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विदिशा के रण में 20 साल बाद शिवराज सिंह चौहान, कांग्रेस को प्रताप भानू से आस, क्या 40 साल बाद होगी वापसी - vidisha lok sabha seat profile

मध्य प्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट हाईप्रोफाइल सीटों में से एक हैं. यह सीट सालों से बीजेपी का गढ़ मानी जाती है. 20 साल बाद एक बार फिर इस सीट से चुनावी मैदान में पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान उतरे हैं. जबकि 40 साल बाद जीत हासिल करने कांग्रेस ने पूर्व सांसद प्रताप भानु शर्मा को अपना सिपाही बनाया है. बता दें इस सीट से पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी चुनाव लड़ और जीत चुकी हैं. देखना होगा क्या इस बार बीजेपी के गढ़ को कांग्रेस भेद पाती है, या फिर वही सूखा हाथ लगता है.

VIDISHA LOK SABHA SEAT PROFILE
विदिशा के रण में एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान, कांग्रेस को प्रताप भानू से आस, क्या 40 साल बाद होगी वापसी

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 3, 2024, 3:51 PM IST

विदिशा।बेतवा के किनारे बसे विदिशा का समृद्ध इतिहास रहा है और लोकतंत्र के बाद उतनी ही चर्चित विदिशा लोकसभा सीट भी रही है. मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से विदिशा हाईप्रोफाइल सीटों में से एक है, क्योंकि इस सीट से 20 साल बाद फिर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मैदान में उतरे हैं. उनका मुकाबला कांग्रेस के उस नेता से है, जो विदिशा संसदीय सीट के इतिहास में दो बार कांग्रेस की वापसी कराने में सफल रहे हैं. देखना होगा कि 40 साल बाद कांग्रेस नेता प्रताप भानु शर्मा क्या फिर पार्टी की वापसी करा पाएंगे.

विदिशा बीजेपी प्रत्याशी शिवराज सिंह चौहान

इतिहास के पन्नों में बेहद खास है विदिशा

मध्यप्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट... वह विदिशा, पुराणों में जिसका उल्लेख शत्रुघ्न के बेटे शत्रुघाति के नाम के साथ मिलता है. ब्रह्म पुराण में विदिशा को यवनों का स्थान बताया गया है. कहा जाता है कि यवनों ने ही महाभारत काल में अश्वमेघ यज्ञ के लिए युधिष्ठिर को घोड़ा दिया था. प्राचीनकाल में ऐतिहासिक शहर बैसनगर आज के विदिशा से 3 किलोमीटर दूर था. कहा जाता है विदिशा का पूर्व में नाम विश्वानगर था, जो राजा रूकमान्दघाह की पत्नी विश्वा के नाम पर पड़ा. यह वही विदिशा नगरी है, जहां के साहूकार की बेटी देवी से महान सम्राट अशोक ने विवाह किया. विवाह के बाद देवी कभी पाटलीपुत्र नहीं गई. बाद में उनके पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा ने इसी विदिशा से बौद्ध, जैन साहित्य का देश भर में प्रचार प्रसार शुरू किया.

विदिशा लोकसभा सीट रोचक जानकारी और मुद्दे

विदिशा लोकसभा सीट का सफरनामा

लोकतंत्र स्थापित होने के बाद अस्तित्व में आई विदिशा लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1967 में हुआ. इस सीट पर पहली बार भारतीय जनसंघ के पंडित शिव शर्मा चुनकर संसद पहुंचे. पंडित शिव शर्मा देश के ख्यात आयुर्वेदाचार्य रहे हैं. वे झांसी आयुर्वेद विश्वविद्यालय के चांसलर थे और देश का ऐसा कोई आयुर्वेद संस्थान नहीं था, जिसके वे सदस्य न रहे हों. आजादी की लड़ाई में शामिल रहे और मीडिया जगत के दिग्गज रामनाथ गोयनका ने भी इस सीट से क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. भारतीय राजनीति के लोकप्रिय नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी साल 1991 में इस सीट से चुने गए थे. बाद में अटल बिहारी वाजपेयी की इस विरासत को शिवराज सिंह चौहान ने संभाला.

विदिशा लोकसभा सीट का 2019 का परिणाम

शिवराज सिंह चौहान साल 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में बतौर सांसद चुने गए. 2004 के बाद वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए. पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी इस सीट से दो बार साल 2009 और 2014 में चुनी जा चुकी हैं.

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बीजेपी का गढ़ रही है विदिशा लोकसभा

विदिशा लोकसभा सीट बीजेपी का मजबूत गढ़ रही है. इसे इससे समझा जा सकता है कि अभी तक इस सीट पर 17 चुनाव हुए. जिसमें से 15 चुनावों में जनसंघ, जनता पार्टी और बीजेपी का ही कब्जा रहा है. सिर्फ 1980 और 1984 के चुनाव में ही कांग्रेस इस सीट पर कब्जा जमा पाई. इस लोकसभा सीट में भोजपुर, सांची, सिलवानी, विदिशा, बासौदा, बुधनी, इछावर और खातेगांव विधानसभा सीट आती हैं. इसमें से सिर्फ सिलवानी विधानसभा को छोड़ बाकी 7 सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. बुधनी के जैत से राजनीति की राह पकड़ने वाले शिवराज इस सीट से फिर मैदान में है, जबकि कांग्रेस ने इस सीट पूर्व सांसद भानु प्रताप शर्मा को मैदान में उतारा है. वे ही 1980 और 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत दिला सके थे, कांग्रेस को एक बार फिर उनसे उसी चमत्कार की उम्मीद है.

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