जयपुर. आजादी की पहली सुबह पूरे देश में उत्साह और जश्न का माहौल था. जयपुर भी खुशी के इसी समुद्र में गोते लगा रहा था. यही वजह है कि जयपुर और यहां के लोगों ने इस खुशी का इजहार करने में कोई कमी नहीं रखी. सुबह जयपुर की हृदय स्थली बड़ी चौपड़ पर तिरंगा फहराने के साथ जश्न का दौर शुरू हुआ था. इस जश्न में जयपुर वासी अपने आराध्य गोविंद देव जी को भी नहीं भूले. यही नहीं, शहर भर में लड्डू बांटे गए, दलितों को गले लगाया गया और शाम को घी के दीए जलाकर दीपोत्सव मनाया गया. 15 अगस्त 1947 को लाल किले की प्राचीर पर जो पहला तिरंगा फहराया गया था, वो भी तत्कालीन जयपुर जिला क्षेत्र में आने वाले दौसा के आलूदा गांव में ही बनकर तैयार हुआ था.
आजादी से पहले राजस्थान में रियासत की व्यवस्था थी. उस दौर में यहां प्रजामंडल काम करती थी. प्रजामंडल के माध्यम से ही आजादी का आंदोलन चलाया गया. 15 अगस्त 1947, जब आजाद भारत की सुबह हुई तो जयपुर भारत माता के जयकारों से गूंज उठा था. हर तरफ जश्न का माहौल था. प्रजामंडल के बड़े नेताओं ने शहर भर में झंडे लगाए. हालांकि पहला और बड़ा झंडारोहण कांग्रेस नेता टीकाराम पालीवाल ने बड़ी चौपड़ पर फहराया था. उस दौरान हजारों लोग झंडारोहण के इस समारोह में शरीक हुए.
इतिहास को जानने वाले जितेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि उस वक्त जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह जयपुर में नहीं थे, लेकिन उनके प्रधानमंत्री टी कृष्णमाचारी झंडारोहण समारोह में शामिल हुए थे. उनके अलावा कांग्रेस के अन्य नेता दौलतमंद भंडारी, देवी शंकर तिवाड़ी और अन्य रियासतों के प्रतिनिधि अमर सिंह, कुशल सिंह भी मौजूद रहे थे. वहीं हर जगह आजादी को बरकरार रखने को लेकर चर्चा हुई. चर्चा इस बात की भी थी कि अंग्रेजों का राज खत्म हो गया है. अब अपने ढंग से अपनी व्यवस्थाएं चलाएंगे. फिर यहीं से जयपुरवासी देश की आजादी बरकरार रहे और देश तरक्की करें, इस कामना के साथ जयपुर के आराध्य गोविंद देवजी के मंदिर गए थे. आजादी के दिन गोविंद देव जी में होने वाली सभी झांकियों में शहर वासियों का हुजूम उमड़ा था.