गुमला: आदिवासी एकता मंच बसिया के तत्वावधान में सोमवार को बसिया के सरहुल अखाड़ा कोनबीर में आदिवासी एकता महारैली का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोगों ने भाग लिया. महारैली पारंपरिक हथियारों से लैस होकर थाना चौक से शुरू होकर सरहुल अखाड़ा कोनबीर पहुंच कर सभा में तब्दील हो गयी.
रैली का मुख्य उद्देश्य आदिवासी समुदाय को जल, जंगल, जमीन, विस्थापन, आदिवासी पहचान, सरना, मसना, भाषा, धर्म, कोड, वन अधिकार कानून, सीएनटी/एसपीटी एक्ट, पांचवीं अनुसूची से छेड़छाड़, पेसा कानून, धर्म के नाम पर आदिवासियों के बीच भूमि बैंकों का वितरण आदि जैसे मुद्दों पर जागरूक करना था.
आदिवासी समाज को की जा रही लड़ाने की कोशिश
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में दयामनी बारला ने कहा कि आज हम देश को बचाने के लिए सरहुल अखाड़ा कोनबीर में एकत्र हुए हैं और संविधान से छेड़छाड़ को रोकने के लिए बिगुल बजाने आये हैं. यहां आदिवासियों को ईसाई बताकर आदिवासी समाज को लड़ाने की कोशिश की जा रही है. यहां रहने वाले सभी आदिवासी एक हैं. केवल धर्म के नाम पर लड़ाने की साजिश चल रही है, जिसे हम बर्दाश्त नहीं करेंगे. भाजपा सरकार संविधान में बदलाव कर समाज को बांटने का प्रयास कर रही है. डीलिस्टिंग के नाम पर सरना आदिवासियों के बीच दूरियां पैदा करने का काम कर रही है.
'अपने संपूर्ण अधिकार से वंचित आदिवासी'
आदिवासी एकता मंच के मुख्य संरक्षक रोशन बरवा ने कहा कि आदिवासी देश के प्रथम नागरिक हैं, लेकिन आज भी वे अपने संपूर्ण अधिकार से वंचित हैं. आदिवासी समाज आज भी अपनी पहचान, भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है. आज हमारी भाषा, संस्कृति, पहचान, आजीविका, प्राकृतिक संसाधनों और नौकरियों को एक साजिश के तहत लूटा जा रहा है, आदिवासियों के कल्याण के लिए चलायी जा रही योजनाओं को भी बिचौलिए लूट रहे हैं.