वाराणसी :महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ ब्रिटिश शासनकाल में भारतीयों द्वारा स्थापित पहला आधुनिक विश्वविद्यालय था. असहयोग आंदोलन के दौरान 10 फरवरी 1921 को महात्मा गांधी ने विद्यापीठ की नींव में पहली ईंट रखी थी. महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के छात्रों की परंपरा गौरवशाली रही है. विश्वविद्यालय अपना 103वां स्थापना समारोह (15 फरवरी) मनाने जा रहा है तब यहां पर पढ़कर निकले और देश की महान विभूति बने लोगों की याद भी जरूर आती है. वसंत पंचमी पर स्थापना के बाद सबसे पहले आचार्य कृपलानी के साथ 50 छात्रों ने इस विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया था. यहां से पढ़कर निकले छात्रों ने देश-दुनिया में काफी नाम कमाया है.
आजादी की लड़ाई में सहयोग के भाव से स्थापित काशी विद्यापीठ का स्वतंत्रता संग्राम में भी बहुत बड़ा योगदान था. असहयोग आंदोलन के दौरान 10 फरवरी 1921 को महात्मा गांधी ने विद्यापीठ की नींव में पहली ईंट रखी थी. इसके 73 साल बाद 11 जुलाई 1995 को इस विश्वविद्यालय के नाम में महात्मा गांधी का नाम जोड़ दिया गया था. तब से यह महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के नाम से जाना जाता है. इस विश्वविद्यालय की स्थापना से लेकर आज तक यहां कई विभूतियों और बड़े नेताओं ने अध्ययन कर अपना भविष्य संवारा है. आज यहां से पढ़े हुए छात्र बड़ी पहचान बना चुके हैं. कोई भारत रत्न है तो कोई आजादी की लड़ाई का सबसे बड़ा योद्धा.
भारत की विभूतियों और नेताओं का रहा जुड़ाव : भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद ने अपनी शिक्षा यहीं से प्राप्त की थी. उनके साथ ही यह संख्या नहीं खत्म होती. कलराज मिश्र, आचार्य नरेंद्र देव, श्री प्रकाश, आचार्य बीरबल, डॉ. संपूर्णानंद, रघुकुल तिलक, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े, प्रो. राजाराम शास्त्री, अभिनेता सुजीत कुमार भी इसी संस्थान का हिस्सा रहे हैं. इसके साथ ही यहां पर संचालन कमेटी में मुंशी प्रेमचंद, जवाहर लाल नेहरू, पुरुषोत्तम दास टंडन, लाला लाजपत राय, जमुना लाल बजाज, दामोदर जोशी और कृष्णकांत बाजपेयी थे. चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी यहीं रुक कर रणनीति बनाते थे.