जयपुर : दीपावली के पंचपर्वा में शामिल नरक चतुर्दशी को रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है. कुछ लोग इसे छोटी दीपावली भी कहते हैं. 30 अक्टूबर बुधवार को मनाई जा रही छोटी दीपावली के मौके पर आपको बताते हैं कि आखिर क्यों इस एक दिन को अलग-अलग नाम से जाना जाता है.
ज्योतिष आचार्य विनोद शास्त्री ने बताया कि इससे जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, लेकिन मूल रूप से घर की बहन, बेटियां, बहुएं, माताएं वही लक्ष्मी का रूप होती हैं, इसलिए रूप चौदस के दिन अरुणोदय काल में सूर्य उगने से पहले वो उबटन लगाकर के स्नान करती हैं. इसके बाद रेवड़े यानी कचरा रखने वाले स्थान पर दीपक जलाती हैं. उन्होंने बताया कि लक्ष्मी जी की बड़ी बहन दरिद्रा कहलाती है. वो साल भर घर में रहती है और दीपावली से पहले उसे बाहर निकाल देते हैं. उसे सम्मान पूर्वक बाहर निकालते हैं, इसलिए रूप चौदस पर महिलाएं लक्ष्मी स्वरुपा बनकर अपनी बहन दरिद्रा को बाहर निकाल कर और रेवड़े पर दीपक जलाने की प्रथा है. ऐसे में धनतेरस पर तो लक्ष्मी को लेकर के आते हैं, रूप चौदस पर निखार होता है और दीपावली पर पूजन किया जाता है.
ज्योतिष आचार्य विनोद शास्त्री (ETV Bharat Jaipur) पढ़िए.Rajasthan: नहीं होगी अकाल मृत्यु, नरक चतुर्दशी को जलाए यम का दिया, परिवार में आएगी समृद्धि
उन्होंने बताया कि इसी को छोटी दीपावली भी कहते हैं. जब यही रूप चतुर्दशी प्रदोष काल में आती है, तो छोटी दीपावली कहलाती है. ये कुत्ते की दीपावली भी कहलाती है, क्योंकि इस दिन भैरव का पूजन होता है, इसलिए उड़द के पत्ते खाने का भी विधान है या उड़द के आटे पर चार बत्तियां लगाकर घर के दरवाजे के बाहर रखते हैं. मान्यता है कि यदि उसे कुत्ता छू जाए तो भैरव की पूजा सार्थक हो जाती है.
उन्होंने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध करके 16000 महिलाओं को उसकी कैद से मुक्त कराया था. इसी के निमित्त दीपोत्सव मनाया जाता है और इस दिन को नरक चतुर्दशी कहा जाने लगा. इस मौके पर यमदेव के नाम भी दीपक जलाने का विधान है. ये दीपक भी खास होता है. इस दिन घर के बाहर चौमुखी दीपक जलाने का रिवाज है. इससे परिवार अकाल मृत्यु से सुरक्षित रहता है और नरक के द्वार भी बंद हो जाते हैं. साथ ही यमदेव का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है.