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एक ही मुकदमे में जारी हुए दो विरोधाभासी आदेश, हाईकोर्ट ने डिस्ट्रिक्ट जज को जांच करने के निर्देश दिये - ALLAHABAD HIGH COURT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूछा- मानहानि के एक मामले में दो विरोधाभासी आदेश ऑनलाइन कैसे अपलोड किए गए.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला जज को जांच का आदेश दिया (Photo Credit- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 9, 2024, 8:59 PM IST

प्रयागराज:गाजियाबाद की एक अदालत से एक ही मुकदमे में दो विरोधाभासी आदेश वेबसाइट पर जारी होने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गम्भीरता से लिया है. कोर्ट ने गाजियाबाद के जिला जज को यह जांच करने का आदेश दिया है कि मानहानि के एक मामले में दो विरोधाभासी आदेश ऑनलाइन कैसे अपलोड किए गए. किन परिस्थितियों में संबंधित न्यायालय के कर्मचारियों ने वेबसाइट पर बिना हस्ताक्षर के मसौदा आदेश अपलोड कर दिया.

कोर्ट ने कहा कि जिस अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट का मामला है वह एक युवा मजिस्ट्रेट हैं. उनके लंबे करियर को ध्यान में रखते हुए यह अदालत कोई प्रतिकूल आदेश पारित नहीं कर रही है. पारुल अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने सुनवाई की. कोर्ट ने कहा कि कि संबंधित मजिस्ट्रेट ने सावधानी नहीं बरती थी. संबंधित कर्मचारियों के खिलाफ जांच भी शुरू नहीं की थी.

गाजियाबाद में रहने वाले पति-पत्नी ने याची के ​खिलाफ मानहानि का आरोप लगाते हुए परिवाद दाखिल किया था. ट्रायल कोर्ट ने 13 फरवरी 2024 को इस पर एक ही दिन में दो आदेश पारित कर दिए. पहले आदेश में मानहानि की शिकायत खारिज कर दी गई थी, जबकि दूसरे आदेश में आरोपी को मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया गया था. इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. याची के वकील ने कोर्ट को बताया कि जिस आदेश से शिकायत खारिज की गई थी, उस पर हस्ताक्षर नहीं थे. वहीं जिस आदेश से अभियुक्त को बुलाया गया था, वह हस्ताक्षरित आदेश था.

न्यायालय ने मजिस्ट्रेट से स्पष्टीकरण मांगा था. जवाब में न्यायिक अधिकारी ने बिना शर्त माफी मांगी और बताया कि उनके न्यायालय के कर्मचारियों ने अनजाने में उनकी सहमति के बिना एक अहस्ताक्षरित आदेश अपलोड कर दिया था. मामले के विशिष्ट तथ्यों पर विचार करते हुए न्यायालय ने दोनों आदेशों को रद्द कर दिया. निर्देश दिया कि बिना हस्ताक्षर वाले आदेशों को कार्यवाही का हिस्सा नहीं माना जाएगा. मामले को नए सिरे से निर्णय लेने के लिए पुनः ट्रायल कोर्ट को भेज दिया गया. साथ ही हाईकोर्ट ने तीन महीने के भीतर नया आदेश पारित करने का आदेश दिया.

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