प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एटा जिले में 37 साल पहले डकैती और हत्या मामले के दोषी की सजा बरकरार रखी है और जमानत निरस्त कर दी है. यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला एवं न्यायमूर्ति सैयद कमर हसन रिजवी की खंडपीठ ने रक्षपाल और एक अन्य की अपील पर दिया है.
एटा के जैथरा थानाक्षेत्र के नगला हिम्मत गांव में 25 जुलाई 1982 की रात शिवराज सिंह के घर डकैती हुई. डकैती में जौहरी की गोली मारकर हत्या कर दी गई. रक्षपाल सहित अन्य पर डकैती व रात में घर में घुसकर हत्या करने के आरोप में एफआईआर दर्ज हुई. ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्तों को डकैती व हत्या का दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. इसे हाईकोर्ट में अपील दाखिल कर चुनौती दी गई.
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एटा की 10 मई 2024 की रिपोर्ट के अनुसार अपीलार्थी जगदीश की मृत्यु हो गई. रक्षपाल की ही अपील रह गई. अपील में तर्क दिया गया कि सभी चश्मदीद गवाह मृतक के निकट संबंधी हैं. अभियोजन पक्ष को कुछ स्वतंत्र गवाह प्रस्तुत करना चाहिए था. कोर्ट ने कहा कि कोई गवाह रिश्तेदार है तो केवल इस आधार पर गवाही को खारिज नहीं किया जा सकता.
रिश्वतेदार होने से कोई गवाह पक्षपाती नहीं हो जाता है. चश्मदीद गवाह को केवल पीड़ित के साथ उसके संबंध के कारण खारिज नहीं किया जाना चाहिए. न्यायालय को उनके बयानों की विश्वसनीयता और सुसंगतता का आकलन करना चाहिए न कि उन्हें अविश्वनीय करार देना चाहिए.
कोर्ट ने यह भी कहा कि आमतौर पर लोग किसी बातचीत को सही-सही याद नहीं रख सकते और न ही पूर्व में दिए गए बयान को शब्दश: दोहरा सकते हैं. वे केवल बातचीत के मुख्य उद्देश्य याद रख सकते हैं. एक गवाह से मानव टेप रिकॉर्डर होने की उम्मीद नहीं की जा सकती. खंडपीठ ने कहा कि घटना रात में हुई थी. दो चश्मदीद गवाहों में एक मृतक का सगा भाई शिवराज और एक पिता रामचंद्र है.
चश्मदीद गवाह रामनाथ उसका पड़ोसी है, जो आवाज सुनकर मौके पर पहुंचा था. तीनों गवाहों ने स्पष्ट रूप से कहा कि आरोपी उसके परिचित थे और अपीलार्थी रक्षपाल के हाथ में देशी पिस्तौल थी. रक्षपाल का बयान कि उसे झूठा फंसाया गया है, साबित नहीं हुआ. खंडपीठ ने ट्रायल कोर्ट के फैसले में कोई बड़ी या कानूनी त्रुटि नहीं पाते हुए अपील खारिज कर दी.
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