सिरमौर:पड़ोसी राज्य उत्तराखंड से हिमाचल की सीमा के अंतर्गत पांवटा साहिब के जंगलों में हाथियों के आने का सिलसिला पिछले करीब 2-3 दशक से चल रहा है. पिछले 2 सालों में यहां हाथियों की मूवमेंट ज्यादा हुई है, लेकिन पिछले एक साल में पांवटा साहिब वन मंडल के अंतर्गत आने वाले विभिन्न जंगल हाथियों का स्थाई आशियाना बन चुके हैं. हालांकि स्थाई तौर पर यहां के जंगलों में रहने वाले हाथियों की संख्या की सही जानकारी तो नहीं है, लेकिन बताया जा रहा है कि करीब एक दर्जन हाथी अब यहीं अपना स्थाई ठिकाना बना चुके हैं. इसमें कुछ गिरीनगर के फांदी के जंगल, कुछ माजरा रेंज के अंतर्गत पानीवाला खाला के जंगल और कुछ सिम्बलवाड़ा स्थित कर्नल शेरजंग नेशनल पार्क में रह रहे हैं. वन विभाग भी इस बात को स्वीकार कर रहा है कि एक साल में हाथियों ने यहां के जंगलों में स्थाई डेरा बनाया है.
हाथियों का यहां स्थाई आशियाना बनाने का एक बड़ा कारण यह भी माना जा रहा है कि उत्तराखंड के राजा जी नेशनल पार्क की तर्ज पर पांवटा साहिब के जंगलों में भी हाथियों को अनुकूल वातावरण मिल रहा है. दूसरी तरफ चिंता का विषय यह है कि अब तक हाथी केवल खेत-खलियानों को ही नुकसान पहुंचाते आ रहे थे, लेकिन पिछले करीब 11 महीनों के अंतराल में हाथियों के हमले में एक बुजुर्ग महिला सहित दो व्यक्ति अपनी जान गंवा चुके हैं. बावजूद इसके सरकार इस दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठा रही है. प्रोजेक्ट एलीफेंट के तहत भी अब तक विभाग को बजट जारी नहीं किया गया है. हालांकि वन विभाग की टीमें लगातार ग्रामीणों को इस दिशा में जागरूक कर रही है. वहीं, एलीफेंट प्रोन एरिया में निरंतर रात्रि गश्त भी की जा रही है. समय-समय पर ग्रामीणों के साथ बैठकें भी की जा रही है.
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ग्रामीण काफी हद तक हो चुके जागरूक, लेकिन...
वन विभाग की मानें तो एलीमेंट प्रोन एरिया के अंतर्गत रहने वाले क्षेत्रों के ग्रामीण इस बाबत काफी हद तक जागरूक हो चुके हैं, लेकिन जंगलों के आसपास ढेरा जमाने वाले भेड़ पालकों व गुज्जरों को अधिक सतर्क रहने की जरूरत है. एक भेड़ पालक तपेंद्र सिंह के साथ हुई घटना में भी यह बात सामने आई है कि मृतक तपेंद्र अन्य भेड़ पालकों के साथ जिस जगह पर डेरे में रह रहा था, वह वहां से काफी दूर जंगल में चला गया. संभवत इसी बीच हाथी और तपेंद्र का आमना सामना हो गया होगा.