कवर्धा : शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर कवर्धा में एक बार फिर से बरसों पुरानी परंपरा का भव्य आयोजन होने जा रहा है. आज रात मां दंतेश्वरी, मां चंडी और मां परमेश्वरी के मंदिरों से खप्पर निकाली जाएगी. यह अनुष्ठान आज मध्यरात्रि को शुरू होगा.
तीन मंदिरों से निकलेगा खप्पर : कवर्धा के तीनों मंदिरों से एक के बाद एक खप्पर निकाला जाएगा और पूरे नगर में भ्रमण करेगी. इस परंपरा को पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ निभाया जाता है. हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस अनुष्ठान का हिस्सा बनते हैं.
खप्पर निकालने का समय : मां दंतेश्वरी मंदिर से खप्पर रात 12:10 बजे निकाला जाएगा. इसके 10 मिनट बाद मां चंडी और फिर 10 मिनट बाद मां परमेश्वरी से खप्पर निकलेगा. यह खप्पर नगर के 18 प्रमुख मंदिरों के सामने से गुजरते हुए देवी देवताओं का आह्वान करेगा. पूरे नगर में इसके स्वागत के लिए श्रद्धालु उमड़ पड़ते हैं. रास्ते के किनारे लोग देवी मां का दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
खप्पर निकालने की पुरानी परंपरा : कवर्धा और आसपास के क्षेत्रों में यह धार्मिक अनुष्ठान होता है. आपदाओं से मुक्ति और देवी देवताओं की कृपा प्राप्त करने के उद्देश्य से खप्पर निकाली जाती है. नगर भ्रमण के दौरान देवी माता का आशिर्वाद प्राप्त व्यक्ति एक हाथ में खप्पर लेकर चलता है.
कैसे निकालते हैं खप्पर : खप्पर मिट्टी से बना काले रंग का पात्र होता है, जिसमें जलती हुई आग होती है. दूसरे हाथ में चमचमाती तेज धार वाली तलवार होती है. मंदिर से तय समय पर खप्पर निकाली जाती है. देवी के मार्ग में कोई रुकावट न हो, इसके लिए प्रमुख पंडा हाथ में तलवार लहराते हुए रास्ता सुरक्षित करते हैं. समय समय पर देवी माता को शांत करने मंदिर के दर्जनों पुजारी और सुरक्षा के लिए पुलिस की फौज तैनात रहती है. मंदिर समिति के सदस्य भी रहते हैं. विभिन्न मार्गों से गुजरते हुए खप्पर मंदिर में वापस जाकर रुकती है.
खप्पर का धार्मिक महत्व और सुरक्षा प्रबंध : खप्पर निकलने के दौरान नगर में किसी भी प्रकार की अव्यवस्था न हो, इसके लिए पुलिस प्रशासन कड़ी सुरक्षा व्यवस्था करता है. शहर के प्रमुख चौक चौराहों पर पुलिस बल तैनात होता है. खप्पर के आगे पीछे भी पुलिस जवानों का दल तैनात किया जाता है, ताकि कोई अव्यवस्था न हो. यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े और वे सुरक्षित रूप से इस धार्मिक अनुष्ठान में भाग ले सकें.
खप्पर के साथ जुड़े रौद्र रूप की पुरानी कहानियां : प्राचीन काल में खप्पर का स्वरूप बहुत ही रौद्र और भयावह माना जाता था. पांच दशक पहले खप्पर का दर्शन करना तो दूर, इसकी किलकारी की गूंज से ही लोग घरों में छिप जाया करते थे. घरों के दरवाजे और खिड़कियों से पल भर के लिए खप्पर का दर्शन करना भी एक साहसिक कार्य माना जाता था. हालांकि समय के साथ खप्पर निकालने की यह परंपरा धार्मिक आस्था और श्रद्धा का प्रतीक बन गई है. आज भी इसे पूरी श्रद्धा से निभाया जाता है.
एकजुटता का संदेश : यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था को प्रबल करता है, बल्कि समाज में आपसी सौहार्द्र औ एकजुटता का संदेश भी देता है. खप्पर निकलने की यह परंपरा आज भी कवर्धा के इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे हर वर्ष श्रद्धा और भक्ति के साथ निभाया जाता है.
मंदिरों में हवन पूजन और कन्या भोज :नवरात्रि की अष्टमी पर कवर्धा के सभी प्रमुख मंदिरों में हवन पूजन का विशेष आयोजन किया गया है. मां चंडी, मां महामाया, मां विन्ध्यवासिनी, मां काली, मां शीतला, मां सिंहवाहिनी और मां परमेश्वरी सहित अन्य सभी देवी मंदिरों में सुबह 9 बजे से हवन पूजन शुरू हुआ. इसके बाद कन्या भोज का आयोजन किया जा रहा है. देवी मां की पूजा और कन्या भोज के लिए भक्तों में खासा उत्साह है.
नवरात्रि का उल्लास और भक्तों की आस्था : कवर्धा जिले में नवरात्रि पर मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता हुआ है. अष्टमी की इस रात को निकाले जाने वाले खप्पर को लेकर उत्साह अपने चरम पर है. शहर भर के लोग इस धार्मिक परंपरा का हिस्सा बनने के लिए तैयार हैं. सुरक्षा व्यवस्था से लेकर आयोजन की सारी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं.