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सबसे पुराने शहर बनारस का आज है जन्मदिन, जानिए कैसे 68 साल पहले मिली नई पहचान - varanasi foundation day - VARANASI FOUNDATION DAY

धर्म नगरी काशी कई धार्मिक मान्यताओं और संस्कृतियों को समेटे हुए हैं. देश-दुनिया से लोग यहां बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए आते हैं. आज ही के दिन इस शहर की स्थापना हुई थी.

वाराणसी को आज के दिन ही मिली थी नई पहचान.
वाराणसी को आज के दिन ही मिली थी नई पहचान. (PHOTO Credit; Etv Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 24, 2024, 10:03 AM IST

वाराणसी : बनारस, वाराणसी या फिर काशी या मोक्ष की नगरी नाम तो बहुत है, लेकिन पुराणों में वर्णित इस अद्भुत और पुरातन शहर की पहचान भगवान शिव, माता गंगा और यहां के खान-पान के साथ यहां की गलियों, साड़ियों और कुछ अन्य विशेष चीजों से मानी जाती है. बनारस पुराण से भी पुराना माना जाता है. भगवान शंकर के हाथों में बसी इस नगरी की अद्भुत ही बात है. इस शहर की स्थापना या शहर का जन्म कब हुआ. यह बताना मुश्किल है, लेकिन सरकारी दस्तावेजों के हिसाब से 24 मई वाराणसी के अधिकृत स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है.

24 मई 1956 को अधिकृत तौर पर प्रदेश सरकार ने इस प्राचीन नगरी का नाम वाराणसी के तौर पर स्थायी तौर पर रखा. वरुणा और असि के बीच बसे शहर को यह नाम इन दो नदियों के कारण ही मिला. अब वाराणसी का नाम स्थायी है. 68 वर्ष पहले हिंदू पंचांग में दर्ज तिथि में वैसाख पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा और चंद्रग्रहण के शुभयोग के लिहाज से वाराणसी का नामकरण हुआ था. वाराणसी नाम कोई नया नहीं बल्कि बेहद पुराना है, पुराणों से पुरानी नगरी में वाराणसी नाम का जिक्र मत्स्य पुराण में भी आता है.

वर्ष 1965 में जिले का वाराणसी गजेटियर 581 पन्ने के साथ उस वक्त की आईएएस अधिकारी ईशा बसंती जोशी के संपादकीय नेतृत्व में प्रकाशित हुआ तो यह तारीख भी उसके दसवें पृष्ठ पर प्रशासनिक नाम वाराणसी किए जाने की तिथि अंकित की गई. इसके साथ ही गजेटियर में वाराणसी के प्राचीन वैभव संग विविध गतिविधियां भी इसका हिस्सा बनीं.

शहर के गजेटियर में काशी, बनारस और बेनारस आदि नामों के भी लंबे समय से प्रचलन में रहने के साक्ष्य भी प्रमाण के साथ दर्ज किए गए लेकिन देश जब आजाद हुआ तो तीन अलग-अलग नामों में एक नाम को लेकर जो सहमति बननी थी. वह प्रशासनिक तौर पर वाराणसी नाम की स्वीकार्यता और राज्य सरकार की वरणावती नदी का जिक्र आया है. यह आधुनिक काल में वरुणा नदी का पर्याय है. वहीं दूसरी ओर असि नदी को पुराणों में असिसेभेद तीर्थ के तौर पर मान्यता मिली है. अग्निपुराण में भी असि नदी को नासी के तथ्य के तौर पर मान्यता की जानकारी दर्ज है. विविध धर्म ग्रंथों में वाराणसी, काशी और बनारस सहित प्राचीन नामों के साक्ष्य मौजूद है.

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