसके बरामद होने के बाद पीड़िता के पिता ने कोटा के उद्योग नगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. वहीं बाद में पीड़िता के गर्भपात के लिए याचिका दायर कर अनुमति मांगी गई. एकलपीठ ने मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर गर्भपात कराने से इनकार कर दिया. इस पर खंडपीठ में अपील दायर अनुमति मांगी. वहीं राज्य सरकार की ओर से एएजी विज्ञान शाह ने कहा कि एकलपीठ में गर्भपात की अनुमति नहीं मिलने के बाद भी अपील एक माह बाद दायर की गई और अब गर्भ अंतिम स्तर तक पहुंच चुका है. ऐसे में पीड़िता की जान के जोखिम को देखते हुए गर्भपात की अनुमति नहीं देनी चाहिए. दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने पीड़िता को गर्भपात की अनुमति से इनकार करते हुए मामले में स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लिया है.

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